पाठ्यक्रम से संविधान, तर्क, विज्ञान हटने से अराजक पीढ़ी पैदा होगी- नज़रिया
सीबीएसई ने बच्चों के दिमाग से संविधान को हटाने की औपचारिक घोषणा कर दी है। 22 भागों में लिखे संविधान की मूल बातें अब पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रहेंगी।
सीबीएसई ने जूनियर कक्षाओं के पाठ्यक्रम से धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद, नागरिकता, लोकतांत्रिक अधिकार संबंधी पाठों को हटा दिया है।
बोर्ड ने तर्क दिया है कि कोरोना वायरस संकट के बीच विद्यार्थियों पर पाठ्यक्रम का बोझ कम करने के लिए यह फैसला लिया गया है।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए कक्षा नौवीं से 12वीं के लिए 30 प्रतिशत पाठ्यक्रम को घटाते हुए नया पाठ्यक्रम अधिसूचित किया।
इसके मुताबिक, 10वीं कक्षा के पाठ्यक्रम से लोकतंत्र एवं विविधता, लिंग, जाति व धर्म, लोकप्रिय संघर्ष एवं आंदोलन और लोकतंत्र के लिए चुनौतियां जैसे विषय अब छात्रों को नहीं पढ़ाए जाएंगे।
11वीं कक्षा के छात्रों को संघवाद, नागरिकता, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता और भारत में स्थानीय सरकारों के विकास से संबंधित पाठ भी नहीं पढ़ाए जाएंगे।
इसी तरह, 12वीं कक्षा के छात्रों को भारत के अपने पड़ोसियों पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल के साथ संबंध, भारत के आर्थिक विकास की बदलती प्रकृति, भारत में सामाजिक आंदोलन जैसे पाठों को भी हटा दिया गया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एएचआरडी) के अधिकारियों के मुताबिक पाठ्यक्रम को विद्यार्थियों का बोझ कम करने के लिए घटाया गया है।
असल में सम्प्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणराज्य और भारतीय समाज की विविधताएं भारत के संविधान का प्रमुख हिस्सा थीं। राजशाही, उपनिवेश और इसके खिलाफ संघर्षों को भी बच्चों को पढ़ाया जाता था।
आजादी के बाद शिक्षाविदों ने तय किया कि भारत का हर बच्चा अपने समाज को समझे और समाज का निर्माण करने लायक बने।
भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निर्देशक तत्वों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। इसमें कहा गया है कि प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाय।
1948 में डा. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के साथ ही भारत में शिक्षा-प्रणाली को व्यवस्थित किया गया।
1952 में लक्ष्मणस्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में गठित माध्यमिक शिक्षा आयोग और 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर 1968 में शिक्षा नीति पर प्रस्ताव प्रकाशित किया गया।
इसमें राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान तथा कार्यकुशल युवक-युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया।
संभव तो यह भी है कि गणित, विज्ञान को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया जाएगा। यही हाल रहे तो लोकतंत्र के ज्ञान और इतिहास, विज्ञान की तर्क बुद्धि से कटे मर्यादाविहीन बच्चे अपना जीवन नरक बनाएंगे और देश को गर्त में धकेलेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)
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