आज से दो दिन के लिए बैंकों में हड़ताल, किसान मोर्चा ने दिया समर्थन, कारपोरेट विरोधी दिवस मनाने की घोषणा
सरकारी बैंकों को बेचे जाने के मोदी सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ यूनाइटेड फ़ोरम ऑफ़ बैंक यूनियन्स (यूएफ़बीयू) ने 15 और 16 मार्च को दो दिनी हड़ताल की घोषणा की है।
यूएफ़बीयू नौ बैंकों के कर्मचारी यूनियनों का संघ है। इन दो दिनों की हड़ताल के साथ ही बैंकों में कामकाज बंद हुए चार दिन हो जाएंगे क्योंकि 13 मार्च को सेकेंड सैटर्डे था और 14 मार्च को रविवार की छुट्टी थी।
इसके साथ ही केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी 15 मार्च को कारपोरेट विरोधी दिवस मनाने का आह्वान किया है। संयुक्त किसान मोर्चे ने पहले ही घोषणा कर रखी है कि पूरे देश में किसान 15 मार्च को कारपोरेट विरोधी दिवस मनाएंगे।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अपने बजट घोषणा में चार सरकारी बैंकों को बेचने का प्रस्ताव जारी कर दिया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट में आईडीबीआई के अलावा दो सरकारी बैंकों को निजी हाथों में बेचे जाने की घोषणा की थी और घोषणा की थी कि इससे सरकार के पास पौने दो लाख करोड़ का राजस्व हासिल होगा।
चूंकि एक सरकारी बीमा कंपनी को भी बेचे जाने की घोषणा हुई है इसलिए बीमा कर्मचारी भी आक्रोषित हैं।
यूएफ़बीयू के पदाधिकारियों ने बताया कि सरकार द्वारा सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की प्रथम कड़ी में चार बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव संसद में पारित किया गया है। इनमें बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र व इंडिया ओवरसीज बैंक शामिल हैं। ये चारों बैंक अभी लाभ में चल रहे हैं। इसके बावजूद सरकार द्वारा इनके निजीकरण का प्रस्ताव समझ के परे हैं। वर्तमान में बैंकों के मर्जर के बाद 20 से घटकर 14 ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह जाएंगे। इससे आम जनता, किसान, मजदूर व छोटे व्यापारी को बैंकिंग सुविधा में बेहद परेशानी होगी।
यूनियन का कहना है कि प्राइवेट बैंक मनमानी करने लगेंगे। खातों में औसत राशि जमा रखना अनिवार्य हो जाएगा। कोरोना काल में भी देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अधिकारी-कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर आम नागरिकों की सेवा में जुटे रहे।
मोदी सरकार एक तरफ़ आत्मनिर्भर भारत बनाने का नारा दे रही है दूसरी तरफ़ सरकारी उपक्रमों को लगातार बेचने की घोषणा कर रही है, जिससे संगठित क्षेत्र के सरकारी कर्मचारी अपना भविष्य असुरक्षित देख रहे हैं।
किसान मोर्चा ने भी 15-16 की बैंक यूनियनों की हड़ताल का समर्थन किया है और 17 मार्च को कर्मचारी यूनियनों के साथ एक संयुक्त कन्वेंशन करने की घोषणा की है।
ऐसे में लगता है कि किसान और कर्मचारी-मज़दूर यूनियनों के बीच आने वाले समय में एक संयुक्त लड़ाई के लिए बेहतर तालमेल बनेगा। 26 मार्च को ट्रेड यूनियनों और किसान मोर्चे ने भारत बंद का आह्वान किया है।
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