अगस्त क्रांति के दिन राजधानी दिल्ली की सड़कों पर गूंजी मज़दूरों किसानों की आवाज़
मोदी सरकार की मज़दूर और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 9 अगस्त को राजधानी दिल्ली की सड़कों पर मज़दूरों को रोष दिखा। एक ओर जहां संयुक्त किसान मोर्चे के आह्वान पर महिलाओं ने जंतर मंतर पर ‘किसान संसद’ चलाया वहीं दूसरी ओर ऐक्टू व अन्य ट्रेड यूनियन संगठनों ने मंडी हाउस गोलचक्कर पर प्रदर्शन किया।
मंडी हाउस पर मौजूद सैकड़ों मज़दूरों को दिल्ली पुलिस ने पहले से तय रास्ते पर जुलूस निकालने से रोका, जिसके बाद मंडी हाउस पर ही सभा की गई।
ऐक्टू व अन्य ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा आज देश के कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गए। दिल्ली में आज हुए प्रदर्शन में भारी संख्या में असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों ने भागीदारी की जिनमें मुख्यतः निर्माण क्षेत्र और छोटे कारखानों के मज़दूर शामिल रहे।
प्रदर्शन में महिलाओं की हिस्सेदारी भारी संख्या में थी। प्रदर्शन में मौजूद लोगों ने मज़दूर विरोधी लेबर कोड, बढ़ती बेरोज़गारी और निजीकरण के खतरों पर बात रखी। ज़रूरी खाद्य पदार्थों और रसोई गैस-पेट्रोल के बढ़ते दामों पर मज़दूरों ने नारों के माध्यम से अपना गुस्सा प्रकट किया।
ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने प्रदर्शन में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “बढ़ती महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान जनता को मोदी सरकार द्वारा लगातार धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर लड़ाने की कोशिश की जा रही है। एक ओर किसानों के खिलाफ कानून लाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर मज़दूरों के लिए बने सभी श्रम-कानून खत्म किए जा रहे हैं। सरकार के पास अपना झूठा प्रचार करने और विपक्ष की जासूसी करने के लिए पैसा है पर आम जनता के लिए नहीं। आज हालात ऐसे बन गए हैं कि अगस्त क्रांति दिवस के अवसर पर अपने हक-अधिकार के लिए मज़दूरों और किसानों को सड़क पर उतरना पड़ रहा है।”
हाल ही सरकार द्वारा प्रतिरक्षा (ऑर्डनेन्स) कर्मचारियों की हड़ताल या किसी भी प्रकार के विरोध-प्रदर्शन पर लगाए गए रोक के खिलाफ भी वक्ताओं ने रोष प्रकट किया। प्रदर्शन में सरकारी-सार्वजनिक क्षेत्र के तेजी से हो रहे निजीकरण को लेकर भी विरोध दर्ज किया गया। सभी ट्रेड यूनियनों ने किसान आंदोलन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए आनेवाले दिनों में संघर्ष को तेज करने की बात कही।
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