“सरकार के विकास के दावे आखिर जमीन पर क्यों नहीं दिखते ?”

“सरकार के विकास के दावे आखिर जमीन पर क्यों नहीं दिखते ?”

मंगलवार को राज्यसभा में ‘देश में आर्थिक स्थिति पर अल्पकालिक चर्चा’ के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबरदस्त बहस देखने को मिली.

चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस संसद और पूर्व वित्त मंत्री पी. चितम्बरम ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘ देश अमृतकाल के दौर से गुजर रहा है. सरकारी आंकड़ों कि माने तो दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रोथ रेट हमारे देश का है.हम दुनिया कि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं.अंतर्राष्ट्रीय निवेश आ रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद मुद्रास्फीति और बेरोजगारी में कोई कमी क्यों नहीं आ रही ?”

उन्होंने आगे कहा कि ‘ये सरकार जो हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा कर सत्ता पर काबिज हुई वो इस मुद्दे पर बात क्यों नहीं करती. क्यों बेरोजगारी दर अपने उच्चतम स्तर पर है.’

बहस के दौरान उन्होंने सरकार के श्रम विभाग द्वारा जारी लेबर सर्वे के आंकड़ों का जिक्र किया.

आंकड़े बताते है कि ‘ देश में मौजूदा WPR (Worker population ratio ) 46 प्रतिशत है. पहली बात तो ये कि सरकार के दावे के उल्ट है. अगर विकास दर इतना उच्च है तो फिर ये इतना कम क्यों?’

इस 46 % WPR का 69 % पुरुष हैं जबकि महिलाओं कि संख्या मात्र 31% है.

फिर यही आंकड़े बताते हैं कि इस कुल WPR का मात्र 50 % से भी कम असल में काम कर रहे हैं.

इस तरह देखा जाये तो कुल जनसंख्या का 23 % ही असल में काम कर रहा है. और खुद सरकारी आंकड़े बात रहे हैं कि पिछले 9 साल से कमोबेश यही हाल है.

आगे वो कहते है कि ‘ अगर हम लगातार विकास कि राह पर हैं तो आखिर ये आंकड़े क्यों नहीं सुधर रहे हैं.’

आर्थिक बचत 50 साल में अपने न्यूनतम स्तर पर

रोजगार से जुड़े आंकड़ों के आधार पर वो बताते है कि ’15 से 24 साल आयु वर्ग लोगों में 23.22 % बेरोजगारी दर देखने को मिल रही है.वैसे ग्रेजुएट जिनकी उम्र 25 साल से कम है उनमें बेरोजगारी दर 42% ,25 से 29 साल वाले ग्रेजुएट में 33 % जबकि 30 से 34 आयु वर्ग के लोगों में यही बेरोजगारी दर 10 % के आस-पास देखने को मिल रही है.’

चितम्बरम कहते है कि ‘ आखिर ये विकास नौकरियां क्यों नहीं पैदा कर पा रहा है. या फिर ये विकास के आंकड़े बस खोखले हैं.

इसके साथ ही रेगुलर वेज वाले रोजगार में भी गिरावट देखने को मिल रही है जो 24% से घट कर 21% हो गया है.हुई काम कि क्वालिटी के साथ उनकी संख्या भी ख़राब हुई.

दूसरी तरफ उच्च मुद्रास्फीति भी लोगों कि आर्थिक स्थिति को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है.

RBI के आंकड़े बताते है कि CPI इन्फ्लेशन भी लोगों के सहने कि क्षमता से आगे निकल चुकी है. इन आंकड़ों में भी 4 % से 6 % कि बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.

वो आगे बताते है कि ‘ लोग अपने घरेलु खर्च में कटौती कर रहे हैं और उन खर्चों को चलाने के लिए भी उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है. लोगों को खर्च चलाने के लिए अपनी सम्पत्ति तक बेचनी पड़ रही है.’

आंकड़ों के आधार पर चितम्बरम कहते हैं ” लोगों कि आर्थिक बचत का स्तर ऐतिहासिक रूप से 50 % साल के न्यूनतम स्तर 5.1 % पर चला गया है.”

तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने भी इस बहस में हिस्सा लिया.

दाल कि कीमतों में 120 % की बढ़ोतरी

उन्होंने कहा ” जब तक आप देश कि आर्थिक स्थिति को शेयर मार्केट या पूंजीपतियों के चश्मे से देखा जायेगा,देश कि असली हकीकत का पता नहीं चलेगा.हमे आर्थिक हालातों कि समीक्षा हमेशा समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों के आधार पर करनी होगी.”

बढ़ती महंगाई पर अपनी बातों को रखते हुए ब्रायन कहते हैं कि” अगर हम 2014 और 2023 के बीच खाद्य वस्तुओं कि बढ़ते दामों पर चर्चा करे तो पाते हैं कि चावल के दाम में 56 % ,गेहूं के दामों में 59 %,दूध के दाम में 61 %,टमाटर के दाम में 115 % और तुअर कि दाल कि कीमतों में 120 % कि बढ़ोतरी देखी गई हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि ‘1 % अमीर लोगों का देश की 40 % सम्पदा पर कब्ज़ा है जबकि हाशिये के 50 % मात्र 3 % सम्पदा पर अपना अधिकार रखते हैं. ये बताने के लिए काफी है कि किस स्तर कि असामनता है.’

ब्रायन ने हाल ही में जारी एनसीआरबी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि आखिर क्यों देश में हर घंटे एक किसान को आत्महत्या करना पड़ रहा है.

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Abhinav Kumar

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