होंडा मानेसर में वेतन समझौता, 24,200 रु. की बढ़ोत्तरी, 36 कैजुअल को ट्रेनी बनाने पर सहमति
कोरोना महामारी के समय जब पूरे देश में बड़े पैमाने पर मनमाना वेतन कटौती और ग़ैरक़ानूनी छंटनी दिन दहाड़े हो रही हो, होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर्स इंडिया से एक अच्छी ख़बर है।
कई महीने तक लंबित सेटलमेंट का मुद्दा आखिरकार 16 अगस्त को हल हो गया। नए वेतन समझौते के मुताबिक अगले चार सालों में वेतन में 24,200 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है।
इसके अलावा 36 कैजुअल वर्करों को कंपनी एक साल के अंदर अपने अंडर में ट्रेनी पर रखेगी। यानी एक साल तक वो कंपनी के अंडर कैजुअल रहेंगे।
होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर्स इंडिया एम्प्लाईज़ यूनियन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 2012 में तय वेलफ़ेयर फंड को अमली जामा पहनाया जाएगा।
इस वेलफ़ेयर फंड के में कंपनी 10 लाख रुपये जमा करेगी और मैनेजमेंट और यूनियन मिलकर जल्द ही इसे कार्यरूप देंगे।
बर्ख़ास्त कर्मचारियों के बारे में आश्वासन
बयान में कहा गया है कि 2013 से ओवरटाइम का मुद्दा लटका हुआ था उस पर भी सहमति बन गई है और इसके अनुसार 4000 रुपये प्रति वर्ष सर्विस के हिसाब से देय होगा। समझौते के बाद अब ओवरटाइम ग्रास का डबल देना होगा।
हालांकि समझौते में उन दो मज़दूरों के बारे में भी बात हुई है जिन्हें कंपनी ने बर्ख़ास्त किया है। इसमें आश्वासन दिया गया है कि जल्द ही इस बारे में सकारात्मक हल निकाला जाएगा।
एक और महत्वपूर्ण फैसला हुआ है कि यूनियन, सदस्य मज़दूरों से सहमति लेकर अपने संविधान में यूनियन कार्यकाल को एक साल से बढ़ाकर दो साल करेगी।
उल्लेखनीय है कि बीते साल पांच नवंबर को होंडा के ढाई हज़ार कैजुअल वर्करों का बहुत बड़ा आंदोलन हुआ था और ये क़रीब पांच महीने बाद किसी तरह समझौता हो पाया।
असल में इन कैजुअल मज़दूरों को मंदी के बहाने एक एक कर निकाला जा रहा था और चार नवंबर 2019 को जब सामूहिक रूप से इनकी गेटबंदी का नोटिस जारी हुआ तो ए और बी शिफ़्ट के मज़दूर प्लांट परिसर में ही धरने पर बैठ गए।
कैजुअल वर्करों का ऐतिहासिक आंदोलन
क़रीब 14 दिन बाद ये मज़दूर बाहर आए और फिर कंपनी के सामने मैदान में शुरू हुआ धरना। इस दौरान कंपनी के परमानेंट कर्मचारी की यूनियन साथ खड़ी रही। उस समय यूनियन के प्रधान सुरेश गौड़ ने प्रमुख रूप से कंपनी और डीएलसी के बीच कैजुअल वर्करों के समर्थन में बातचीत जारी रखे हुए थे।
यूनियन के बॉडी सदस्यों की सक्रियता के लिए कंपनी ने छह परमानेंट मज़दूरों को सस्पेंड भी कर दिया, जिसमें सुरेश गौड़ का भी नाम शामिल था।
ये आंदोलन एक समय बहुत ऊंचाई पर गया और ऐसा लग रहा था कि कैजुअल वर्करों के बीच एक इलाकाई एकता क़ायम हो जाएगी लेकिन जैसे जैसे समझौता खिंचता गया, मज़दूर पस्त होते गए और अंततः एक ऐसे समझौते पर उन्हें सहमत होना पड़ा जो उन्हें शुरू से ही नामंज़ूर था।
कैजुअल वर्करों के नेताओं में से एक अतुल त्रिपाठी ने समझौते के बाद घर जाते हुए वर्कर्स यूनिटी के सामने इस समझौते को शर्मनाक माना था।
कंपनी ने इन सभी ढाई हज़ार कैजुअल वर्करों को निकाल दिया है और नए कैजुअल वर्करों की भर्ती की है।
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