कुवैत आगजनी के पीड़ितों की दास्तांः एमटेक के बाद भी नहीं मिली नौकरी, खाड़ी देशों में मज़दूरी को मजबूर हुए युवा

कुवैत आगजनी के पीड़ितों की दास्तांः एमटेक के बाद भी नहीं मिली नौकरी, खाड़ी देशों में मज़दूरी को मजबूर हुए युवा

By अभिनव कुमार

रांची के रहने वाले 22 वर्षीय मोहम्मद अली हुसैन 2 साल पहले ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे। लेकिन बहाली न निकलने और बहाली में हो रही धांधलियों के वजह से 3 भाई-बहन में सबसे छोटे अली को भी मज़बूरन काम के लिए खाड़ी देशों का रुख़ करना पड़ा।

अली के बड़े भाई जो खुद सऊदी अरब में मज़दूरी करते हैं ने बताया, “कुवैत के एक सुपर मार्किट में उसकी सेल्समेन की नौकरी मिली थी। बीते 24 मई को ही वो कुवैत के लिए निकले थे। घर पर सब खुश थे की उनकी नौकरी लग गई, लेकिन किसे पता था इतनी जल्दी सब खत्म हो जायेगा।”

मालूम हो कि बीते 12 जून को दक्षिणी कुवैत के मंगाफ़ इलाके के एक छह मंज़िला बिल्डिंग में तड़के आग लगने से 49 मज़दूरों की मौत हो गई थी। मरने वाले लोगों में 45 मज़दूर भारतीय थे।

इसके बाद कुवैत की सरकार ने ऐसी इमारतों की जांच के आदेश दिए हैं। सरकार के इस फरमान का खामियाज़ा भी प्रवासी मज़दूरों को ही भुगतना पड़ रहा है।

कुवैत सरकार की सख़्ती ने कई भारतीय मज़दूरों को सड़क पर ला दिया है।

इमारतों के जाँच और सरकार के सख्ती के बाद कुवैत में अब जर्जर और पुरानी इमारतों से मजदूरों को निकाला जा रहा है। जिसके बाद बड़ी संख्या में मजदूर सामान के साथ सड़कों पर आने को मजबूर हो गए हैं।

कुवैत के बेनिद-अल-गर (इस्तिकलाल शहर) में रह रहे राजस्थान के बांसवाड़ा के छींच गांव निवासी मनोज सुथार ने बताया कि “मंगाफ शहर में हुए हादसे के बाद कुवैत सरकार और प्रशासन सख्त हो गया है। कमरे भी किराए पर नहीं मिल रहे हैं। हम मजदूर जहां रह रहे हैं, यहां से भारतीय दूतावास महज कुछ ही दूरी पर है। फिर भी हमारे लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है।”

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दो दिन पहले हुई थी बेटे से बात

मरने वालों में रांची के अली हुसैन की भी थे, इस घटना के बाद अली के पिता मुबारक हुसैन समेत पूरे परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है।

पिता मुबारक ने वर्कर्स यूनिटी को बताया, “आग लगने से 2 दिन पहले अली से आखिरी बात हुई थी। उसने कहा- मेरा यहाँ मन नहीं लग रहा। हमने उसे काफी समझाया फिर उसने घरवालों का हालचाल जाना और मुझे अपना ख्याल रखने को कहा।”

“ये कोई उम्र थी जाने की। काश उसे यही काम मिल गया होता – काश मैंने उसे वापस बुला लिया होता। उसके इस तरह चले जाने का गम मुझे ताउम्र सालता रहेगा” कहते हुए मुबारक हुसैन फफक पड़ते हैं।

हादसे में जान गंवाने वाले अधिकांश भारतीय केरल से थे। केरल के 25 लोगों की जान इस हादसे में गई है।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और बिहार के गोपालगंज के भी 2-2 मज़दूरों की मौत हुई। बिहार में दरभंगा के भी एक मज़दूर की जान गई है।

बिल्डिंग मालिक के ही तेल कंपनी में ड्राइवर का काम करने वाले केरल के 29 साल के उमरुद्दीन कुवैत भी मारे गए लोगों में से एक थे।

बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उनके पड़ोसी ने बताया कि “उमरुद्दीन की नौ महीने पहले ही शादी हुई थी, जब वो यहां आये हुए थे।”

कुवैत में उमरुद्दीन के दोस्त नौफ़ाल ने बताया “मैं उनसे तीन इमारत दूर रहता हूं। हम सभी एक ही तेल कंपनी में काम करते हैं।”

मेरे सामने इमारत धू धू कर जलने लगी

बताया जा रहा है कि बिल्डिंग में क्षमता से ज्यादा मज़दूरों को रखा गया था। इतनी बड़ी संख्या में हुई मौतें इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि इमारत में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था का आभाव था और मज़दूरों को भेड़- बकरियों कि तरह रखा गया था।

बगल के अपार्टमेंट में रहने वाले एक मज़दूर मणिकंदन जो तमिलनाडु से हैं ने बताया, “पूरी घटना मेरे आँखों के सामने हुई। मैंने आग को ऊपर के मालों में फैलते हुए देखा। चूंकि गर्मियों का मौसम है इसलिए ज़्यादातर मज़दूर नाइट शिफ़्ट में काम कर रहे हैं। कुछ मज़दूर जो नाइट शिफ़्ट करके तड़के लौटे थे, वे काम से लौटने के बाद खाना बना रहे थे। जैसे ही आग लगी, ये तेज़ी से फैलने लगी। जो लोग इमारत में मौजूद थे, वे आग पर काबू पाने की स्थिति में नहीं थे। आग लगने के दौरान फैले धुएं से मैंने कई लोगों का दम घुटते हुए देखा।”

इस घटना में बच गए एक व्यक्ति ने कहा, “मैं पांचवें माले पर सो रहा था जब अचानक मेरे पड़ोसियों ने दरवाज़ा खटखटाया। जब मैं बाहर आया, वहां कुछ नहीं दिख रहा था सिवाय काला धुआं के।”

उन्होंने कहा, “आग बहुत जल्दी फ़ैल रही थी और चारों तरफ धुएं की वजह से हम बाकी कमरों में रह रहे लोगों का दरवाजा नहीं खटखटा सके। मेरे कमरे की खिड़की बड़ी थी इसलिए हम सभी चार लोग वहीं रहे और उसी रास्ते बाहर निकले। लेकिन मेरे पड़ोस के कमरे की खिड़की छोटी थी इसलिए वे निकल नहीं पाए।”

ख़बरों के मुताबिक आग इमारत के सबसे निचले तले पर स्थित किचन में स्थानीय समयनुसार सुबह 4:30 लगी फिर वहीं से पूरे इमारत में फ़ैल गई। बताया जाता है कि ग्राउंड फ्लोर पर रेस्टोरेंट था, जिसमें आग लगी थी।

गौर करने वाली बात ये है कि इतनी बड़ी घटना घटने के बाद भी 6 बजे तक किसी भी तरह की कोई राहत मज़दूरों के पास नहीं पहुंची थी।

एमटेक करके कुवैत में मज़दूरी

केरल के रहने वाले 48 साल के लुकोसे कुवैत की कंपनी एनबीटीसी में फोरमैन थे। घटना के बाद से केरल में उनका परिवार सदमे में है। लुकोसे की माँ 86 साल की और पिता 93 साल के हैं।

पिछले साल लुकोसे केरल में ही थे और उम्मीद थी कि वह जल्द ही कुवैत से वापस आएंगे। उनकी पत्नी और बच्चों पर दुख का पहाड़ टूट गया है। लुकोसे ही एकमात्र कमाने वाले थे।

केरल में कोट्टयम के 29 साल के स्टेफिन साबु के परिवार की हालत भी कुछ ऐसी ही है। साबु के पिता बीमार हैं और माँ बात करने की स्थिति में नहीं हैं। स्थानीय चर्च के एक सदस्य बाबू मैथ्यू ने बीबीसी को बताया, ”हम पूरी रात उस परिवार के साथ थे। यह परिवार किसी से बात करने की स्थिति नहीं है। स्टेफिन अगले महीने घर आने वाले थे। यह घर उन्होंने ही बनाया था और इसका गृह प्रवेश हाल ही में हुआ था।”

स्टेफिन ने राजीव गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से एमटेक की पढ़ाई की थी। इस पढ़ाई के बाद वह कुवैत की कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने गए थे। इनके छोटे भाई भी कुवैत में ही हैं लेकिन वह दूसरी कंपनी में काम करते हैं।

जिस इमारत में आग लगी वो केरल के तिरुवल्ला से संबंध रखने वाले केजी अब्राहम की है। अब्राहम की कंपनी NBTC कुवैत की सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में से एक है। इसके साथ ही कंपनी ऑयल, गैस सहित हॉस्पिटेलिटी से जुड़े बिजनेस करती है। हादसे में मारे गए मज़दूर इसी फर्म में काम करते थे।

दिलचस्प बात ये है कि अब्राहम फिल्म प्रोडक्शन से भी जुड़े हैं और हाल ही में बनी मलयाली फिल्म ‘अदूजीवितम’ जो खाड़ी देश में बेहद बुरे हालत में फंसे एक मज़दूर के वहां से जिन्दा बच निकलने की कहानी है।

कुवैत के उप प्रधानमंत्री शेख फहद युसूफ सऊद अल-साहब ने इस पूरी घटना के लिए इमारत के मालिक को जिम्मेदार बताया और देश भर में मज़दूरों से भरे ऐसे इमारतों के जाँच के आदेश दे दिए हैं।

जान गंवाने वाले अप्रवासी भारतीय मज़दूरों में 25 केरल से हैं।

पांच साल में खाड़ी देशों को जाने वालों संख्या दो गुनी हुई

इस हादसे में जान गंवाने वाले कई मज़दूरों के परिवारजनों का कहना है कि बेहतर सैलरी और काम के मौके के कारण ही लोग बाहर जाना चाहते हैं।

मंगाफ़ हादसे में जान गंवाने वाले एक मृतक के रिश्तेदार मुरलीधरन पिल्लई ने कहा कि ”देश से बाहर जाकर और नौकरी कर वो ज्यादा पैसा कमा रहे थे। उन्होंने डिप्लोमा किया था। अगर वो भारत में रहते तो 20 से 25 हज़ार रुपये कमा पाते। भारत में इतना भी मिल पाता?”

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट के चेयरमैन प्रोफ़ेसर इरुदया राजन का कहना है कि लोग पैसा कमाने जाते हैं और जितना हो सके बचाने की कोशिश करते हैं। इसलिए वो बहुत दयनीय हालत में रहते हैं।

विस्थापन मामलों के एक्सपर्ट प्रोफ़ेसर राजन ने पिछले साल एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें पाया गया कि साल 2018 के मुक़ाबले साल 2023 में बाहर जाने वालों की संख्या 1.29 लाख से बढ़कर 2.50 लाख हो गई है।

इस पूरे प्रकरण का सबसे अहम पहलू ये है कि इन कुशल मज़दूरों से केरल सरकार के ख़ज़ाने में बढ़ोतरी हो रही है।

कोरोना महामारी के बाद खाड़ी के देशों में मज़दूरों के वेतन में 20 से 30 फीसदी तक की कटौती हुई है। जिससे मज़दूरों को और कटौती करनी पड़ी है। और इसका असर उनके खान-पान से लेकर रहने के जगह तक पर पड़ा।

प्रोफ़ेसर राजन का कहना है कि खाड़ी देशों से भारतीय मज़दूरों के रहन सहन पर बात होनी चाहिए। उनकी आमदनी सुधरनी चाहिए। हम अपने नागरिकों को विदेश में मरने के लिए नहीं छोड़ सकते हैं।

भारतीय वायुसेना के एक विशेष विमान से सारे शवों को ताबूत में भारत लाया गया।

खाड़ी देशों में कफालाः गुलामी का दस्तावेज

गौर करने वाली बात ये है कि खाड़ी देशों में प्रवासी मजदूरों की भर्ती इन देशों में प्रचलित कफाला प्रणाली के अनुसार की जाती है।

इसमें प्रवासी मज़दूर का वीजा, यात्रा, आवास और भोजन का खर्च नियोक्ता (कफील) उठाते हैं। यह व्यक्ति आप्रवासी का प्रायोजक है। इन दोनों के बीच हुए समझौते के तहत ऐसा होता है।

लेकिन पिछले कई वर्षों से इस प्रणाली के औचित्य पर सवाल उठाये जा रहे हैं , माना जा रहा की इस कफाला प्रणाली के कारण प्रवासी मजदूरों का शोषण हो रहा है।

इस प्रणाली के तहत गिरमिटिया मजदूरों के पासपोर्ट और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ अक्सर नियोक्ता के कब्जे में रहते हैं।

ये कामगार न तो भारत लौट सकते हैं और न ही अपनी इच्छा से नौकरी बदल सकते हैं। इन मज़दूरों को कम वेतन पर घंटे दर घंटे काम पर रखा जाता है।

इसके साथ ही इन मज़दूरों के रहने की व्यवस्था भी अक्सर अच्छी नहीं होती।

यह कफाला प्रणाली बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में प्रचलित है। इसके अलावा यह जॉर्डन और लेबनान में भी प्रचलित है।

कतर ने 2020 की शुरुआत में कफाला प्रणाली को समाप्त करने का दावा किया था, जिससे विदेशी मज़दूरों को नौकरी बदलने या इच्छानुसार देश छोड़ने की अनुमति मिल जाने का भरोसा दिया गया।

लेकिन कतर में आयोजित 2022 फीफा विश्व कप के दौरान स्टेडियम निर्माण मज़दूरों के शोषण और काम करने की शर्तों के बारे में कई ख़बरें प्रकाशित हुईं ,जिनमें बताया गया कि किस तरह मज़दूरों को बंधुआ बना उनसे काम लिया जा रहा है।

हालांकि के इस तरह के शोषण को रोकने के लिए भारत सरकार का विदेश मंत्रालय समय-समय पर सूचना और दिशानिर्देश भी जारी करता है, लेकिन मज़दूरों को ज्यादातार मामलों में इनसे किसी तरह का कोई खास लाभ नहीं मिलता।

डेक्कन हेराल्ड की एक खबर बताती है कि पिछले दो सालों में सिर्फ कुवैत में 1400 से ज़्यादा मज़दूरों की मौत हुई है। हो सकता है सभी मज़दूरों की मौत दुर्घटनाओं में न हुई हो लेकिन कई हज़ार शिकायतें मज़दूरों द्वारा काम की विषम परिस्थितियों को लेकर की गई हैं।

इन शिकायतों में काम के जगह पर सेफ्टी की लापरवाही के साथ-साथ मालिक द्वारा मारपीट, रहने की ख़राब व्यवस्था सहित मज़दूरी को लेकर की गई है।

एक करोड़ मुआवज़े की मांग

इस दुर्घटना के बाद NBTC के मालिक KG अब्राहम ने पीड़ितों के परिवारों के लिए आठ लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की और उन्हें भरोसा दिया कि पीड़ितों के परिवारों को अगले चार वर्षों तक वेतन दिया जाएगा। यह परिवारों को मिलने वाली बीमा राशि से अलग है।

अभी एक दिन पहले ही कुवैत सरकार ने हर पीड़ित परिवार को 15,000 डॉलर (लगभग 15 लाख रुपये) की आर्थिक मदद करने का वादा किया गया है।

कांग्रेस MP शशि थरूर ने घटना के बाद बोला “ये घटना हमें बताती है कि मज़दूर इन देशों में किन परिस्थितियों में जीने को मज़बूर हैं। पांच साल पहले जब मैं विदेश मामलों के संसदीय स्टैंडिंग कमिटी का अध्यक्ष था तभी बोला था कि सरकार को इन मज़दूरों के पक्ष को ध्यान में रखते हुए एमिग्रेशन बिल में मज़दूरों के काम के स्थिति, उनकी सेफ्टी को लेकर सुधार करना चाहिए। लेकिन मौजूदा मोदी सरकार ने अभी तक इस पर कुछ काम नहीं किया।”

केरल के कासरगोड से कांग्रेस सांसद राजमोहन उन्नीथन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि मारे गए मज़दूरों के परिवारजनों को 50 लाख रुपयों का तत्काल मुआवज़ा दिया जाये।

वही एमबीटी (MBT) के प्रवक्ता अमजद उल्लाह खान ने मांग की है कि “इस दर्दनाक हादसे के बाद कुवैत सरकार को जान गंवाने वाले मज़दूरों को 1 करोड़ का मुआवज़ा मिलना ही चाहिए।”

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