UPS और ELI योजनाओं पर ट्रेड यूनियनों का विरोध,सरकार से टकराव की तैयारी

UPS और ELI योजनाओं पर ट्रेड यूनियनों का विरोध,सरकार से टकराव की तैयारी

भारत के केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया ने हाल ही में सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (CTU) को एक परिचयात्मक बैठक के लिए आमंत्रित किया है।

इस बैठक में बजट में घोषित रोजगार-लिंक्ड प्रोत्साहन (ELI) और एकीकृत पेंशन योजना (UPS) के कार्यान्वयन पर चर्चा की संभावना है। यह बैठक 28 अगस्त, 2024 को आयोजित की जाएगी, लेकिन इसमें सभी ट्रेड यूनियन शामिल नहीं हो रही हैं।

इस बैठक को लेकर विरोधी खेमे के दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक पत्र के माध्यम से आपत्ति जताई है।

इन यूनियनों ने कांग्रेस समर्थित भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) और अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक के ट्रेड यूनियन समन्वय केंद्र को बैठक में आमंत्रित न किए जाने पर असंतोष व्यक्त किया है।

उन्होंने इसे केंद्र सरकार के “एकतरफा व्यवहार” की निरंतरता बताया है।

वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता अमरजीत कौर ने इस संदर्भ में कहा, “ELI योजना पर ट्रेड यूनियनों के साथ कभी चर्चा नहीं की गई थी। बिना किसी परामर्श के केंद्र ने इस योजना की बजट में घोषणा कर दी है। ऐसे में, श्रम मंत्री एक ऐसी योजना पर चर्चा क्यों करना चाहते हैं जो पहले ही लागू हो चुकी है, यह समझ से परे है।”

उन्होंने आगे कहा कि, “INTUC और UTUC को बैठक में न बुलाने का निर्णय सरकार के एकतरफा व्यवहार को दर्शाता है”।

श्री मंडाविया के श्रम मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद यह पहली बार है जब उन्होंने सभी ट्रेड यूनियनों की सामूहिक बैठक बुलाई है।

श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन पर यूनियनों की सहमति प्राप्त करने के लिए भी सरकार ने यह कदम उठाया है।

भारतीय मजदूर संघ ने भी यूपीएस(UPS) का विरोध किया

UPS की घोषणा के बाद से ही केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की ओर से इसका विरोध हो रहा है।

यहां तक कि संघ परिवार की ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने भी UPS के तहत सरकारी कर्मचारियों से अंशदान जारी रखने पर सवाल उठाए हैं।

INTUC ने बैठक से बाहर रखे जाने पर असंतोष जताते हुए कहा है कि, ‘वह UPS और पुरानी पेंशन योजना की बहाली जैसे मुद्दों पर सभी ट्रेड यूनियनों के बीच एकता बनाने की कोशिश करेगी’।

INTUC के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आर. चंद्रशेखरन ने कहा, “अगर भारत आर्थिक रूप से विश्व शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो गरीब कर्मचारियों से अंशदान की मांग क्यों की जा रही है?”

उन्होंने UPS को एक अंशदायी पेंशन योजना बताते हुए इसका विरोध किया और कहा कि इसे कोई भी कर्मचारी स्वीकार नहीं करेगा।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि, ‘ पेंशन उस कर्मचारी का अधिकार है, जिसने देश के विकास में योगदान दिया है। पेंशन को बुढ़ापे में सुरक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए’।

चंद्रशेखरन ने सरकार की आर्थिक नीतियों को मज़दूर विरोधी करार देते हुए कहा कि, ‘वर्तमान सरकार ने जानबूझकर सभी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को कमजोर कर दिया है’।

वही केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा आयोजित बैठक में INTUC और अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक के ट्रेड यूनियन समन्वय केंद्र को आमंत्रित न किए जाने के विरोध में एकजुट होकर अपनी आगामी रणनीति बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने का फैसला किया है।

इसके साथ ही यूनियनों का कहना है कि, ‘अगर सरकार ट्रेड यूनियनों की मांगों को अनदेखा करती है, तो यूनियनें न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती हैं। वे UPS और ELI जैसी नीतियों को संवैधानिक और मज़दूर अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कानूनी कदम उठा सकती हैं’।

केंद्रीय श्रम मंत्री और ट्रेड यूनियनों के बीच पेंशन और रोजगार-लिंक्ड प्रोत्साहन योजनाओं पर जारी यह विवाद न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश के श्रमिकों और उनके भविष्य की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंताएं पैदा करता है।

(द हिन्दू की खबर से साभार)

 

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Abhinav Kumar

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