किसान मोर्चे के साथ अब केंद्रीय ट्रेड यूनियनें भी कूदीं मैदान में, 15 को निजीकरण विरोधी दिवस में मज़दूर किसान साथ साथ
किसान मज़दूर एकता ज़िंदाबाद का नारा लगता है अब हकीक़त में तब्दील होने को है। देश की दस बड़ी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के ज्वाइंट फ़ोरम ने संयुक्त किसान मोर्चे के साथ मिलकर सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई छेड़ने का फैसला किया है।
बीते एक मार्च को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के प्लेटफ़ार्म और संयुक्त कियान मोर्चे के बीच एक बैठक हुई जिसमें आने वाले समय में लिए जा रहे कार्यक्रमों में तालमेल पर सहमति बन गई है।
ट्रेड यूनियनों के ज्वाइंट फोरम और संयुक्त किसान मोर्चे की ओर से संयुक्त रूप से बयान जारी कर कहा गया है कि आने वाले दिनों में मज़दूरों और किसानों के बीच अधिक से अधिक तालमेल कायम किया जाएगा।
संयुक्त किसान मोर्चा और ट्रेड यूनियनें 15 मार्च को निजीकरण विरोधी दिवस एकसाथ मनाएंगी और इस दिन रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शन किया जाएगा।
संयुक्त किसान मोर्चे ने 15-16 को बैंकों की हड़ताल को भी अपना समर्थन दिया है। साथ ही 17 मार्च को जीआईसी और 18 मार्च को लाइफड इंश्योरेंस यूनियनों का प्रदर्शन होने वाला है, उसे भी मोर्चे ने अपना समर्थन दिया है।
बयान में कहा गया है कि किसान आंदोलन के शुरू से ही मोर्चे और ट्रेड यूनियनों के बीच तालमेल था। किसान आंदोलन की शुरुआत भी 26 नवंबर 2020 को ट्रेड यूनियनों की आम हड़ताल के साथ हुई थी।
26 नवंबर के बाद लगातार दोनों पक्षों में तालमेल जारी है। संयुक्त किसान मोर्चे के हर आह्वान का ट्रेड यूनियनों ने समर्थन किया है और कार्यक्रम क सफल बनाने में ज़मीनी काम किया है।
फोरम और मोर्चे के बीच हुई बैठक में इस बात पर सहमति बनी है कि किसानों की ज़मीन बचाने, कांट्रैक्ट फार्मिंग को रोकने, जमाखोरी क़ानून में संशोधन को वापस लेने और बिजली संशोधन बिल को वापस कराने के लिए उनके संघर्ष को और तेज़ करने की ज़रूरत है।
ट्रेड यूनियनों ने कहा है कि किसानों की फसलों के लिए तय किए जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य क क़ानूनी रूप देना बेहद ज़रूरी है।
ट्रेड यूनियनों ने मोर्चे के सामने मोदी सरकार की ओर से निजीकरण को बढ़ावा देने और सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में देने के साथ चार लेबर कोड लाने की बात रखी।
ये चार लेबर कोड यूनियन बनाने के अधिकार को ख़त्म कर देंगे और शोषण को शोषण से बचने के लिए बने सुरक्षा उपायों को बेकार कर देंगे।
साथ ही काम की जगह पर सुरक्षा के मानकों को ढीला कर देने और मज़दूरों के लिए बने मौजूदा क़ानूनों को ख़त्म किए जाने की बात भी हुई।
दोनों पक्षों के बीच ये भी बात हुई कि कृषि क़ानून और लेबर कोड बिना संबंधित पक्षों से बातचीत के बनाए गए और यहां तक कि संसद में भी बहुत अपारदर्शी तरीके से पास कराए गए।
बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि सरकार किसानों की ज़मीन छीन कर और मज़दूर वर्ग के शोषण को बढ़ा कर कारपोरेट लूट को बेलगाम कर देना चाहती है क्योंकि वो कारपोरेट घरानों के पक्ष में फैसले ले रही है।
इस बैठक में फैसला हुआ कि ट्रेड यूनियन ज्वाइंट फ़ोरम संयुक्त किसान मोर्चे के कुंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेस वे को छह मार्च क पांच घंटे तक जाम करने और उस दिन अपने घरों पर काले झंडे लगाने के आह्वान को अपना समर्थन देगा और कार्यक्रम को सफल बनाने में ज़मीनी रूप से जुड़ेगा।
ट्रेड यूनियन ज्वाइंट फ़ोरम में इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एक्टू, एलपीएफ़ और यूटीसी शामिल हैं।
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