ब्लिंकिट के वर्कर दिल्ली में ‘मरने वाली मज़दूरी’ पर उबले, कई स्टोर बंदः 15 रु. में क्या खाएंगे क्या बचाएंगे
दस मिनट में घर पर सामान पहुँचाने का वादा करने वाली कंपनी ब्लिंकिट को वर्करों के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है.
इसके डिलीवरी कर्मचारी कुछ दिनों कमीशन कम किए जाने की विरोध करते हुए हड़ताल पर चल गए और इसके कई केंद्रों पर भारी हंगामा हुआ.
गाज़ियाबाद के स्टोर पर सुबह ही पुलिस बुला ली गई और शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों को तितर बितर कर दिया गया.
कंपनी ने हर डिलीवरी पर किया जाने वाला भुगतान 25 रूपए से घटा कर 15 रूपए कर दिया है.
वर्कर इस बात से आक्रोशित थे कि कंपनी पहले ही हर डिलीवरी भुगतान को पहले 50 रुपये से 25 रुपये कर दिया था.
अब प्रति डिलीवरी 15 रुपये में डिलीवरी वर्करों का घर का खर्च नहीं चलने वाला है. इस हड़ताल से दिल्ली एनसीआर के कई स्टोर बंद हैं और जो खुले हैं वो भी अभी सामान्य नहीं हो पाए हैं.
ब्लिंकिट ने गाजियाबाद, नोएडा और गुड़गांव में कई स्टोर्स को बंद कर दिए और डिलीवरी वर्करों के आईडी को ब्लॉक कर दिए हैं. आईडी ब्लॉक होने का अर्थ है वर्करों की रोज़ी-रोटी ख़त्म.
ज़ोमैटो ने ब्लिकिंट को ख़रीद लिया है और अब इसमें वर्करों को मज़दूरी में कटौती का कहर जारी है.
पिछले साल ज़ोमैटो ने ब्लिंकिट को 55 करोड़ डॉलर की क़ीमत पर ख़रीदा था. उस समय ब्लिंकिट को 288 करोड़ रूपए हुआ था.
#Blinkit strike pic.twitter.com/pMWyYUILx0
— Bhanu Pratap (@BhanuPr5547424) April 13, 2023
15 रुपये में मज़दूरी, पेट्रोल, बीमारी-दुर्घटना सभी कवर करना है
साल भर पहले तक ब्लिंकिट का एक वर्कर महीने में 16,000 रूपए तक कमा लेते थे. इसमें कंपनी इन्सेंटिव और कभी-कभी पेट्रोल के लिए भी भत्ता देती थी.
वो सब धीरे-धीरे बंद हो गया और अब प्रति डिलीवरी भुगतान सिर्फ़ 15 रूपए कर दिया है. ऐसे में वर्करों के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है.
दिल्ली में आने वाले लोग या जिन्हें लॉकडाउन के बाद से नौकरी से निकाल दिया गया वो मजबूरी में डिलीवरी वर्कर का काम पकड़ लिया.
काम का दबाव इतना अधिक है कि कंपनी के 10 मिनट में सामान पहुंचाना कभी न ख़त्म होने वाली मैराथन रेस की तरह हो गया है.
ठंडी हो, गर्मी हो या बरसात सामान पहुंचाना है और ग्राहकों का व्यवहार भी उतना अच्छा नहीं होता. इस दबाव में हर महीने किसी न किसी एक्सीडेंट में कोई वर्कर मारा जाता है लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी कंपनी नहीं लेती.
Stand with the ongoing strike of Delivery workers of Blinkit in Delhi!
Roll back the reduced payment structure, ensure working class rights of the delivery workers!#BlinkitStrike pic.twitter.com/rSx9u7lf1X— sucheta de (@sucheta_ml) April 15, 2023
पांच साल में 2 करोड़ हो जाएंगे डिलीवरी वर्कर
बीबीसी को दिए एक इंटर्व्यू में इंडियन फ़ेडरेशन ऑफ़ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स के राष्ट्रीय महासचिव शेख़ सलाउद्दीन ने कहा, “सरकार जब तक एग्रीगेटर कंपनियों के लिए क़ानून नहीं बनाएगी, तब तक ये कंपनियाँ कर्मचारियों शोषण करती रहेंगी. और जो कुछ हो रहा है उसके लिए सरकार भी सबसे बड़ी दोषी है.”
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, इस समय देश में 77 लाख गिग वर्कर हैं जो अगले पांच साल में दो करोड़ से ज़्यादा हो जाएंगे.
सलाउद्दीन की शिकायत है कि, इतनी तेज़ रफ़्तार से ई-कॉमर्स का विकास हो रहा है. लेकिन आज भी जो इंसान डिलीवरी कर रहा है, उसे सरकार या कंपनियों से क्या फ़ायदा मिल रहा है?
उन्होंने पूछा कि सरकार ने साल 2020 में संसद में सोशल सिक्योरिटी बिल पास किया. लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी वो क़ानून लागू नहीं हुआ. तो ऐसे क़ानून का क्या फायदा?
शेख़ सलाउद्दीन ने कहा कि इस बात की जाँच होनी चाहिए कि ये कंपनियाँ लगातार घाटा दिखाकर कितना टैक्स का नुक़सान कर रही हैं.
वे कहते हैं, “बहुत सी कंपनियाँ लगातार घाटा दिखा रही हैं लेकिन उसके बावजूद निवेश लेती जा रही हैं और अपनी दुकान बढ़ाती जा रही हैं. ऐसा कैसे संभव है कि इतना बड़ा घाटा दिखा कर भी ये कंपनियाँ चल रही हैं. इन कंपनियों के उच्च अधिकारियों और स्टाफ़ की तनख्वाहें बढ़ती जा रही हैं. इसके लिए पैसा कहाँ से आ रहा है? हर दिन करोड़ों रूपए इन कंपनियों में निवेश किए जा रहे हैं. इसका फ़ायदा कंपनियों के मैनेजमेंट और स्टाफ़ को मिल रहा है न कि ग़रीब तबके से आने वाले उस व्यक्ति को, जो राइडर का काम कर रहा है.”
@tag blinkit strike pic.twitter.com/HIi6fCEr7i
— Ali Ali (@AliAli88597500) April 15, 2023
पार्टनर नहीं वर्कर हैं
उनका ये भी कहना है कि राइडर के तौर पर काम करने वाले लोगों को पार्टनर कहना ग़लत है. “वो लोग पार्टनर नहीं वर्कर हैं और उन्हें वो सभी अधिकार मिलने चाहिए जो वर्कर्स को दिए जाते हैं. इस मसले से निपटने के लिए क़ानून बनना चाहिए, जिसमें न्यूनतम वेतन निर्धारित होना चाहिए.”
गिग कर्मचारियों को काम करने में लचीलापन और आज़ादी तो मिलती है, लेकिन उनकी नौकरी सुरक्षित नहीं होती और स्थायी कर्मचारियों को मिलने वाली कई सुविधाएँ उन्हें नहीं मिल पाती.
पिछले साल नीति आयोग ने सिफ़ारिश की कि देश में गिग वर्कफ़ोर्स को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए पेड लीव, व्यावसायिक बीमारी और कार्य दुर्घटना बीमा, काम की अनियमितता के दौरान सहायता और पेंशन योजना जैसे उपाय किए जाने चाहिए.
नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2020-21 में भारत में गिग इकोनॉमी में काम कर रहे लोगों की संख्या क़रीब 77 लाख थी और अनुमान है कि ये साल 2029-30 तक बढ़ कर 2.35 करोड़ हो जाएगी.
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