होंडा ग्रेटर नोएडा प्लांट में 1000 मज़दूरों को अनफ़िट बता वीआरएस देने का आरोप, मज़दूरों में असंतोष

होंडा ग्रेटर नोएडा प्लांट में 1000 मज़दूरों को अनफ़िट बता वीआरएस देने का आरोप, मज़दूरों में असंतोष

ग्रेटर नोएडा में होंडा कार्स इंडिया लिमिटेड ने अपना प्लांट बंद कर दिया है और क़रीब 1000 मज़दूरों को वीआरएस देकर या राजस्थान के टपूकड़ा के नए प्लांट में ट्रांसफ़र कर इतिश्री भले कर ली हो लेकिन मज़दूरों ने कंपनी पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

मज़दूरों का आरोप है कि कंपनी ने ज़बरदस्ती वीआरएस के फ़ार्म पर साइन करा लिया और साथ में अनुभव सर्टिफिकेट में अनफिट करार दे दिया है।

ज्ञात हो कि कंपनी में क़रीब 2,000 मज़दूर परमेंट थे, जबकि इससे दुगनी संख्या में कांट्रैक्ट लेबर थे। मज़दूरों ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि कि कंपनी ने साल भर पहले भी भारी संख्या में मज़दूरों को वीआरएस देकर निकाला था।

स्थाई मज़दूरों की निकालने की प्रक्रिया बीती जनवरी में ही शुरू कर दी थी।

लेकिन मज़दूरों का आक्रोश इस बात को लेकर है कि मैनेजमेंट ने वीआरएस की राशि अलग अलग दी है और साथ में अनफिट बताया है।

वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुक पर कुछ मज़दूरों ने टिप्पणी की है कि मैनेजमेंट ने लगभग सभी मज़दूरों को अनफ़िट करार देकर ज़बरदस्ती वीआरएस दिया है लेकिन एक साथ सैकड़ों मज़दूर कैसे अनफ़िट हो सकते हैं।

मज़दूरों को अब दूसरी जगह भी नौकरी नहीं मिलेगी इसकी चिंता उन्हें सता रही है।

नवभारत टाइम्स ने कंपनी के कर्मचारी कमेटी के सदस्य जनार्दन भाटी के हवाले से कहा है कि कंपनी में 906 कर्मचारी थे 27 जनवरी से 17 फरवरी के बीच 278 कर्मचारियों को वीआरएस दिया गया तब 40 से 50 लाख रुपये एक कर्मचारी को दिए गए थे।

जबकि मज़दूरों के संगठन इफ़्टू के नेता राधेश्याम ने बताया कि लॉकडाउन खुलने के बाद सितंबर और अक्टूबर में कंपनी ने फिर वीआरएस देने की प्रक्रिया शुरू की। लेकिन इस बार वीआरएस की राशि में 10 लाख रुपये बढ़ा दिए गए।

कर्मचारियों का आरोप है कि कंपनी ने जबरन कर्मचारियों से हस्ताक्षर कराए और हर कर्मचारी को अलग-अलग धनराशि दी गई।

वहीं मैनेजमेंट में वीआरएस ले चुके करीब 125 कर्मचारियों को राजस्थान के प्लांट में शिफ्ट कर कर फिर से काम पर ले लिया गया है।

एनबीटी के अनुसार, मज़दूरों की मांग है कि सभी को राजस्थान के प्लांट में ट्रांसफर किया जाए।

एक मज़दूर गंगाराम कौशिक ने कहा कि ‘भारत में लिखवाया गया है कि मैं मेडिकल अनफिट हूं और काम करने में असमर्थ हूं अनुभव प्रमाण पत्र में अनफिट होने पर अन्य कंपनी की नौकरी नहीं देगी।’

उन्होंने सवाल उठाया कि एक साथ सभी कर्मचारी कैसे अनफिट हो सकते हैं। इस बात को लेकर सभी कर्मचारियों में असंतोष है।

राधेश्याम कहते हैं कि 22 -22 साल की नौकरी के बाद 30-40 लाख रुपये कितने दिन चलेंगे जबकि इन मज़दूरों की सैलरी एक एक लाख रुपये के क़रीब थी।

उनका कहना है कि कंपनी इन पुराने मज़दूरों से छुटकारा पाने के लिए भी प्लांट को बंद करना चाह रही थी और इन्हें निकालना चाह रही थी।

ऐसा पहली बार नहीं है कि कर्मचारियों को निकालने या प्लांट बंद कर देने का प्रयास ना हुआ हो। मजदूरों ने बताया कि 2809 में भी मंदी के दौरान मजदूरों को निकालने का प्रयास किया गया था तब कर्मचारियों के विरोध और सरकार के दखल के बाद मैनेजमेंट अपनी मनमानी करने से चूक गया था।

लेकिन कोविड के बहाने 44 श्रम क़ानून ख़त्म करने के मोदी सरकार की कारपोरेट परस्त नीतियों के चलते कंपनी का मनोबल बढ़ गया और उसने मनमानी करते हुए प्लांट ही बंद कर दिया। जबकि अभी साफ़ नहीं है कि कंपनी ने प्लांट के शट डाउन की आधिकारिक घोषणा की है या नहीं।

उधर, कर्मचारी कमेटी के सदस्य जनार्दन भाटी ने कहा कि यदि प्रशासन से न्याय नहीं मिला तो कर्मचारी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया रस के नाम पर भी अलग-अलग धनराशि दी गई है।

लेकिन यह मामला इतना आसान भी नहीं दिखता है कंपनी ने सबको वीआरएस दे दिया है। यूनियन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की कर्मचारियों में असंतोष तो है लेकिन लड़ने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती।

शायद ये भी एक वजह है कि मज़दूर कंपनी की यूनियन के प्रतिनिधियों के ख़िलाफ़ आक्रोशित हैं और यूनियन नेताओं पर कंपनी के साथ मिली भगत करने के आरोप लगा रहे हैं।

राधेश्याम बताते हैं कि कंपनी में 2003 में एक यूनियन बनाने के प्रयास किए गए थे लेकिन वो सफल नहीं हो पाया क्योंकि मैनेजमेंट और सरकार ने मिलकर ऐसा होने नहीं दिया।

बाद में कंपनी ने खुद एक यूनियन रजिस्टर्ड कराई और अपने भरोसे के लोगों को इसका पदाधिकारी बनाया। असल में ये मैनेजमेंट की जेबी यूनियन थी, जो मैनेजमेंट के मनमाने फैसलों को ढंकने के लिए बनाई गई थी।

अब जब मज़दूर सड़क पर आ गए हैं और उन्हें अनफिट भी करार दे दिया गया है उनका भविष्य अंधकार में पहुंच गया है।

राधेश्याम कहते हैं कि इससे पहले भी जिन लोगों की नौकरी गई, वे अब ठेका मज़दूरी के तहत काम कर रहे हैं और वो भी पहले से बहुत कम सैलरी पर। इन मज़दूरों की नियति भी ऐसी ही दिखाई देती है।

अभी ये तक ये साफ़ नहीं हो पाया है कि कंपनी के प्लांट बंद करने को लेकर कोर्ट में चुनौती देने को लेकर मज़दूर सोच रहे हैं या नहीं। वीआरएस की राशि को लेकर भी कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं।

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Workers Unity Team

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