भूख गद्दार है, लफ़्ज़ गद्दार हैं, सच किसी दूसरे मुल्क का कोई जासूस है

भूख गद्दार है, लफ़्ज़ गद्दार हैं, सच किसी दूसरे मुल्क का कोई जासूस है

(पाकिस्तान के जाने माने लेखक और कवि अतीफ़ तौकीर की ये नज़्म आज के वक्त को बयां करते हैं। ट्विटर पर मिली इस कविता को तर्ज़ुमा करके हिंदी में पेश करने की कोशिश की गई है। सं.)

भूख गद्दार है
भूख में पेट पर हाथ रखना गुनाह है

प्यास गद्दार है
प्यास में आसमानों को तकना गुनाह है

लफ्ज़ गद्दार हैं
सच में लिपटे हुए नए जुस्तजू के नए रास्ते खोलते लफ्ज़ गद्दार हैं

सच भी गद्दार है
फहमो इदराक देता हुआ कोई सच किसी दूसरे मुल्क का कोई जासूस है

ख़्वाब गद्दार हैं
जिंदगी को नई करवटें बख्शने वाले सारे तसव्वुर नई जुस्तजू के करीने, नए रास्ते पर उठाए गए सब कदम, सब सवालात गद्दार हैं

वक्त गद्दार है
वक्त का साजो अहंग और नई लय पर उगती सदाएं भी गद्दार हैं

हक के राज में, खौफ के आज पर, गम की आवाज़ पर, नाचने वाले सारे मदारी मोइब्बे वतन हैं

देश में बसने वाला हर एक सच पसंद
जुल्मो वहशत से दूरी पर हरकारबंद
सांस लेने का हक मांगने वाला हर नौजवान
जिंदगी की रबक खोजने वाला हर खानदान
सारे गद्दार हैं सारे जासूस हैं

सारे गद्दार हैं सारे जासूस हैं

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Workers Unity Team