आंबेडकर ने क्यों कहा था कि भारत में लोकतंत्र सफल नहीं होगा?
भारत में लोकतंत्र कामयाब नहीं होगा. ये किसी और का नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार रहे डॉ. भीमराव आंबेडकर का बयान है.
उन्होंने 1953 में दुनिया की जाने माने मीडिया संस्थान बीबीसी को दिए इंटरव्यू में ये बात कही थी. हाल के सालों में बीबीसी ने इसे आर्काईव से निकाल कर जनता के बीच फिर से प्रसारित किया.
उस पूरे इंटरव्यू का मजमून बीबीसी ने बड़ी मेहनत के साथ तर्जुमा किया और आज ये बेशक़ीमती वीडियो सार्वजनिक रूप से यूट्यूब पर उपलब्ध है.
हम इस पूरे साक्षात्कार के टेक्स्ट को यहां प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसमें अम्बेडकर की दूरदृष्टि और आगे क्या करना है, ये बात स्पष्ट होती है.
पूरा साक्षात्कार पढ़ें
BBC : क्या भारत में लोकतंत्र कामयाब रहेगा?
आंबेडकर : नहीं, ये सिर्फ नाम मात्र के लिए होगा। हर 5 साल में एक बार होने वाले चुनाव, प्रधानमंत्री का पद आदि.. आदि।
BBC : क्या आपको लगता है कि चुनाव जरूरी है?
आंबेडकर : नहीं, अगर चुनावों से अच्छे लोगों का चयन नहीं होता, तो ये अहम नहीं है।
BBC : लेकिन सरकार की नजर में चुनाव अहम नहीं है?
आंबेडकर : क्या, मतदान का विचार बदलाव लाने के लिए, लोगों को अब तक ये बात समझ नहीं आई है? क्या, आपकी चुनावी व्यवस्था ने वाकई लोगों को अपने पसंद का उम्मीदवार चुनने की आजादी दी है? मसलन, कांग्रेस अपील करती है कि बैल के निशान पर मतदान करें। लेकिन क्यों आम जनता ऐसा सोचती है कि वह बैल उनकी नुमांदगी करता है? कोई इस बात को नहीं समझता कि बैल के निशान पर एक गधा खड़ा है।
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BBC : मैं गुटबाजी के आधार पर नहीं बोलूंगा। लेकिन जब आप भोला भाला कहते हैं तो इससे आपका क्या मतलब है?
आंबेडकर : जनतंत्र यहां काम नहीं करेगा, क्योंकि यहां की सामाजिक व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र के प्रारूप से मेल नहीं खाती।
BBC: क्या आप ऐसा कह सकते हैं कि मौजूदा व्यवस्था असमानता पर आधारित है?
आंबेडकर : जी, हां! ये सिस्टम असमानता पर आधारित है।
BBC : आगे क्या होगा?
आंबेडकर : ये सामाजिक व्यवस्था इतनी आसानी से नहीं बदलने वाली। ये मैं मानता हूं कि शांतिपूर्ण तरीके से सिस्टम को बदलने में काफी वक्त लग जाएगा। लेकिन क्या किसी को इसके लिए कोशिश नहीं करनी चाहिए?
‘कम्युनिस्ट सिस्टम इसका एक विकल्प हो सकता है’
BBC: क्या, आपके प्रधानमंत्री इसके बारे में कई भाषण और बयान देते रहे हैं?
आंबेडकर : ये कभी न खत्म होने वाले भाषण हैं, लेकिन भाषणों से बात नहीं बनती। मैं भाषणों से तंग आ चुका हूं। अब कदम उठाए जाने की जरूरत है।
BBC: आप किस तरह के कदम उठाए जाने की उम्मीद करते हैं?
आबंडेकर : कोई ठोस योजना होनी चाहिए, कोई संगठन या संस्थान होना चाहिए, जो इस सिस्टम को बदल सके।
BBC: इसके लिए कौन सी वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है?
आंबेडकर : कम्युनिस्ट सिस्टम इसका एक विकल्प हो सकता है।
BBC: क्या, आपको लगता है कि इससे देश को फायदा होगा? क्या इससे देश के लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा?
आंबेडकर : जी, हां। इससे सुधार आएगा। लोगों को चुनावों से ज्यादा फिक्र अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी होने की हैं। अमेरिका में लोकतंत्र कामयाब है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वहां कभी भी साम्यवाद आएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां प्रति व्यक्ति ज्यादा है।
BBC:आपको ऐसा क्यों लगता है कि भारत में ऐसा नहीं हो सकता?
आंबेडकर : यहां ये कैसे हो सकता है? लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में जमीन नहीं है। यहां बारिश काफी कम होती है। बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं। क्या किया जा सकता है? मुझे नहीं लगता कि इस समस्या को सुझाए बिना उस समस्या को सुलझा सकते हैं।
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BBC: यहां भी ऐसा करना होगा?
आंबेडकर : जी, हां! युद्ध के मैदान में आप हमला करते हैं, ना? ये बात नहीं सोचते कि सामने वाले को कितना दर्द हो रहा है? आपको आपके हितों की रक्षा करनी होती है।
BBC:आपको लगता है कि मौजूदा व्यवस्था ढह जाएगी?
आंबेडकर : जी, हां! ये सिस्टम ढह जाएगा। मैं अपने लोगों के बारे में सोच रहा हूं। मैं काफी उत्सुक और उत्साहित हूं। ये लोग समाज के सबसे निचले तबके से हैं। जब किसी इमारत की बुनियाद ढहती है, तो सबसे पहले निचली मंजिल ज़मींदोज़ होती है।
BBC: क्या ‘मेरे लोग’ कहने से आपका मतलब उन लोगों से है, जिन्हें अछूत माना जाता है?
आंबेडकर : जी हां! और कम्युनिस्ट क्या कर रहे हैं? नहीं। क्योंकि, उन्हें मुझमें और मुझे उनमें यकीन है। वो मुझसे सवाल करते हैं, लेकिन मैं उन्हें कोई जवाब नहीं देना चाहता।
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