48 घंटे के साप्ताहिक काम से हमारी कार्य क्षमता और उत्पादकता पर पड़ेगा बुरा असर: आईटी वर्कर
मोदी सरकार के नये लेबर कोड में साप्ताहिक काम के घंटों को 45 घंटे से बढ़ाकर 48 घंटे किये जाने के फैसले से आईटी वर्कर खासे नाराज़ है।
आईटी वर्कर का मानना है कि काम के घंटे बढ़ाने से उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ेगा।
इन 48 घंटों को बनाने के लिए, केंद्र सरकार ने तीन विकल्प दिये है जिनमें सप्ताह में चार दिनों के लिए प्रति दिन 12 घंटे, पांच दिनों के लिए दिन में लगभग 10 घंटे या छह दिनों के लिए एक दिन में आठ घंटे काम करना पड़ेगा।
चेन्नई के आईटी कंपनी में काम करने वाले 26 साल के एन पावीथरा का कहना है कि “सरकार का यह प्रस्ताव स्वीकार करने के लायक नहीं है।हम पहले से ही श्रम कानूनों में संशोधन की मांग कर रहे थे क्योंकि 45 घंटे की वर्तमान सीमा को प्राप्त करना मुश्किल हो रहा है। हमारे सेक्टर में कई लोग काम के अत्यधिक दबाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े परेशानियों का सामना कर रहे हैं और ऐसे में काम के घंटें बड़ा कर उन्हें दोहरी परेशानी में डाल दिया जायेगा।”
एक अन्य आईटी कर्मचारी टी वेणुगोपाल ने आगे कहा, “प्रबंधन पहले से ही हमें लंबे समय तक काम करने, हमारी शिफ्ट के बाद कॉल लेने और कई बार सप्ताहांत पर काम करने की उम्मीद करता है । यदि यह नियम लागू किया जाता है, तो सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनियां कर्मचारियों को ओवरटाइम काम करने के लिए बाध्य न करें।”
आईटी सेक्टर से जुड़े कई लोगों का कहना है कि लंबे समय तक काम के घंटे से थकान बढ़ेगी, उत्पादकता कम होगी और देखा जाये तो लोगों को सामाजिक जीवन पुरी तरह कट जायेंगे।
उनका मानना है कि जब कंपनियां मौजूदा काम के घंटों के साथ अपने लक्ष्य तक पहुंच रही हैं, तो उन्हें काम के घंटे बढ़ाने की क्या जरुरत है।
केएम विविन जो एक आईटी वर्कर है कहते है “काम के घंटे बढ़ाना हमारे लिए बुरे सपने सरीखा है।केंद्र की सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।”
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