कंपनी के काम के बोझ तले दबकर मर गई युवा चार्टडर्ट अकाउंटेंट, भगवान की शरण में जाने का वित्त मंत्री का बयान
“वो लगातार 16 घंटे से काम कर रही थी। उसने खाने के लिए कुछ ऑर्डर किया जो लेने के लिए वो सीढ़ियों से उतर रही थी, तभी वो चक्कर खा कर गिर पड़ी…..”
पेशेवर सेवाओं की दुनिया में ‘बिग फो़र’ के अंतर्गत आने वाली प्रतिष्ठित फ़र्म Ernst & Young (EY) में कार्यरत 26 वर्षीय की एक रंगरूट चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की असमय मौत ने न केवल उनके परिवार और दोस्तों को गहरे सदमे में डाल दिया, बल्कि भारत में कॉर्पोरेट कंपनियों में ‘टॉक्सिक वर्कर कल्चर’ (काम के ज़हरीले माहौल) पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
ख़बरों की माने तो काम के अत्यधिक बोझ के कारण अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल कार्डिक अरेस्ट की शिकार हो गई जिससे उनकी मौत हो गई।
इस घटना ने काम के अत्यधिक बोझ और अव्यवस्थित कार्य संस्कृति को लेकर बहस छेड़ दी है, जिसमें युवा पेशेवरों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की अनदेखी की जा रही है।
लेकिन भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक बयान ने इस परिजनों के जख़्म पर मरहम की जगह नमक रगड़ने का काम किया है।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस चार्टर्ड अकाउंटेंट में आत्मशक्ति की कमी थी, “एक महिला सीए काम के दबाव को सहन नहीं कर पाई। दबाव झेलने की ताकत ईश्वर से आती है, इसलिए ईश्वर की शरण में जाएं।”
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पूरा मामला
केरल की रहने वाली अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल ने 2023 में अपने CA की परीक्षा पास की थी। अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए उन्होंने मार्च 2024 में पुणे के EY कार्यालय में नौकरी जॉइन किया।
लेकिन अन्ना को नहीं पता था कि उनकी नौकरी की शुरुआत ही उनके लिए एक भारी मानसिक और शारीरिक तनाव का कारण बन जाएगी।
अन्ना की माँ, अनीता ऑगस्टीन, ने कंपनी के भारतीय चेयरमैन राजीव मेमानी को एक चिट्ठी लिखा और बताया कि ‘उनकी बेटी को नौकरी के शुरुआती दिनों से ही काम के अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ा, जिसने उसकी सेहत पर बुरा असर डाला’।
इस पत्र में उन्होंने “बहुत ज़्यादा काम को महिमामंडित करने” के लिए फ़र्म की कड़ी निंदा की और बताया कि अन्ना की जान कार्यस्थल के असहनीय दबाव के कारण गई।
ऑगस्टीन ने लिखा कि, ‘अन्ना देर रात तक काम करती थी, अक्सर आधी रात के बाद ही अपने PG वाले कमरे पर लौटती थी और बिना पर्याप्त नींद या ठीक ठाक भोजन के काम करती जा रही थी।’
चिट्ठी में यह भी बताया गया कि ‘अन्ना साप्ताहिक छुट्टियों में भी काम करती थीं और काम के फोन कॉल्स और ईमेल का जवाब देने के लिए रातों दिन तैयार रहती थीं।
परिवार ने बताया कि उन्होंने अन्ना को नौकरी छोड़ने की सलाह दी थी, लेकिन वह इसे “प्रतिष्ठा” का सवाल मानकर फ़र्म में काम करती रहीं।
अन्ना के पिता सिबी जोसेफ़ ने भी बताया कि उनकी बेटी “अक्सर काम के दबाव के बारे में शिकायत करती थी और ठीक से सो नहीं पाती थी, जिससे उसकी सेहत लगातार गिरती चली गई।”
वे कहते हैं कि, “अन्ना को बजाज ऑटो के ऑडिट प्रोजेक्ट में अत्यधिक काम करना पड़ा, जिसके चलते वह रात 12:30 बजे तक काम करती और सुबह फिर से तैयार होकर काम पर निकल जाती थी।”
एक पूर्व कर्मचारी ने और खोली कंपनी की पोल
अन्ना की मौत के बाद उनके एक सहकर्मी का चिट्ठी भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें फ़र्म की कार्य संस्कृति की तीखी आलोचना की गई थी।
उसने चिट्ठी में लिखा, “सहकर्मी ने अन्ना की मौत के पीछे कार्यस्थल के ज़हरीले माहौल का ज़िक्र किया और कहा कि मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर कर्मचारियों पर काम का बोझ डालने और उनकी परवाह न करने के लिए बदनाम थे।”
इसमें यह भी उल्लेख किया गया कि “एचआर विभाग में शिकायत करने पर भी कोई समाधान नहीं निकला, क्योंकि यह पूरा ढांचा ही ऐसा था जिसमें कर्मचारियों की समस्याओं की अनदेखी की जाती थी।”
सहकर्मी ने लिखा, “यहाँ पर 16 घंटे काम करना एक रवायत है। कोई निजी जीवन नहीं है, कोई साप्ताहिक छुट्टी नहीं होती, और यहाँ तक कि सार्वजनिक अवकाश का भी कोई मतलब नहीं होता। अधिक काम करने को ही पदोन्नति का रास्ता माना जाता है।”
इस चिट्ठी ने अन्ना के कामकाजी माहौल के बारे में जो चिंताएँ उजागर कीं, वे इस बात की पुष्टि करती हैं कि कैसे भारत में कई मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा कर्मचारियों से अत्यधिक काम की उम्मीद की जाती है, बिना उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की परवाह किए।
लिंक्डइन पर आकाश वेंकटसुब्रमन्यम EY की कार्यशैली के बारे में जानकारी देते हुए लिखते हैं, “मेरी पत्नी ने EY जैसी कंपनी की ज़हरीली कार्य संस्कृति के कारण नौकरी छोड़ दी, और अगर उसने ऐसा नहीं किया होता, तो पता नहीं उसके साथ क्या होता।”
वो आगे कहते हैं, “भारत में कई बड़ी कंपनियाँ 18 घंटे काम करवाना सामान्य मानती हैं और कर्मचारियों से इसकी उम्मीद की जाती है, जबकि यही कंपनियाँ भारत के बाहर ऐसा नहीं करतीं। भारतीयों को सिर्फ़ कुली की तरह देखा जाता है, और भारत को एक ऐसी फैक्ट्री समझा जाता है जो हमेशा चलती रहे।”
“सरकार हमसे टैक्स तो लेती है, लेकिन काम करने के लिए बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित नहीं करती। जब लोग नौकरियों से निकाले जाते हैं, तब भी कोई मदद नहीं मिलती। अब यह आखिरी मौत होनी चाहिए। उम्मीद है कि इस घटना के बाद सरकार कोई नया कानून बनाएगी, ताकि छंटनी की स्थिति में कर्मचारियों को कुछ सहारा मिल सके।”
अन्ना की अंतिम विदाई में कंपनी के लोग पहुंचे तक नहीं
अन्ना के अंतिम संस्कार में EY के किसी भी सहकर्मी का शामिल न होना, उनके परिवार के लिए एक और सदमा साबित हुआ है।
अनीता ऑगस्टीन ने अपनी चिट्ठी में इस बात का ज़िक्र किया कि ‘कैसे उनके सहकर्मियों ने इस महत्वपूर्ण पल में भी साथ देने की ज़रूरत महसूस नहीं की।’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “उनकी बेटी के साथ हुए इस हादसे से दूसरों को सबक लेना चाहिए और भविष्य में ऐसे हादसे न हों, इसके लिए फ़र्म को अपनी कार्य संस्कृति में बदलाव करने की ज़रूरत है।”
भारत में कर्मचारियों के साथ क्या होता है, सोशल मीडिया पर खुला पिटारा
एक यूज़र ने आरोप लगाया है कि एक शीर्ष कंसल्टेंसी फ़र्म में उससे बिना ओवरटाइम दिए एक दिन में 20 घंटे तक काम करने पर मजबूर किया गया।
एक अन्य यूज़र ने लिखा, “भारत में काम की संस्कृति बहुत भयानक है। सैलरी सबसे कम और शोषण सबसे अधिक. कर्मचारियों को नियमित रूस से निर्दयता से परेशान करने वाले नियोक्ताओं को नतीजे भुगतने का कोई डर नहीं है और ना ही कोई पछतावा।”
इस यूज़र ने ये भी जोड़ा कि मैनेजर अक्सर अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और अपने कर्मचारियों को कम भुगतान करते हैं।
एक पूर्व ईवाई कर्मचारी ने भी फ़र्म के वर्क कल्चर की आलोचना की और आरोप लगाया कि समय से घर जाने के लिए कर्मचारियों का अक्सर ‘मज़ाक’ उड़ाया जाता है और साप्ताहिक छुट्टी मनाने के लिए ‘शर्मिंदा’ किया जाता है।
उन्होंने लिखा, “इंटर्न पर बेतहाशा काम लादा जाता है। उन्हें अवास्तविक टाइमलाइन दी जाती है और समीक्षा के दौरान अपमानित किया जाता है जबकि यह रवैया उनके भविष्य के चरित्र को गढ़ता है।”
माना जाता है कि वैश्विक स्तर पर भारत में कर्मचारियों पर सबसे अधिक काम का बोझ होता है।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में काम करने वाले आधे लोग हर सप्ताह 49 घंटे से अधिक काम करते हैं, जो कि काम के घंटे के मामले में दुनिया में भूटान के बाद दूसरे नंबर का देश है।
EY: कार्यशैली में करेंगे सुधार
EY के चेयरमैन राजीव मेमानी ने इस दुखद घटना पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘वह अन्ना की मृत्यु से बहुत दुखी हैं और उन्होंने परिवार को अपना समर्थन दिया।’
हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि वह यह नहीं मानते कि अन्ना की मौत “कार्य के दबाव” के कारण हुई थी।
मेमानी ने यह भी ज़िक्र किया कि फ़र्म हमेशा अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य और कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और वे सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।
केंद्रीय श्रम मंत्रालय का हस्तक्षेप
इस मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया। केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए मामले की जाँच का आश्वासन दिया।
उन्होंने कहा कि, ‘सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि इस मामले में न्याय हो और कार्यस्थल पर कर्मचारियों के लिए बेहतर कामकाजी माहौल की दिशा में उचित कदम उठाए जाएँ’।
अधिक काम करने के बयानों की होड़
इससे पहले कई कंपनियों के सीईओ ने ओवरवर्क (अधिक काम) के समर्थन में बयान दिए हैं, जो कार्य संस्कृति पर सवाल खड़े करते हैं।
टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ और दुनिया के जाने माने पूंजीपति एलन मस्क ने हाल ही में कहा था कि ‘बड़ी सफलता हासिल करने के लिए 80-100 घंटे प्रति सप्ताह काम करना ज़रूरी है।’
उनका मानना है कि जो लोग लंबे समय तक काम करते हैं, वे तेजी से आगे बढ़ते हैं।
याहू की पूर्व सीईओ मारिसा मेयर ने कहा था कि ‘सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत ज़रूरी है और लंबे घंटों तक काम करना सफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।’
अलीबाबा के संस्थापक जैक मा ने “996” संस्कृति का समर्थन किया, जिसमें हफ्ते में 6 दिन, सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक काम करने की वकालत की गई है। उनका तर्क था कि यह परिश्रम ही चीन की सफलता का कारण है।
इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने हाल ही में ओवरवर्क (अधिक काम) को लेकर एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘भारतीयों को अधिक मेहनत करने की आवश्यकता है ताकि देश की उत्पादकता और आर्थिक विकास में वृद्धि हो सके’।
उन्होंने कहा कि, ‘भारत की प्रगति के लिए अगले 2-3 दशकों तक लोगों को हर हफ्ते 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कड़ी मेहनत ही देश को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाने का एकमात्र रास्ता है।’
इसके बाद भारत में उनकी तीखी आलोचना हुई और उनकी छवि को बहुत धक्का भी लगा।
ज़हरीली कार्य संस्कृति की मजम्मत
अन्ना की मृत्यु ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर कार्यस्थलों की विषाक्त संस्कृति और कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया है।
कई पूर्व कर्मचारियों और वर्तमान कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की और भारत में कंपनियों द्वारा लागू की जा रही कठोर कार्य संस्कृति की कड़ी निंदा की है।
EY के पूर्व कर्मचारियों ने भी यह स्वीकार किया कि वहाँ कार्य का अत्यधिक दबाव सामान्य था और इसे ही कर्मचारियों की तरक्की का एकमात्र रास्ता माना जाता है।
अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की मौत एक त्रासदी से कहीं बढ़कर है। यह एक चेतावनी है कि कॉर्पोरेट जगत में काम के अत्यधिक दबाव और अव्यवस्थित कार्य संस्कृति के कारण कर्मचारी न केवल अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि इसके परिणामस्वरूप उनकी जान भी जा रही है।
अन्ना की मौत ने यह साबित कर दिया कि कॉर्पोरेट संस्थानों में कर्मचारियों की भलाई के लिए कार्य-जीवन संतुलन को प्राथमिकता देने की सख्त आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएँ न घटें और कर्मचारियों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में काम करने का अवसर मिले।
इस दर्दनाक घटना ने इस बात पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता पैदा कर दी है कि काम के प्रति हमारी सोच और दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।
जापान का ‘कारोशी’, बिना परवाह किए काम करते करते मर जाओ
‘कारोशी’ (Karoshi) जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है “अत्यधिक काम के कारण मौत।”
यह शब्द उन घटनाओं को दर्शाता है जहां किसी व्यक्ति की मौत अत्यधिक काम करने और लंबे समय तक काम के दबाव के कारण होती है।
कारोशी के मामले में मौत का मुख्य कारण आमतौर पर दिल का दौरा, स्ट्रोक, या आत्महत्या होती है, जो मानसिक और शारीरिक थकान के चरम पर पहुंचने से होती है।
जापान में ये इतनी बड़ी समस्या बन गई थी इसे नाम दिया गया ‘कारोशी’।
लेकिन अब दुनियाभर में विभिन्न देशों में अत्यधिक काम के कारण वर्कर्स की मौत के मामले महामारी की शक्ल ले रहे हैं।
कई मल्टीनेशनल कंपनियों और कॉर्पोरेट सेक्टर में कर्मचारियों से 12 से 16 घंटे तक काम करने की उम्मीद की जाती है, जो कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।
मार्क्स की भविष्यवाणी सही साबित हो रही?
लगभग 175 साल पहले कार्ल मार्क्स ने कहा था कि भले ही टेक्नोलॉजी को मानव श्रम में कमी लाने का माध्यम माना जाता है लेकिन पूंजीवादी सिस्टम में जैसे जैसे टेक्नोलॉजी उन्नत होगी, काम के घंटे बढ़ते जाएंगे।
उन्होंने कहा था कि अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाने की पूंजीवादी मानसिकता वर्करों से अधिक से अधिक काम करवाने की कोशिश करेगी।
क़रीब एक दशक पहले हरियाणा के मारुति कार प्लांट में जब मज़दूरों का आंदोलन हुआ तो उसमें भी यही पता चला कि मज़दूरों से एक एक सेकेंड का हिसाब लिया जाता है और उन पर काम का इतना दबाव डाला जाता है कि असेंबली लाइन पर रहते हुए पेशाब करने या पानी पीने की भी उन्हें फुर्सत नहीं होती थी।
पिछले दस सालों में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में गुजरात मॉडल लागू किया है। श्रम क़ानून बदले हैं, मालिकों को खुली छूट दी है।
अखिर ये गुजरात मॉडल क्या है, वहां काम करने वाले किसी प्रवासी मज़दूर से पूछा जा सकता है।
वह मज़दूर यही बताएगा कि अधिक से अधिक काम और कम से कम तनख्वाह ही गुजरात मॉडल है।
ट्रेड यूनियनें भी अपने संगठन के निजी हितों में इतनी डूब चुकी हैं कि उन्हें अपने बोनस भत्ते के सामने सामान्य मज़दूर वर्ग की तकलीफ़ों की कोई परवाह नहीं बची है।
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