मारुति के मज़दूरों का गुड़गांव में मार्च, ज्ञापन देकर की 11 साल पहले बर्खास्त मज़दूरों की बहाली की मांग
मारुति आंदोलन के 11 साल पूरे होने पर गुड़गांव मिनी सेक्रेटेरियट पर मारुति की सभी यूनियनों, मारुति सुजुकी मज़दूर संघ से जुड़ी गुड़गांव और मानेसर की यूनियनों ने जूलूस निकाल कर ज्ञापन दिया।
मंगलवार को दिए ज्ञापन में यूनियनों ने 2012 में निकाले गए मज़दूरों को वापस बहाल करने और उन पर चल रहे मुकदमों को रद्द करने की मांग के साथ 11 साल पहले हुए घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की।
ज्ञापन में कहा गया है कि 2012 में बिना किसी जांच के निकाले गए मारुति मानेसर के 546 परमानेंट और 1800 ठेका वर्कर आज भी श्रम न्यायलय में केस के निपटारे की राह देख रहे हैं लेकिन 10 साल बीतने के बाद भी इंसाफ की कोई झलक तक नज़र आनी बाक़ी है।
इनमें 426 वर्कर ऐसे हैं जिनका सरकार द्वारा कराई गई जांच में कोई नाम नहीं था फिर भी बिना किसी घरेलू जांच के इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। तबसे आज तक ये वर्कर हर जगह इंसाफ़ की गुहार लगा चुके हैं लेकिन इस मामले में कोई इंसाफ़ नहीं मिल सका है।
सेशन कोर्ट गुड़गांव ने 18 मार्च 2017 में इस प्रक्रण में जेल में बंद 148 मजदूरों में से 117 को बाइज्ज़त बरी कर दिया और 31 मजदूरों को सजा सुनाई। इनमें 13 यूनियन प्रतिनिधियों को उम्र कैद की सज़ा हुई।
ज्ञापन में कहा गया है कि जिन वर्करों को बरी किया गया उन्हें आज तक कंपनी में काम पर वापस बहाल नहीं किया गया।
मारुति सुजुकी मज़दूर संघ (एमएसएमएस) के प्रधान राजेश कुमार ने कहा कि जिस 18 जुलाई को मारुति मैनेजमेंट ने मज़दूरों के संघर्ष को दबाने की साज़िश के तहत अंजाम दिया था वो हर साल मज़दूरों की एकता का प्रतीक बन कर लौटता है।
मिनी सेक्रेटेरियट के गेट पर हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि यूनियनों पर दमन, रोज़गार का अस्थायीकरण, मज़दूर आंदोलन पर आपराधिक केस थोपना जैसे मामले मैनेजमेंट की मनमानी के अलग अलग चेहरे दिखाते हैं। मारुति के आंदोलन में उठा ठेका प्रथा का सवाल आज भी पूरे क्षेत्र में ज्वलंत संघर्ष बन कर खड़ा है।
एमएसएमएस के महासचिव संदीप कुमार ने कहा कि ये जुलूस-प्रदर्शन प्रबंधन को मज़दूरों की एकता का महत्वपूर्ण संदेश भेजता है और सरकार को बताना चाहता है कि 10 साल पहले हुए अन्यायपूर्ण कार्रवाई में सुधार लाए।
ज्ञापन में प्रदर्शन में मारुति के बर्खास्त मज़दूरों की पुनःबहाली, समान काम पर समान वेतन, स्थायी काम पर स्थायी रोज़गार व अन्य मांगों को उठाया गया।
- दिवंगत मारुति मज़दूर नेता जियालाल के परिवार को यूनियन ने दिए 20.37 लाख रु.
- मारुति में अस्थाई मज़दूरों को 1300 रुपये पकड़ा कर 700 करोड़ रुपये बचाए?
ज्ञापन में क्या कहा गया?
- आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे मजदूरों की सजा रद्द किया जाए और झूठे मुकदमे वापस लिए जाएं।
- मजदूर विरोधी लेबर कोड्स रद्द किए जाएं।
- सभी निकाले गए मजदूरों को काम पर वापस लिया जाए।
- स्थाई काम पर स्थाई रोजगार तथा समान काम का समान वेतन लागू किया जाए।
- ठेका प्रथा ख़त्म किया जाए।
- मज़दूर वर्गीय एकता की मिसाल, जिसने मारुति आंदोलन को ऐतिहासिक बना डाला
- मारुति आंदोलन का एक दशकः जो हासिल हुआ उसे आगे ले जाने का सबक
ज्ञापन में चार लेबर कोड को वापस लेने की मांग करते हुए कहा गया है कि स्थाई नौकरी पर फ़िक्स टर्म एम्प्लायमेंट, नीम ट्रेनिंग, एफटीई बनाकर हमला बोला जा रहा है।
इस जुलूस में 2012 में निकाले गए मारुति मज़दूर भी शामिल रहे और इसके अलावा क्षेत्र में संघर्षरत ठेका मज़दूरों के प्रतिनिधियों ने भी भागीदारी निभाई।
मारुति की चार प्लांट की यूनियन, 2012 में निकले गए मारुति मज़दूरों सहित हीरो गुड़गांव, बेलसोनिका, सनबीम व प्रोटेरिअल की ठेका मज़दूरों की यूनियन, अमेज़ॉन वेयरहाउस के वर्कर, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व इंकलाबी मज़दूर केंद्र और मज़दूर सहयोग केंद्र की भागीदारी रही।
गौरतलब है कि प्रोटेरियल के ठेका श्रमिक 20 दिन से हड़ताल पर हैं जहाँ प्रबंधन 10 साल से कार्यरत ठेका मज़दूरों को भी न्यूनतम वेतन से अधिक देने, ग्राचुइटी, वैधानिक छुटियां देने व उन्हें पक्के मज़दूरों का दर्जा देने को तैयार नहीं है।
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