उत्तरकाशी सुरंग से निकाले गए सभी 41 मज़दूर, तस्वीरों में देखिए बाहर निकले मज़दूरों के चेहरे की खुशी
उत्तराखंड की उत्तरकाशी सुरंग में फंसे सभी 41 मज़दूर सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए हैं। पूरे 17 दिनों के बाद मज़दूरों के परिजन भी राहत की सांस ले रहे हैं।
बिहार के आरा के रहने वाले एक मज़दूर के परिवारवालों ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ”ये खुशी का दिन है। इसे हम शब्दों में नहीं बयां कर सकते।’
मंगलवार की शाम पांच बजे ही पता चल गया था कि मलबे में डाला गया पाइप मज़दूरों तक पहुंचने वाला है और रात 9 बजे तक मज़दूरों को निकाले जाने की ख़बर आई।
जैसे ही ख़बर आई कि मज़दूर आज रात तक निकाल लिए जाएंगे उच्च अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों का जमावड़ा लग गया।
मौके पर केंद्रीय मंत्री वीके सिंह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी पहुंचे हुए थे और जैसे ही मज़दूरों को निकाला गया उन्हें सबसे पहले वीके सिंह और धामी से मिलवा गया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि “सुरंग से निकले मजदूरों को 1 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी।”
हालांकि जिस कंपनी के लिए मज़दूर काम कर रहे थे उन्हें मुआवज़ा मिलेगा या नहीं अभी कुछ पता नहीं है।
रेस्क्यू के तुरंत बाद मज़दूरों को अस्पताल ले जाने के लिए दर्जनों एंबुलेंस टनल के बाहर हफ़्ते भर पहले ही खड़ा कर दी गई थीं, जब उनके निकलने की संभावना जताई जाने लगी थी। हालांकि मशीन 12 मीटर पहले ही फेल हो गई और सोमवार से हाथ से खुदाई करके पाइप डाला गया।
सभी वर्करों को मुख्यमंत्री पुष्कर धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने माला पहना कर और शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया और कुशलता की जानकारी ली।
क़रीब एक हफ़्ते पहले ही पाइप में कैमरा डालकर मज़दूरों से बात की गई थी और उन्हें धैर्य बनाए रखने के लिए कहा गया था। इसी पाइप से उन्हें ऑक्सीजन और खाने पीने की चीजें भेजी जा रही थीं।
इस राहत और बचव कार्य में जो वर्कर लगे थे उनकी रात दिन की कड़ी मेहनत की सभी लोग तारीफ़ कर रहे हैं।
दिपावली के दिन जब सुरंग का एक हिस्सा गिर गया और दूसरी तरफ अंधी सुरंग में 41 मज़दूर फंस गए तो इस पर चार दिन तक हीला हवाली होती रही, जिससे गुस्साए मज़दूरों के साथियों ने सुरंग के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि कोई भी उच्च अधिकारी या नेता या मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं पहुंचा।
सुरंग में गिरे 57 मीटर मलबे में पाइप घुसाने के लिए सुरंग बनाने वाली ऑगर मशीन को लगाया गया। इसे लगाने में भी कई दिन देर हो चुकी थी। लेकिन 10 मीटर की ड्रिलिंग के बाद ये खराब हो गई। उसके बाद दो तीन दिन तक काम बाधित रहा। इसके बाद दिल्ली से एक बड़ी अमेरिकन ऑगर मशीन सेना के हेलीकॉप्टर से उत्तराखंड पहुंचाया गया। लेकिन ये भी मशीन 47 मीटर बाद जवाब दे दी गई।
कई बार उम्मीद जगी लेकिन कई बार उम्मीद धुमिल भी हुई। कथित इंटरनेशनल एक्सपर्ट और देश विदेश के जानकारों की मदद ली गई। कई और वैकल्पिक प्लान बनाए गए। एक प्लान था पहाड़ के ऊपर से नीचे की ओर कुएं जैसा सुरंग बनाना। लेकिन वो भी कामयाब नहीं था, और ऐसा लगता है कि ये दिखाने के लिए था क्योंकि बाद में पता चला कि अगर टनल के ऊपर पानी का प्राकृतिक स्रोत भंडार होगा तो टनल में पानी भर जाएगा और मज़दूर मारे जाएंगे। समय रहते इस मूर्खता भरे काम को रोक दिया गया।
कथित रूप से एक इंटरनेशनल एक्सपर्ट को बुलाया गया जिसके बारे में कहा गया कि वो रेस्क्यू ऑपरेशन में इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नाल्ड डिक्स हैं। डिक्स ने दो दिन पहले कैमरे के सामने ये कहकर सबको चौंका दिया कि मज़दूरों को क्रिसमस तक निकाल लिया जाएगा। इससे निराशा और गहरी हो गई थी।
मज़दूरों और रेस्क्यू टीम के बीच जब 12 मीटर की दूरी बची थी तो उत्तराखंड की अति धार्मिक धामी सरकार ने सुरंग के बाहर एक अस्थाई मंदिर रखवा दिया और यह डिक्स महोदय वहां घुटने टेक कर बैठ गए और फोटो खिंचवाया। समझ नहीं आता कि एक इंटरनेशनल साइंटिस्ट या रेस्क्यू एक्सपर्ट इस अंधविश्वास के साथ मज़दूरों की कितनी मदद कर पाया होगा।
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