महिला प्रधानमंत्री भी हड़ताल में हुईं शामिल, देश की सारी महिलाएं गईं छुट्टी पर, घर तक का काम बंद
यूरोप के एक तीन लाख 70,000 की आबादी वाले छोटे से देश आइसलैंड में 24 अक्टूबर को महिला प्रधानमंत्री हड़ताल पर चली गईं और देश की सभी महिलाओं को उस एक दिन किसी भी काम पर जाने से मना कर देने को कहा।
महिलाओं का कहना था कि वो ध्यान दिलाना चाहती हैं कि आइसलैंड को समानता का स्वर्ग माना जाता है लेकिन जेंडर असमानता अभी भी मौजूद है और आपात कदम उठाने की ज़रूरत है।
प्रधानमंत्री काटरिन याकब्सडॉटिर के अह्वान पर हज़ारों महिलाएं इस एक दिवसीय हड़ताल में शामिल हुईं। इसे ‘विमेन्स डे ऑफ़’ कहा गया।
आइसलैंड में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी ज़्यादातर महिलाएं हड़ताल पर रहीं और दिलचस्प है कि इस हड़ताल में घर के काम को भी शामिल किया गया, यानी उस दिन घर का काम भी बंद।
आइसलैंड में मंगलवार को प्री और प्राथमिक स्कूल बंद रहे। हड़ताल का असर म्यूज़ियम, पुस्तकालयों और चिड़ियाघरों पर भी देखा गया।
हड़ताल में शामिल रहीं आइसलैंड की प्रधानमंत्री ने कहा कि वो और उनकी कैबिनेट की सारी महिलाएं काम नहीं करेंगी ।
टीचर्स यूनियन के अनुसार, शिक्षा में महिलाएं हैं और किंडरगार्टन बच्चों की 94 प्रतिशत टीचर्स महिलाएं हैं।
यहां के सबसे बड़े अस्पताल नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में 80 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं।
इस छोटे से मुल्क को दुनिया में पुरुष स्त्री समानता के मामले में सबसे अव्वल माना जाता है लेकिन यहां भी 22 प्रतिशत महिलाएं अपने पार्टनर से हिंसा का शिकार रही हैं, ये संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े हैं।
बीबीसी के अनुसार, इस देश को ‘फैमिनिस्ट हेवन’ या महिलाओं के लिए स्वर्ग के तौर पर जाना जाता है क्योंकि आइसलैंड ने जेंडर (लैंगिक) समानता की खाई को 90 प्रतिशत पाट लिया है।
On October 24, 1975, 90% of the women in Iceland staged a strike for equal rights and pay. They ceased working, cooking, cleaning, and tending to their children, effectively bringing the nation to a standstill. The men faced significant challenges. Supermarkets quickly sold out… pic.twitter.com/yjc0yuPvAa
— Historic Vids (@historyinmemes) September 16, 2023
पहली हड़ताल का असर
साल 1975 में पहली बार देश में महिलाएं पूरे दिन की हड़ताल पर गईं थीं। 24 अक्तूबर, साल 1975 में देश की 90 फ़ीसद महिलाएं हड़ताल में शामिल हुई थीं।
इस दिन महिलाओं ने दफ़्तर, घर या बच्चों का ध्यान रखने की बजाए सड़कों पर उतरने का फ़ैसला किया था।
बैनर हाथों पर लिए, हज़ारों की संख्या में जुटी इन महिलाओं ने पुरुषों के समान अधिकार देने की मांग उठाई थी।
इस दिन को आइसलैंड में विमेन डे ऑफ़ के नाम से भी जाना जाता है।
साल 1975 में हुई इस हड़ताल का असर ये हुआ था कि देश की संसद को समान वेतन को लेकर क़ानून पास करना पड़ा और संसद में समान भागीदारी सुनिश्चित करनी पड़ी।
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