उत्तराखंडः भारी विरोध के बीच 4000 लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलना शुरू, 300 मकान जमींदोज़
उत्तराखंड में नैनीताल ज़िले के लालकुआं में नगीना कॉलोनी में गुरुवार को प्रशासन ने 300 घरों पर बुलडोजर चला कर ध्वस्त कर दिया. यहां करीब चार हज़ार लोगों के घर हैं और रेलवे ने इस ज़मीन पर दावा किया है.
कथित अतिक्रमण के बहाने रेलवे और जिला प्रशासन की मौजूदगी में भारी पुलिस फोर्स ने इन घरों पर बुलडोज़र चलाना शुरू कर दिया है.
उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने बगैर पुनर्वास की योजना के चार जेसीबी मशीनों को लगाकर लगभग 300 से अधिक घरों को ध्वस्त कर दिया और हजारों परिवारों को बेघर कर दिया.
जबकि सुप्रीम कोर्ट का पुराना निर्देश है कि बिना पुनर्वास के किसी बस्ती को उजाड़ा नहीं जा सकता.
पुलिस ने बस्ती वासियों पर लाठीचार्ज किया जिसमें कुछ लोगों को चोटें आईं. इस दौरान विरोध कर रहे करीब दो दर्जन से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया.
बुधवार को नैनीताल हाई कोर्ट ने नगीना कॉलोनी में करीब चार हजार लोगों के रिहाइश मामले पर सुनवाई की.
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने निवासियों की याचिका को निरस्त करते हुए कथित अवैध कब्जा हटाने के आदेश दिए थे.
हाई कोर्ट नैनीताल से बस्ती वासियों की याचिका रद्द होने के बाद प्रशासन ने उनको सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखने तक का भी समय नहीं दिया.
गुरुवार को सुबह 10 बजे घरों पर बुलडोजर चलना शुरू हुआ.
नगीना कॉलोनी के लोगों एवं प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तन कामी छात्र संगठन, आम आदमी पार्टी सहित तमाम राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों ने शुरुआत में भारी विरोध प्रदर्शन किया.
पुलिस ने बल प्रयोग के बाद दर्जनभर प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया.
आंदोलन की अगुआई कर रहे प्रगतिशील महिला एकता केंद्र की अध्यक्ष बिंदु गुप्ता और पुष्पा आदि शामिल थे, जिन्हें देर रात रिहा किया गया.
स्थानीय लोग बताते हैं कि वे पिछले 40-50 साल से रह रहे हैं और अब अचानक रेलवे इसे अतिक्रमण बता रही है.
ये बस्ती अमूमन ग़रीबों और मज़दूरों परिवारों का आसरा है और प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इनके पुनर्वास की बिना कोई योजना के घरों को ध्वस्त किया जा रहा है और यह नागरिक के मूल अधिकारों से उनको वंचित करने की कोशिश है.
डबल इंजन सरकार का डबल हमला
भाजपा सरकार कहती रही है कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की डबल इंजन सरकार से विकास भी दुगनी रफ़्तार पकड़ेगा. लेकिन पूरे देश में जिस तरह ग़रीबों, मज़दूरों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक लोगों से उनकी ज़मीनें छीनी जा रही हैं, उससे लगता है कि डबल इंजन सरकार जनता पर डबल कहर बनकर टूट पड़ी है.
अभी हाल ही में मणिपुर में कुकी आदिवासियों को उनके जंगल के खदेड़ने की बड़े पैमाने पर कार्रवाई के ख़िलाफ़ बड़ा आक्रोश फूट पड़ा था और दो दिन तक मणिपुर में दंगे होते रहे.
दिल्ली से सटे हरियाणा में साल भर पहले खोरी कॉलोनी के 10,000 घरों पर बुलडोजर चला दिया गया जोकि दिल्ली की संसद से महज 20 किलोमीटर दूर है.
उसी तरह दिल्ली में रेलवे के किनारे रह रहे दसियों लाख लोगों को उजाड़ने की लंबे समय से बीजेपी की सरकारें कोशिश कर रही हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के दखल से अभी इन पर कहर रुका हुआ है.
अभी दो दिन पहले ही दिल्ली के मैरिडियन होटल के पीछे बसी जेजे क्लस्टर बस्ती को ढहाने के लिए प्रशासन ने नोटिस जारी किया है. यहां 500 लोग सन 1995 से ही झुग्गी बना कर रह रहे हैं.
दिल्ली में ही अबतक कई कितनी झुग्गियों और घरों को अवैध बताकर तोड़ दिया गया.
लॉकडाउन से ठीक पहले पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थित शकूर बस्ती को तोड़ने के लिए रेलवे ने नोटिस भेजा था जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी.
ये ज़मीन किसकी और किसे दी जाएगी?
जो ज़मीन किसी के नाम आवंटित नहीं है, उस पर सरकार अपना दावा ठोंकती है. इसके अलावा उसे पूंजीपतियों या सरकारी परियोजनाओं के लिए जो ज़मीन चाहिए उसे जबरदस्ती हथिया लेती है.
अभी हाल ही में बनारस में 16 मई 2023 की सुबह बुलडोजर लेकर पहुंची पुलिस और किसानों के बीच हुई तीखी झड़प हुई जिसके बाद पुलिस ने बर्बर लाठी चार्ज किया और किसानों के घरों में घुस कर मारपीट की.
मुंबई में कई झुग्गियों को उजाड़ने की योजना पर काम हो रहा है लेकिन उससे पहले उन्हें पुनर्वास के तहत घर मुहैया भी कराने की योजना पर काम जारी है तो बाकी जगह क्यों नहीं?
जम्मू कश्मीर में आज़ादी के पहले से कब्ज़े वाले घरों और इमारतों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है जिसके बारे में पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी आवाज़ उठा चुके हैं.
जिस ज़मीन पर आज़ादी के पहले से या बीते 20-25 साल से लोग रह रहे हैं, उस पर बीजेपी सरकारों ने अपना दावा ठोंक कर कब्ज़े से मुक्त कराने का अभियान छेड़ रखा है.
लेकिन ये ज़मीन किसकी है? एक लोकतांत्रिक सरकार का ज़िम्मा है कि जो लोग लंबे समय से रह रहे हैं उन्हें कब्ज़े का सरकारी कागज दिया जाए न कि उन्हें उजाड़ा जाए.
सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन ज़मीनों को खाली कराकर सरकार किसे देना चाहती है? अभी जिस तरह रेलवे की ज़मीनों को औने पौने दामों पर अडानी और सरकार के चहेते पूंजपतियों को दिया जा रहा है, उससे यही लगता है कि कार्पोरेट घरानों, बड़े पूंजीपतियों को ये ज़मीनें दी जानी हैं और इसीलिए सरकार इतनी तेज़ी से बुलडोज़र लेकर निकल पड़ी है.
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