बडवाइज़र बीयर फ़ैक्ट्री मज़दूरों के धरने के 500 दिन हुए, कौन करेगा सुनवाई
(July 15, 2019) जुलाई के प्रथम सप्ताह में बीयर बनाने वाली दुनिया की अग्रणी कंपनी बेल्जियम की बडवाइज़र ब्रांड की एबी इनबेव कंपनी के मजदूरों के प्रदर्शन के 500 दिन पूरे हो गए।
तीन साल पहले चार परमानेंट वर्करों को फैक्ट्री से गैरकानूनी तरीके से निकाल दिया गया और उसी के बाद मज़दूर धरने पर बैठ गए। उस दौरान 20 दिनों तक धरना प्रदर्शन के बाद समझौता हुआ लेकिन अभी तक उन वर्करों की कार्य बहाली नहीं हुई।
इस दौरान वर्कर अपने काम से लौट कर धरने पर लगातार बैठते रहे। छुट्टी के दिन पूरी शिफ़्ट के लोग वहां बैठते हैं।
ये कंपनी असल में हरियाणा सरकार की थी जिसका विनिवेश कर दिया गया यानी बेच दिया गया प्राईवेट कंपनी को।
मज़दूरों पर हमले और फिर मुकदमा
लेकिन जैसा होता है सरकारी ज़माने में ही इसमें यूनियन रजिस्टर्ड हो गई थी।
कुछ साल बाद इसने किसी और कंपनी को बेचा और उसने अंततः एबी इनबेव को बेच दिया जो बेल्जियम की कंपनी है और बीयर बनाने वाली दुनिया की अग्रणी कंपनियों में से एक है।
इस तरह धीरे धीरे यूनियन को मैनेजमेंट ने अप्रासंगिक बना दिया।
जब तीन साल पहले इस यूनियन को पुनर्जीवित करने के लिए प्लांट में कमेटी का गठन हुआ तो मैनेजमेंट ने अगुआ कर्मचारियों को निकाल दिया और रजिस्टर्ड यूनियन को मान्यता देने से इनकार कर दिया।
इन धरनारत कर्मचारियों पर पिछले साल अप्रैल में ही हमला किया गया जिनमें कई मज़दूर घायल हुए थे।
मज़दूरों का आरोप है कि मैनेजमेंट के इशारे पर स्थानीय गांव के गुंडों को हमला करने के लिए बुलाया गया था।
यही नहीं इस हमले के बाद इन मज़दूरों पर ही पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया हालांकि मज़दूरों की काउंटर एफ़आईआर में मैनेजर पर भी केस दर्ज हुआ।
- ये भी पढें :- बजट 2019 में जनता को राहत देने की बात तो दूर, आर्थिक हालात की फ़िक्र तक नहीं दिखी
- ये भी पढ़ें :- बजट काट कर, किसानों को हल बैल की ओर लौटने की सलाहः बजट 2019
संघर्ष से मज़दूरों का मनोबल बढ़ा
मज़दूर बताते हैं कि यूनियन को फिर से ज़िंदा करने से पहले मैनेजमेंट वेतन वृद्धि अधिकतम 3000 रुपये करता था, लेकिन जबसे संघर्ष शुरू हुआ है वेतन समझौते में मज़दूर 8000 रुपये तक हासिल करने में सफल रहे हैं।
इस फैक्ट्री में कुल 90 वर्कर परमानेंट हैं जिनमें 60 वर्कर पूरे दमखम और एकजुटता के साथ इस ऐतिहासिक प्रोटेस्ट को चला रहे हैं।
बाकी क़रीब ढाई तीन सौ कैजुअल वर्कर हैं जिनकी हालत और ख़राब है। उनकी तनख्वाह 8900 रुपये के हिसाब से दी जाती है जो हरियाणा सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन है।
इसके अलावा मज़दूरों का आरोप है कि उन्हें ड्रेस, जूते, सुरक्षा उपकरण भी सेकेंड हैंड उपलब्ध कराए जाते हैं।
चूंकि वे कई कई ठेकेदारों के अंडर काम करते हैं इसलिए उनको संगठित नहीं होने दिया जाता और किसी धरना प्रदर्शन में शामिल होने का मतलब है उन्हें नौकरी से बाहर निकाल दिया जाना।
बीएमएस से नाराज़ वर्कर
यहां की मज़दूर यूनियन पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मज़दूर यूनियन बीएमएस से संबद्ध थी लेकिन मज़दूरों के असंतोष के बाद बीएमएस से इस यूनियन ने अपना नाता तोड़ लिया।
यूनियन नेताओं का आरोप है कि मैनेजमेंट के इशारे पर दो दर्जन मज़दूरों को लेकर फ़ैक्ट्री में एक दूसरी यूनियन खड़ी कर दी गई और बीएमएस से वो संबद्ध भी हो गई।
कथित रूप से बीएमएस की संदिग्ध भूमिका को लेकर मज़दूरों में काफ़ी आक्रोश दिखने को मिला। उनका कहना है कि जहां जहां बीएमएस ने कर्मचारियों की अगुवाई का वादा किया वहां वहां वो मैनेजमेंट के पक्ष में समझौता कराने की कोशिशें कीं।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)