यामहा, रॉयल एनफ़ील्ड और म्योंग शिन के 3,700 वर्कर हड़ताल पर, चेन्नई में फैला मज़दूर असंतोष
यूनियन बनाने, तालाबंदी, छंटनी, मांगपत्र, ठेकेदारी प्रथा आदि के मसले पर सिर्फ उत्तर भारत में ही फैक्ट्री मालिकों और मज़दूरों में नहीं ठनी है। दक्षिण में भी मज़दूर अशांति फैली है।
तमिलनाडु के चेन्नई में ओरागदम इंडस्ट्रियल बेल्ट में रॉयल एनफ़ील्ड, यामहा और म्योंग शिन की फैक्टरियों में वर्कर हड़ताल पर चले गए हैं।
तीनों कंपनियों के वर्कर मांग पत्र पर तत्काल कार्यवाही करने की मांग पर अड़े हुए हैं।
एआईसीसीटीयू से संबंधित चैन्नई के ओएलजी और कोयंबटूर प्रिकोल के वर्कर भी प्रदर्शनकारियों के समर्थन में 27 तारिख को अपने अपने प्लांटों के गेट पर प्रदर्शन की घोषणा की है।
रॉयल एनफ़ील्ड के मैनेजमेंट ने ट्रेनी वर्करों को चेतावनी दी है कि वो 28 सितम्बर तक काम पर आ जाएं वरना उनकी नौकरी नहीं रहेगी।
रॉयल एनफ़ील्ड के वर्कर यूनियन ने पुलिस को चिट्ठी लिखकर मदद की गुहार लगाई है।
रॉयल एनफ़ील्ड
कंपनी ने कर्मचारी परमानेंट किए जाने की मांग कर रहे हैं और नीम और फ़िक्स्ड टर्म एम्प्लाएमेंट (एफ़टीई) स्कीम को तत्काल बंद किए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं।
चैन्नई में कंपनी के ओरागदम और वल्लम प्लांट में कर्मचारी हड़ताल पर हैं।
24 सितम्बर से अग्रणी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनियों में से एक रॉयल एनफ़ील्ड के 3,000 वर्कर भी 24 सितम्बर से हड़ताल पर हैं।
रॉयल एनफ़ील्ड एम्प्लाई यूनियन के उपाध्यक्ष आर संपत ने बताया कि मैनेजमेंट ने 120 ट्रेनी वर्करों को बिना कारण बताए प्लांट में आने से रोक दिया। इसे अन्य मुद्दों पर पहले से ही गुस्साए वर्करों ने हड़ताल बोल दिया।
कंपनी में वर्करों ने इसी साल बीते अप्रैल में यूनियन बनाई थी। इसके बाद वेतन बढ़ोत्तरी का नोटिस दिया गया और मांग रखी गई कि पेमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट के तहत उन्हें क़ानूनी रूप से वैध बोनस दिया जाए लेकिन कोई जवाब नहीं आया। 13 अगस्त को यूनियन ने हड़ताल का नोटिस भेजा लेकिन तब भी मैनेजमेंट के कान पर जूं नहीं रेंगी।
लेबर कमिश्नर ने वार्ता को बुलाया, उसमें भी मैनेजमेंट आगे नहीं आया। इसके बाद मज़दूरों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया।
25 सितम्बर को कंपनी ने एक बयान जारी कर आपसी समझदारी से समझौते पर पहुंचने की उम्मीद जताई थी।
यामहा इंडिया
यामहा इंडिया के 700 परमानेंट वर्कर 20 सितम्बर से ही प्लांट में धरने पर बैठे हुए हैं।
कंपनी ने इसी दिन दो वर्करों को निकाल दिया था। इसके बाद वर्कर प्लांट के अंदर ही हड़ताल पर बैठ गए।
वर्करों का आरोप है कि जिन दो लोगों प्रकाश और राजामनिक्कम को निकाला गया है उन्होंने कंपनी में यूनियन बनाने की कोशिशों में अहम भूमिका निभाई थी और मैनेजमेंट ने बदले की भावना से उन्हें निकाल बाहर किया।
मज़दूर प्लांट में यूनियन बनाने की कोशिशें पहले से कर रहे हैं।
वर्करों का कहना है कि कंपनी सरकारी नियमों के अनुसार भी पेमेंट नहीं कर रही है।
श्रम कानूनों के मुताबिक, छह साल के अनुभवी एक इंजीनियर को 30,000 रुपये प्रति माह का वेतन मिलना चाहिए। यहां छह महीने के अनुभवी वर्कर को अधिकतम 17,000 रुपये सैलरी दी जा रही है।
वर्करों का आरोप है कि श्रीपेरम्बदूर के असिस्टेंट लेबर कमिश्नर ने 20 सितम्बर से अबतक चार बार वार्ता के लिए मैनेजमेंट को बुलाया लेकिन वो अभी तक सामने नहीं आया है।
एक वर्कर ने बताया कि कंपनी हड़तालियों की जगह ठेके के मज़दूरों से काम कराने की कोशिश कर रही है लेकिन तबसे प्लांट में कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं।
धरना प्रदर्शन में महिला वर्कर भी साथ आ गई हैं।
इसी बीच 26 सितम्बर को मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि वर्कर प्लांट के गेट से 200 मीटर दूर रहकर प्रदर्शन करें।
म्यूंग शिन ऑटोमोटिव
म्यूंग शिन ऑटोमोटिव इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के 140 कर्मचारी भी पिछले 20 दिन से हड़ताल पर हैं। उनकी मांग है कि कानून के मुताबिक उनका जितना इनक्रीमेंट होता है, वो किया जाए।
कांचीपुरम के सीटू के जिला अध्यक्ष कन्नन ने कहा कि कंपनी ने पिछले 30 महीने से कोई वेतन बढ़ोत्तरी नहीं की है।
मैनेजमेंट और वर्करों के बीच कई राउंड की वार्ता के बावजूद अभी तक किसी समझौते पर नहीं पहुंचा जा सका है।
सीटू नेता ने कहा कि मैनेजमेंट को कानून का पालन करना चाहिए और न्यूनतम वेतन बढ़ोत्तरी करनी चाहिए।
गौरतलब है कि चैन्नई के ओरागदाम में दुनिया की जानी मानी कार निर्माता कंपनियां जैसे रेनॉल्ड-निस्सान, फ़ोर्ड, आईशर मोटर्स, यामहा, अपोलो टायर्स आदि के बड़े बड़े प्लांट मौजूद हैं।
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