विशाखापट्टनम स्टील प्लांट को निजी हाथों में सौंपने के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरे कर्मचारी
वो 1960 का दशक था जब विशाखापट्टनम के विजाग में एक बड़ा आंदोलन हुआ जिसकी मांग थी यहां एक स्टील प्लांट लगाने की। क़रीब छह दशक बाद आज उस स्टील प्लांट को बचाने के लिए एक कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं।
विशाखापट्टनम स्टील प्लांट के कर्मचारियों ने टे्रड यूनियनों के साथ मिलकर केंद्र सरकार के उस फैसले का विरोध किया, जिसके तहत सरकार इस प्लांट का निजीकरण करना चाहती है।
द हंस इंडियाडाॅटकाॅम के मुताबिक, विरोध के तहत विशाखापट्टनम के उक्कुनागरम में हजारों की तादाद में कर्मचारियों ने धरना दिया।
वर्करों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने कहा कि अगर सरकार अपना प्रस्ताव वापस नहीं लेती तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इस स्टील प्लांट को स्थापित करने में कई वर्करों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है, गर सरकार कपंनी को निजी हाथों में सौंपने के कदम से पीछे नहीं हटी तो वे एक बार फर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हैं।
विशाखापट्टनम स्टील प्लांट की स्थापना 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। उससे पहले इसके निर्माण के लिए साठ के दषक में यहां लंबा आंदोलन चला था।
इस प्लांट को 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देश को समर्पित किया था, प्लांट को रास्ट्रीय इस्पात निगम के नाम से भी जाना जाता है।
फिलहाल इस प्लांट की स्टील उत्पादन क्षमता 73 लाख टन है।
एक फरवरी को पेश किए गए बजट में विता मंत्री ने इस प्लांट में आरआइएनएल के 100 निवेश को मंजूरी दी है, इसके बाद से ही कर्मचार और ट्रेड यूनियनें इस फैसले का विरोध कर रही हैं।
विशाखापट्टनम के सांसद एमवीवी सत्यनारायण ने विरोध कर रहे वर्करों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा, इस मुददे को हम संसद में उठाएंगे और सरकार पर इस फैसले को वापस लेने के लिए दबाव बनाएंगे।
सत्यनारायण फैसले को वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन बार पत्र भी लिख चुके हैं।