टैक्स बढ़ाने पर जनता ने केन्या की संसद में लगाई आग, सेना की गोलीबारी में दर्जनों मारे गए

टैक्स बढ़ाने पर जनता ने केन्या की संसद में लगाई आग, सेना की गोलीबारी में दर्जनों मारे गए

सरकार द्वारा मनमाने टैक्स थोपने को लेकर पूरी दुनिया में जनता का गुस्सा बढ़ रहा है। और मंगलवार को यह गुस्सा फूटा हिंद महासागर के तट पर बसा पूर्वी अफ़्रीकी देश कीनिया में।

जनता ने संसद पर धावा बोल दिया और उसमें आग लगा दी। जनविद्रोह को दबाने के लिए सरकार ने सेना को उतार दिया है और उसकी गोली से दर्जनों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए हैं।

बीबीसी के अनुसार, सड़कों पर कई शव पड़े हुए देखे गए।

विरोध कर रहे लोग कीनिया की संसद पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे थे। उनका विरोध ज़रूरी सामानों पर भारी भरकम टैक्स लगाने को लेकर था।

एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि ब्रेड पर 16% टैक्स लगा दिया गया है। सैनेटरी पैड पर टैक्स लगा दिया गया है। ये सरकार क्या करना चाहती है?

कीनिया की राजधानी नैरोबी में प्रदर्शनकारियों का समूह पुलिस के सुरक्षा घेरे को तोड़कर संसद में घुस गया था।

दरअसल कीनिया की सरकार ने हाल ही में नया फाइनेंस बिल पेश किया था, जिसमें टैक्स में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी गई थी।

कीनिया के राष्ट्रपति विलियम रुतो ने मंगलवार को कहा कि, ”देश की सुरक्षा और स्थिरता से खिलवाड़ करने वाले ख़तरनाक अपराधियों से निपटने के लिए हर रास्ता अपनाएंगे।” लेकिन अपनी जनता पर बोझ डालने वाले अपने कारनामों पर एक शब्द नहीं कहा।

https://x.com/Kimanzi_/status/1805834771164967019

यह प्रदर्शन अमेरिका द्वारा पिछले महीने केन्या को नाटो सहयोगी बनाने के बाद सबसे बड़ा है। केन्याई जनता में सरकार का अमेरिका का पिट्ठू बनना पसंद नहीं कर रहे हैं ।

कीनिया में विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रण में करने के लिए सेना को उतारा जा चुका है।

नए वित्त बिल को लेकर कीनिया में कई दिनों से ये प्रदर्शन चल रहे थे लेकिन मंगलवार को संसद में बिल पास हो जाने के बाद प्रदर्शन उग्र हो गया। प्रदर्शनकारी संसद के अंदर जा घुसे, अंदर तोड़फोड़ की और कुछ हिस्सों में आग भी लगा दी।

रबर बुलेट और आंसू गैस के गोलों का भी इस्तेमाल किया गया, जिसमें सैकड़ों लोगों के घायल होने की भी ख़बर है।

https://x.com/NoiseAlerts/status/1805584827900641438

अंतरारष्ट्रीय मुद्रा कोष की थोपी शर्तों से फूटा गुस्सा

2024-25 बिल में, केन्याई सरकार का लक्ष्य बजट घाटे और सरकारी कर्ज को कम करने के लिए अतिरिक्त टैक्स से 2.7 अरब डॉलर जुटाने का है।

केन्या का सार्वजनिक कर्ज, सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 68% है, जो विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सुझाए 55% से अधिक है।

नकदी की कमी और वित्तीय मार्केट से उधार लेने में असफल होने के बाद केन्या की सरकार ने आईएमएफ़ का दरवाजा खटखटाया। और आईएमएफ़ ने उसपर कड़ी शर्तें थोप दी हैं।

आईएमएफ़ दुनिया का सबसे बड़ा साहूकार है और जिसको एक बार कर्ज देता है उसे अपने जाल में फंसा लेता है। वह देश उससे कभी निकल नहीं पाता।

केन्या में भी यही हुआ. दो साल पहले सत्ता में आए राष्ट्रपति विलियम रुतो ने कहा था कि वो देश से ग़रीबी मिटा देंगे।

लेकिन आईएमएफ़ के दरवाजे पर केन्या को गिरवी रखने के बाद उन्होंने टैक्स का बोझ और बढ़ा दिया।

https://x.com/ivanopanetti/status/1805644313742786655

kenya senate

किन चीजों पर बढाया गया टैक्स

जिन प्रस्तावित उपायों के कारण विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ है, उनमें ब्रेड, खाद्य तेल और चीनी जैसी बुनियादी वस्तुओं पर नए टैक्स और एक नया मोटर वाहन टैक्स शामिल हैं – जो कार के मूल्य का 2.5% सालाना भुगतान है।

सैनिटरी तौलिये और डायपर सहित अधिकांश निर्मित वस्तुओं पर “इको लेवी” भी लगाने की योजना है। नए करों के अलावा, विधेयक में वित्तीय लेनदेन पर मौजूदा करों को बढ़ाने का प्रस्ताव है।

सरकार ने कहा है कि विकास कार्यक्रमों के वित्तपोषण और सार्वजनिक कर्ज में कटौती के लिए कर उपाय ज़रूरी हैं।

पिछले हफ्ते सरकार ने अपनी स्थिति को थोड़ा नरम कर दिया, रुतो ने कार के स्वामित्व, ब्रेड और स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं पर इको लेवी सहित कुछ नए लेवी को खत्म करने की सिफारिशों का समर्थन किया।

वित्त मंत्रालय ने कहा है कि इस तरह की रियायतों से 2024-25 के बजट में 200 अरब केन्याई शिलिंग (1.56 अरब डॉलर) का घाटा हो जाएगा।

प्रदर्शनकारियों और विपक्षी दलों ने कहा है कि रियायतें पर्याप्त नहीं हैं और वे चाहते हैं कि पूरे विधेयक को रद्द कर दिया जाए।

पूरी दुनिया में क्यों फूट रहा है गुस्सा

असल में पूरी दुनिया में अमेरिका की दादागीरी वाले वित्तीय संस्थानों वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) तंगहाल देशों को कर्ज़ देते समय कई शर्तें रखता है।

कर्ज लेने के बाद इन शर्तों को उस देश को पूरा करना होता है। ये शर्तें ऐसी होती हैं जिससे अंतरराष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग को भारी मुनाफ़ा ख़ासकर मल्टीनेशनल कंपनियों को अकूत मुनाफ़ा होता है। इसमें अधिकांश कंपनियां पश्चिमी देशों की होती हैं।

अभी कुछ साल से पाकिस्तान की आर्थिक हालात बहुत ख़राब हैं। आईएमएफ़ उसे कर्ज देने के लिए कई शर्तें लगा दिया है, जिसे पाकिस्तानी की डगमगाती राजनीतिक सत्ता स्वीकार करने स्थिति में नहीं है। इसीलिए कर्ज में देरी हो रही है।

आईएमएफ़ की शर्तें क्या हैं, ज़रा देखिए

वो कहते हैं कि सार्वजनिक सेवाओं पर सरकार खर्च कम कर दे यानी स्कूल, अस्पताल, सड़क बिजली, रेलवे, बैंक, बीमा, राष्ट्रीय कंपनियों पर बजट कम कर दिया जाए।

यानी शिक्षा और स्वास्थ्य प्राइवेट अस्पतालों के हवाले कर दिया जाए। बिजली पर सब्सिडी ख़त्म कर दी जाए, तो बिजली महंगी हो जाएगी। सरकारी आधारभूत ढांचा रेलवे को बेच दिया जाए तो प्राइवेट कंपनियां ट्रेनें चलाएंगी।

हर चीज पर टैक्स बढ़ा दिया जाए ताकि जनता के पास पाई पाई की सेविंग को भी चूस लिया जाए और उससे निजी कंपनियों का खजाना भर दिया जाए।

सरकारी कंपनियों को औने पौने दामों में निजी कंपनियों के हवाले कर दिया जाए, यानी स्थाई रोज़गार के स्रोत को ख़त्म कर भुखमरी वाली मज़दूरी के मज़दूर पैदा किया जाएं जो सिर्फ दो जून की रोटी पर काम करें। यही पूरी दुनिया में हो रहा है और भारत-पाकिस्तान जैसे देशों में भी।

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Abhinav Kumar

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