सू लिज्ही की कविताएंः ‘मालूम पड़ता है, एक मुर्दा  अपने ताबूत का ढक्कन हटा रहा है’

सू लिज्ही की कविताएंः ‘मालूम पड़ता है, एक मुर्दा  अपने ताबूत का ढक्कन हटा रहा है’

ठीक चार साल पहले मज़दूर वर्ग के कवि सू लिज्ही को व्यवस्था ने आत्महत्या करने पर मज़बूर किया था।

30 सितम्बर 2014 को चीन के मशहूर शेनजेन औद्योगिक क्षेत्र में स्थित फॉक्सकोन कंपनी के मज़दूर सू लिज्ही ने काम की नारकीय स्थितियों से तंग आ कर आत्महत्या कर ली।

सू काम करने की दर्दनाक परिस्थितियों से निकलने का और कोई रास्ता सामने ना पाते हुए अपने प्राण त्यागने का फैसला करने वाले चीनी मज़दूरों की एक लम्बी लिस्ट में शामिल हैं।

उनकी कविताएं श्रम की बोली में लिखी गयी हैं। पेश है उनकी कुछ कविताओं का हिंदी रूपांतरण जिसका अनुवाद किया है सुभाषिनी श्रिया ने।

Xu Lizhi
सू लिज्ही

मैं लोहे का बना चाँद निगल गया

मैं लोहे का बना चाँद निगल गया
वो इसे कील कहते हैं
मैं निगल गया, इस औद्योगिक मल को
बेरोज़गारी के सभी कागज़-पत्तर को
मशीनों पर झुके जवान अपने समय से पहले मरते हैं
मैं हलचल और बेज़ारी निगल गया,
निगल गया, पैदल पार पथों को
जंग लगे जीवन को

अब और नहीं निगला जाता
जो सब निगला,
अब फूट रहा है मेरे गले से
मेरे पूर्वजों की धरती पर
यह शर्मनाक कविता बनकर।

सू लिज्ही, 19 दिसंबर 2013

किराए का कमरा

दस बाई दस का कमरा
सिकुड़ा और सीलन भरा,
साल भर धूप के बिना
यहां मैं खाता हूँ, सोता हूँ, हगता हूँ, सोचता हूँ
खांसता हूँ, सिर दर्द झेलता हूँ, बूढ़ा होता हूँ, बीमार पड़ता हूँ
पर मरता नहीं
फिर उस फीके पीले बल्ब के नीचे
मैं ताकता हूँ, मूर्ख की तरह हंसते हुए
इधर-उधर घूमता हूं, धीमी आवाज़ में गाता, पढ़ता, कविताएं लिखता
हर बार जब खिड़की या दरवाज़ा खोलता हूँ
मालूम पड़ता है, एक मुर्दा
अपने ताबूत का ढक्कन हटा रहा है।

– सू लिज्ही, 2 दिसंबर 2013

चीन फॉक्सकॉन आत्महत्या
चीन में एप्पल के प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन के अंदर काम करते मज़दूर। ये कंपनी 2010 के बाद सुर्खियों में तब आई जब इसके वर्कर आत्महत्या करने लगे क्योंकि उनपर 12 12 घंटे की शिफ्ट के दबाव के साथ उन्हें कैदियों की तरह उन्हें कैंपों में रखा जाता था। तस्वीर साभारः सीएनबीसीडॉटकॉम

सू लिज्ही की आत्महत्या की खबर सुन कर

हर नई मौत में
फिर मैं गुज़रता हूँ
एक और कील निकल आती है
एक और प्रवासी मज़दूर भाई
अपनी मौत को छलांग लगाता है
तुम मेरी जगह मरते हो,
मैं तुम्हारी जगह लिखता जाता हूँ
कील पर कील ठोकते हुए…
आज हमारे देश की 65वीं सालगिरह है
इस देश को सुखद जश्न मुबारक
मटमैले फ्रेम में 24 वर्षीय तुम
मंद मुस्कुराते हो
पतझड़ की हवा, पतझड़ की बारिश
सफ़ेद बालों वाला बूढ़ा बाप,
तुम्हारी अस्थियाँ लिए
लड़खड़ाता घर लौटता है|

झू चीज़ाओ, फॉक्सकोन सहकर्मी
1 अक्टूबर 2014

(सू लिज्ही की क़रीब 30 कविताएं कंपनी के आंतरिक न्यूजपेपर में प्रकाशित हुई थीं। इन्हें सू ने अपने ब्लाग पर भी डाला था, जिसे यहां देखा जा सकता है- http://libcom.org/blog/xulizhi-foxconn-suicide-poetry)

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Workers Unity Team

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