मानेसर में प्लांट के अंदर धरने पर बैठे प्रोटेरिअल (हिताची) के ठेका वर्कर, बिजली काटी, वर्कर बेहोश
मानेसर में प्रोटेरिअल (हिताची) इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के ठेका मज़दूर 30 जून से प्लांट के अंदर हड़ताल पर बैठे हुए हैं. एक जुलाई की शाम कुछ मज़दूर बेहोश हो गया, जिससे प्लांट में अफरा तफरी मच गई.
क़रीब 9 बजे उस वर्कर को ईएसआईसी अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां उसका इलाज चल रहा है।
मज़दूरों का आरोप है कि प्रोटेरिअल कंपनी मैनेजमेंट ने ठेकेदार के साथ मिलकर कंपनी के अंदर ठेका मजदूरों की जारी हड़ताल के दौरान धरना स्थल की लाइट और पंखा बंद कर दिया.
कमरे के अंदर भीषण गर्मी और उमस की वजह से तीन वर्कर बेहोश हो गए, जिन्हें सेक्टर 3 के ईएसआई अस्पताल में भर्ती करवाया गया.
हड़ताल को 30 घंटे से अधिक हो चुका है लेकिन अभी तक कोई समझौता नहीं हो सका है. मजदूर तमाम परेशानियों से जूझते हुए कंपनी के अंदर व बाहर हड़ताल पर डटे हुए हैं.
प्रोटेरिअल (हिताची) ठेका मज़दूर यूनियन ने कहा कि मैनेजमेंट की वादाख़िलाफ़ी और लगातार प्रताड़ित करने के ख़िलाफ़ 30 जून को दोपहर 2:30 से हड़ताल पर चले गए.
कैसे शुरू हुई हड़ताल
प्रोटेरिअल (हिताची) मज़दूर यूनियन ने आरोप लगाया कि 30 जून को 5 मजदूरों की शिफ्ट मनमाने तरीके से बदल दी गई. मजदूर मैनेजमेंट की तानाशाही से परेशान थे जिस कारण मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा और बी शिफ़्ट के वर्कर जब आए तो सभी लोग प्लांट में धरने पर बैठ गए.
दरअसल जब 5 मज़दूरों की बी शिफ्ट अचानक बदल कर ए शिफ्ट कर दी गई तो वर्करों ने इस मनमानी पर सवाल खड़ा किया और अचानक शिफ्ट बदलने से इनकार कर दिया.
शुक्रवार को जब वर्कर बी शिफ्ट में काम करने आए तो उनका गेट बंद कर दिया गया.
इसके ख़िलाफ़ ए शिफ्ट के वर्करों ने काम रोक दिया और प्लांट के अन्दर धरने पर बैठ गए .
उधर बी शिफ्ट के वर्कर भी इस हड़ताल में शामिल हो गए और प्लांट के बाहर ही धरने पर बैठ गए. बाद में सी शिफ्ट के वर्कर भी गेट के बाहर धरने में शामिल हो गये.
मई में 30 ठेका वर्करों को निकाला था
यूनियन का आरोप है कि 12 मई 2023 को हुए समझौते को लागू नहीं किया गया है, मजदूरों को लगातार तारीख पर तारीख मिल रही है जिस कारण वे ठगा महसूस कर रहे हैं.
इससे पहले बीते मई महीने में 30 वर्करों की बर्खास्तगी के ख़िलाफ़ भी हड़ताल हुई थी और इस बारे में 13 मई को श्रम विभाग की मध्यस्थता में समझौता हुआ.
का मज़दूरों और प्रबंधन के बीच औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 12 (3) के अंतर्गत हुए त्रिपक्षीय समझौते से हाल में निकाले गए 30 मज़दूरों को पुनः बहाल किया गया.
कंपनी ने 11 मई की शाम को बी-शिफ्ट के समय दो ठेका मज़दूरों को काम से निकाला था.
कंपनी की इस कार्यवाही के ख़िलाफ़ जब बाकी मज़दूरों ने प्रतिरोध किया तो अन्य 28 लोगों को भी काम से निकाल दिया गया.
शुरुआत में निकाले गए दो श्रमिक कंपनी में करीब एक साल से चल रहे ठेका मज़दूरों के संघर्ष के प्रतिनिधियों में से थे.
एक साल से मांग पत्र पेंडिंग
उल्लेखनीय है कि लगभग 1 साल से मजदूरों का सामूहिक मांग पत्र पेंडिंग है और श्रम विभाग और मैनेजमेंट की ओर से इस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है, जिससे मज़दूर परेशान हैं.
यूनियन एक नेता ने कहा कि एक जुलाई की शाम तक कोई स्पष्ट समझौता नहीं हो पाया. मैनेजमेंट निकाले हुए मजदूरों को लेने और छुट्टियां लागू करने तक तैयार है.
लेकिन वो ना तो सैलरी बढ़ाने को तैयार है और ना स्थाई और सुपर स्किल काम करने वाले मजदूरों को स्थाई करने को तैयार है.
यूनियन ने बताया कि श्रम विभाग ने सोमवार को वार्ता रखी है. मजदूरों को प्रताड़ित किया जा रहा है, कभी मैनेजमेंट मजदूरों के पंखे बंद कर दे रही है और कभी खाना रोक दिया जा रहा है.
उनका कहना है कि न्यूनतम श्रम कानून लागू करवाने के लिए भी वर्करों को हड़ताल और कानूनी संघर्ष का सहारा लेना पड़ रहा है.
- मानेसर छोड़ कर क्यों भाग रहे हैं प्रवासी मुसलमान मज़दूर?
- पीएफ़आई पर रेड के नाम पर 250 मुसलमानों को जेल में डाल, मोदी सरकार अपनी नाकामियों को छिपा रही- नज़रिया
वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें