उमर ख़ालिद के जेल में 1000 दिन पूरे होने पर प्रेस क्लब में सभा, रवीश कुमार, मनोज झा समेत कई वक्ता शामिल हुए
जेल में उमर ख़ालिद के 1000 दिन पूरे होने पर शुक्रवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में एक सभा में वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा कि राज्य सत्ता पहले क़ानूनों की आड़ में दमन करती थी लेकिन अब वे दमन के लिए क़ानून बनाने लगी है।
उन्होंने कहा कि एक हज़ार दिन हो गए लेकिन इस केस की ट्रायल भी शुरू नहीं हुआ है और न उमर को ज़मानत मिली है।
उन्होंने कहा कि भीमाकोरेगांव मामले में भी इसी तरह शोमा सेन, रोना विल्सन आदि को बंद कर रखा गया है जबकि मामले की सुनवाई भी शुरू नहीं हो पाई है। सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसले हैं जिनमें कहा गया है कि जेल अपवाद है और ज़मानत नियम, उसके बावजूद उमर जैसे छात्र जेल के अंदर हैं।
रवीश ने बताया कि ट्विटर पर भी कई लोगों ने उमर खालिद को लेकर यह सवाल उठाया कि एक हज़ार दिन से जेल में हैं, उन्हें ज़मानत नहीं मिली है। यह न्यायपालिका के लिए अच्छी बात नहीं है।
उन्होंने उम्मीद जताई की न्यायपालिका को किसी दिन अपना कर्तव्य ध्यान आएगा और वो अपना फर्ज निभाएगी। अभी तो सुविधा वाले मामलों पर ही चर्चा होती है, उसकी सुनवाई की जाती है।
रवीश कुमार ने उन रिपोर्टरों की तारीफ़ की जो इतने दमन वाले समय में भी नागरिक ज़िम्मेदारी को निभाने वालों के साथ खड़े हैं और उनकी आवाज़ को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।
इस सभा में राजद सांसद मनोज झा, दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा रहीं गुरमेहर कौर, जाने माने अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और उमर के पिता एसक्यूआर इलियासी भी मौजूद थे।
खालिद 13 सितंबर, 2020 से उस साल के शुरू में दिल्ली दंगों में कथित संलिप्तता के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत जेल में बंद हैं और तबसे उनकी ज़मानत पर सैकड़ों बार सुनवाई या सुनवाई के लिए तारीख़ मिल चुकी है। लेकिन ज़मानत नहीं मिली है।
दिल्ली पुलिस के कारण कार्यक्रम स्थल बदलना पड़ा
“डेमोक्रेसी, डिसेंट एंड सेंसरशिप: ए डिस्कशन बाय कंसर्नड सिटिजन्स” के नाम से यह कार्यक्रम पहले गांधी पीस फ़ाउंडेशन में होना तय हुआ था लेकिन उसके एक दिन पहले ही दिल्ली पुलिस ने पत्र लिख कर बुकिंग रद्द करने की चेतावनी दे दी।
बाद में इस कार्यक्रम को दिल्ली प्रेस क्लब में कराने की बात कही गई।
हाल के महीनों में यह पहली बार नहीं था जब दिल्ली पुलिस ने इस तरह की चर्चा को बंद करने की कार्रवाई की हो।
प्रेस क्लब इंडिया के एक सदस्य प्रशांत टंडन का कहना है कि इन दिनों, एक ऐसे मुद्दे पर एक सेमिनार आयोजित करने के लिए एक हॉल खोजना मुश्किल है जो सरकार की आलोचना करने वाला हो या उसपर सवाल खड़ा करने वाला हो। अगर आपको कोई जगह मिलती है और 10-20 लोग इकट्ठा होते हैं, तो आप पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी को कार्यक्रम स्थल के चारों ओर भेज कर भय का माहौल बनाते हैं।
स्क्रॉल के मुताबिक, यह पहली बार नहीं था जब गांधी शांति प्रतिष्ठान को किसी नागरिक समाज के कार्यक्रम को रद्द करने के लिए कहा गया हो। तीन महीने पहले, कश्मीर में प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में एक चर्चा को अंतिम समय में रद्द करना पड़ा था, जब दिल्ली पुलिस ने इसी तरह का एक पत्र जारी किया था, जिसमें फाउंडेशन के अधिकारियों को वार्ता में शामिल होने वाले दर्शकों का विवरण प्रदान करने के लिए कहा गया था।
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