प्रवासी मजदूरों को बंधुआ बना देगा ये आदेश, बिफरी ट्रेड यूनियनें
केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के 19 अप्रैल 2020 को जारी आदेश से ट्रेड यूनियनों में उबाल आ गया है। गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि 20 अप्रैल से ”कन्टेन्मेंट (संक्रमण) जोनों के बाहर कुछ सेक्टरों में आर्थिक गतिविधियां चालू करने के लिये किसी राज्य में फंसे हुए मजदूरों को उसी राज्य में नियोजित किया जाएगा और इस उद्देश्य के लिये उनका पंजीकरण और कौशल जांच की जाएगी।
इस पर ट्रेड यूनियनों का कहना है कि अधिकतर फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन समय की मजदूरी नहीं मिली, सिर्फ कुछ जगहों पर बमुश्किल जिंदा रहने लायक भोजन ही मिल पाया।
सरकार, जिसने वादा किया था कि मजदूरी नहीं काटी जाएगी, वह अब लॉकडाउन समय की उनकी मजदूरी और मूल स्थान पर नौकरी की सुरक्षा के बारे में चुप है, और बल्कि उन्हें कहीं भी जहां चाहे नियोजित करने का सुझाव दे रही है।
यह आदेश और कुछ नहीं बल्कि निरंकुश, दमनकारी और मजदूर-विरोधी है। इसलिये हम एक बार फिर मांग करते हैं कि सभी प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी हो और लॉकडाउन समय का वेतन और निर्वाह भत्ता प्रदान किया जाए।
स्वाभाविक है कि एक इंसान के बतौर वे इस वायरस प्रकोप के दौर के बाद अपने परिजनों से मिलना और पीड़ा बांटना चाहेंगे। यह उनका अधिकार है कि जब तक वे काम पर आने के इच्छुक नहीं होते, अपने परिजनों के साथ रहें। उनकी सुरक्षित घर वापसी को आसान बनाने के बजाए, सरकार उन्हें जबरन काम पर आने के आदेश नहीं दे सकती।
एक्टू, एटक और सीटू समेत कई ट्रेड यूनियनों ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि जो भी मज़दूर घर जाना चाहता है उसे घर जाने की इजाज़त मिलनी चाहिए।
एटक की जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने कहा है कि सरकार को तत्काल नॉन स्टॉप ट्रेनें और बसें चलानी चाहिए ताकि मज़दूरों को उनके घर पहुंचाया जा सके।
अचानक घोषित किये गए लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हुए लाखों प्रवासी मजदूर तब से अपने काम वाले राज्यों में फंसे हुए हैं और सरकार के संवेदनहीन रवैये के चलते बिना पैसे, बिना पर्याप्त खाने और आश्रय के अमानवीय जीवन जीने को बाध्य हैं।
गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों ने 12 घंटे के कार्य दिवस को भी कानूनी बना दिया है और बिना दोगुने वेतन के। और अब, कोविड-19 की आड़ में मालिकों ने ट्रेड यूनियनों (फिलहाल एक साल के लिये) पर प्रतिबंध लगाने का शोरगुल मचाना शुरू कर दिया है जिसकी शुरूआत गुजरात से हुई है।
गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज द्वारा उठाई गई यह मांग भत्र्सनीय है। सरकार और कॉरपोरेट घरानों द्वारा कोविड-19 जनित आर्थिक संकट का भार कामगार जनता पर डालने की कोशिशें जारी हैं जिसके तहत इनके अधिकर छीने जा रहे हैं और बंधुआ मजदूरी की स्थितियां बनाई जा रही हैं।
यूनियन नेताओं का कहना है कि अगर आर्थिक गतिविधियां चालू करनी ही हैं तो हर राज्य में मौजूद कार्यबल को काम पर लिया जाना चाहिए, न कि स्थानीय श्रमिकों के बजाए घर जा रहे प्रवासी मजदूरों को जबरन काम पर लगाया जाए।
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