हरियाणा में फैलती सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ मेहनतकश जनता की अपील
हरियाणा में फैलती हिंसा और नफरत के ख़िलाफ़ खड़े हों बटवारे की राजनीती को मेहनतकश मज़दूर-किसान की एकता से हराना होगा
हरियाणा के नुह जिले से भड़की हिंसा हरियाणा राज्य व पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयासों का हिस्सा है. 2024 के चुनाव के नज़दीक आते ही धार्मिक तनाव को भाजपा-आरएसएस-विहीप-बजरंग दल द्वारा संगठित रूप से हवा दी जा रही है.
इस हिंसा की असलियत को पहचानना और इसके माध्यम से नफरत की राजनीति में खिचे चले जाने से खुद को और अपने आस पास के लोगों को रोकना आज हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है.
मौजूदा हिंसा विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा 31 जुलाई को निकाली जा रही ‘बृज मंडल जलअभिषेक यात्रा’ के दौरान हुए पत्थराव से शुरू हुई थी. हिंसा अब गुड़गांव और पलवल तक पहुँच गयी है.
विभिन्न क्षेत्रों में धारा 144 लगा दी गयी है और इन्टरनेट सेवाओं को बंद किया जा रहा है. अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें दो होम गार्ड और 2 सामान्य नागरिक हैं.
यात्रा में हुई पथराव के बाद गुड़गांव के सेक्टर 57 में भीड़ ने अंजुमन जामा मस्जिद में आग लगा दी, व एक शख्स की हत्या कर दी और सोहना चौक पर घरों और दुकानों पर पथराव किया. अभी भी हिंसा लगातार बढ़ती नज़र आ रही है.
मोनू मानेसर व दंगा भड़काने वाले सभी तत्वों को फ़ौरन गिरफ़्तार करो
31 जुलाई को यात्रा के आयोजन के पहले क्षेत्र में कुप्रसिद्ध “गौरक्षक” मोनू मानेसर की यात्रा में शामिल होने की खबरें प्रसारित की गयीं जिस माध्यम से यात्रा को एक उग्र चेहरा दिया गया.
मोनू मानेसर पर बीते 15 फ़रवरी को भिवानी जिले में दो अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को जला कर मार डालने का मुकदमा चल रहा है. ऐसे हिंसा भड़काने वाले प्रमुख तत्वों पर कार्यवाही करने की बजाये मोनू मानेसर हरियाणा पुलिस के सहायक के रूप में जाना जाता है और सांप्रदायिक तनाव की नयी परिघटना तैयार करने के लिए खुला घूम रहा है.
दूसरी ओर इसी समय भिवानी जिला में बृजभूषण सिंह के लिए सम्मानसभा की घोषणा की गयी जो पहलवानों के साथ हुई यौन हिंसा के मुद्दे को राजपूत व जाटों के बीच जाति-आधारित टकराव और हिंसा को भड़काने की दिशा में उठाया एक शर्मनाक कदम है.
दंगों की आग में चुनावी रोटियां सेक रहे भाजपा-संघ परिवार का पर्दाफाश करो
भाजपा, संघ परिवार और उनसे सम्बंधित विभिन्न ताकतों द्वारा अलग अलग गतिविधियों से अलग अलग आधार पर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने की कोशिश इनकी असली मंशा को दर्शाते हैं. वहीं, अन्य धर्मों में कट्टरपंथी और साम्प्रदायिक विचारधारा रखने वाली ताकतें इनके द्वारा बनायी गयी दहशत को अपनी पैठ बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है.
आज जब देश में बेरोज़गारी, महंगाई, भुखमरी व आत्महत्याएं बढ़ती जा रही हैं और जनता के हालातों को सुधारने के लिए तत्पर प्रयास की ज़रुरत है तब सत्ता में बैठी ताकतें लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटा कर धार्मिक नफरत के आधार पर उनकी वफादारी जीत कर अपना स्वार्थ साधना चाहती है.
जनता को बाँट कर उनपर राज करने की, उन्हें नफरत की घुट्टी पिला कर गुमराह करने की सत्ताधारी वर्ग की रणनीति सदियों पुरानी है. मज़दूर-मेहनतकश जनता किसी भी धर्म में हो, इस सत्ता के लूट का शिकार ही रहती है. ऐसे दंगों में सबसे अधिक जान माल का नुक्सान भी इसी तबके को होता है.
अगर आज हमें अपना और इस देश का भविष्य बचाना है तो हर कदम पर सांप्रदायिक नफरत और हिंसा की राजनीति को चुनौती देनी पड़ेगी और ऐसा करने के हर जोख़िम उठाने होंगे.
भगत सिंह, अशफाकउल्लाह, उधमसिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद की साझी विरासत से बने देश में साम्प्रदायिकता के लिए कोई जगह नहीं है.
सांप्रदायिक नफ़रत की राजनीति मुर्दाबाद ! मज़दूर एकता ज़िंदाबाद!
(मज़दूर सहयोग केंद्र द्वारा जारी)
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