मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ क्यों तूफानी होने जा रहा है नवंबर?
By शशिकला सिंह
देशभर की ट्रेड यूनियनों ने दिल्ली को एक बार फिर से अपनी ताकत दिखाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसी महीने नवंबर में कई मज़दूर संगठनों ने मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ विशाल धरने प्रदर्शन और मार्च निकालने का ऐलान किया है।
इस प्रदर्शन में देशभर से भारी संख्या में मज़दूर संगठन, मज़दूर जन और किसान मज़दूरों के भाग लेने की उम्मीद जताई जा रही है। इतना ही नहीं, इस महीने किसानों ने भी देश भर में राजभवनों तक मार्च निकालने का ऐलान किया है।
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कब, कहां और कैसे होगा प्रदर्शन?
5, 6 और 7 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर नए लेबर कोड के विरोध में TUCI ने धरने का किया ऐलान है। टीयूसीआई द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि नए लेबर कोड में मजदूरों को प्रताड़ित करने और बड़े कॉरपोरेट्स को लाभ देने की मंशा छिपी हुई है।
साथ ही TUCI का आरोप है कि जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, उसकी तुलना में मजदूरों/कामगारों को उतनी मजदूरी/ भत्ता नहीं मिलता है। वे अपनी रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति भी आसानी से नहीं कर पाते हैं।
इसके बाद मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने आगामी 13 नवम्बर को दिल्ली के रामलीला मैदान से राष्ट्रपति भवन तक रैली का ऐलान किया गया है।
ज्ञात हो कि पिछले महीने दिल्ली में मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) की ओर से मजदूर विरोधी नीतियों और निजीकरण के खिलाफ उत्तर भारत का मजदूर कन्वेंशन आयोजित हुआ था। जिसमें आगामी 13 नवम्बर को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान से राष्ट्रपति भवन तक रैली का ऐलान किया गया था।
वहीं इस महा रैली को समर्थन देते हुए बीते 5 सितम्बर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ट्रेड यूनियनों ने एक अधिवेशन का आयोजन किया गया था। इसमें भारतीय ट्रेड यूनियनों में से (CITU), अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS), और अखिल भारतीय कृषि श्रमिक संघ (AIAWU) के सदस्यों और पीड़ित मज़दूरों और किसान मज़दूर ने भाग लिया था।
देश में मौजूदा सरकार की नीतियों का विरोध न केवल मेहनतकश मज़दूर वर्ग द्वारा किया जा रहा है, बल्कि किसान भी लम्बे समय से आवाज बुलंद कर रहे हैं।
नवंबर में प्रदर्शनों की इस लिस्ट में SKM का भी एक विशाल प्रदर्शन शामिल है। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने ऐतिहासिक किसान आंदोलन की दूसरी सालगिरह पर 26 नवंबर को पूरे देश में ‘राजभवन’ तक मार्च निकालने का ऐलान किया है।
एसकेएम ने कहा कि ‘राजभवन मार्च’ और पूरे देश में राज्यपालों को सौंपे जाने वाले ज्ञापन को अंतिम रूप देने के लिए 14 नवंबर को दिल्ली में विशाल बैठक का आयोजन किया जायेगा।
ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों की मुख्य मांगे
मासा, TUCI व अन्य ट्रेड यूनियनें लम्बे समय से नए लेबर को रद्द करने की मांग कर रही है। ट्रेड यूनियनों की मुख्य मांगों में सबसे पहली डिमांड है कि नए लेबर कोड तत्काल रद्द हो। मज़दूरों के हित में क़ानून में संशोधन किया जाना चाहिए।
मोदी सरकार द्वारा अलग-अलग सेक्टर में निजीकरण हो रहा है। इन खबरों को वर्कर्स यूनिटी प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा है।
निजीकरण के विरोध में मज़दूर संगठनों की दूसरी मांग है – जनता के खून-पसीने से खड़ी देश की सरकारी सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने-निजीकरण पर लगाम लगाई जाये।
जहां एक तरफ कुछ राज्य जैसे ओडिशा और कांग्रेस शासित राजस्थान में ठेका प्रणाली को खत्म किया जा रहा है। इसी तरह देशभर में काम हो। तीसरी मांग है – ठेका प्रथा, नीम ट्रेनी-फिक्स टर्म जैसे धोखाधड़ी वाले रोजगार को समाप्त कर सबको स्थायी रोजगार दिया जाना चाहिए।
मोदी सरकार अर्थव्यवस्था में मंदी का बहाना बनाती है। जिसके कारण देश में महंगाई दर लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन मज़दूर को मिलने वाली मज़दूरी में नाम मात्र का इजाफा ही किया जा रहा। इस मुद्दे पर ट्रेड यूनियनों कि चौथी मांग है कि न्यूनतम दैनिक मज़दूरी ₹1000 तय की जानी चाहिए।
मोदी सरकार नए लेबर कोड को लागू करने की तैयारी में लगी है। इसका विरोध देखभर में हो रहा है। इसी संबंध में यूनियनों की पांचवी मांग है कि सभी श्रेणी के मज़दूरों को यूनियन बनाने, आंदोलन करने के अधिकारों को ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए।
वहीं, हजारों की संख्या में किसानों ने नवंबर 2020 में लॉकडाउन के बीच 2019 में पास कराए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं का घेराव किया था।
करीब 13 महीने तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों की मांग के आगे आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झुकना पड़ा। नवंबर 2021 में इन कानूनों को वापस ले लिया गया। लेकिन किसान संगठनों की अन्य मांगों पर अभी तक कोई विचार नहीं किया गया है।
किसान संगठनों ने अब अपनी लंबित अन्य मांगों को पूरा करवाने के लिए देशभर में मार्च का ऐलान किया है।
SKM की अन्य प्रमुख मांगों में एमएसपी पर कानून बनाना, बिजली संशोधन बिल को वापस लेना, आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवज़ा देना, दर्ज मुकदमें वापस लेना, पराली जलाने पर लगने वाले भयंकर जुर्माने को खत्म करने और लखीमपुर खीरी कार हमले के कथित जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी की मांग शामिल है।
क्यों नवंबर में ही हो रहे प्रदर्शन
नवंबर में एक साथ इतनी मात्रा में प्रदर्शन होने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि इस महीने संसद का शीतकालीन सत्र होता है। इसलिए मज़दूर संगठनों को इस बात की आशंका है कि आगामी शीत सत्र के दौरान मोदी सरकार नए लेबर कोड को लागू न करवा दे।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संसद का शीतकालीन सत्र सामान्यत: नवंबर माह के तीसरे सप्ताह में आरंभ होता है।
गौरतलब है कि मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियन लगातार संघर्ष कर रही है। पहले किये गए प्रदर्शनों के समय कई मज़दूर नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया था।
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मोदी सरकार द्वारा लाए मजदूर विरोधी चार लेबर कोड को समस्त देश में लागू करने के एजेंडे के साथ विगत 25-26 अगस्त को तिरुपति, आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसका उद्घाटन स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। इसमें केंद्रीय श्रममंत्री के साथ विभिन्न राज्यों के श्रम मंत्रियों की भागीदारी रही थी।
इसके मद्देनजर लेबर कोड के खिलाफ देश भर में मज़दूर संगठनों व ट्रेड यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। तिरुपति में इस विरोध को कुचलने के लिए पहले से तैनात 2000 पुलिस बल द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बर्बरतापूर्वक बल प्रयोग करते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
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