आखिर मोदी सरकार की नीयत क्या है, संघर्षरत मेहनतकश सेमिनार में उठा सवाल

आखिर मोदी सरकार की नीयत क्या है, संघर्षरत मेहनतकश सेमिनार में उठा सवाल

अतीत में कठिन संघर्षों से हासिल किए गए मज़दूरों के अधिकार मोदी राज में छीन लिए गए.

एक सेमीनार में देश भर आए से वक्ताओं ने मज़दूर वर्ग के मौजूदा दशा दिशा को कुछ इन शब्दों में बयां किया है.
मज़दूरों की पत्रिका संघर्षरत मेहनतकश की ओर से उत्तराखंड के रुद्रपुर में 24 सितम्बर को एक सेमीनार आयोजित किया गया जिसमें मज़दूरों के मौजूदा हालात को लेकर चर्चा की गई.पत्रिका के संपादन मंडल की सदस्य सुभाषिनी ने कहा कि मेहनतकश का सफर, सिर्फ एक पत्रिका का नहीं मजदूर आंदोलन का सफर है. विभिन्न आंदोलनों की यह मुखर आवाज रही है.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अमिताभ भट्टाचार्य, महासचिव, एसडब्लूसीसी ने कहा कि “पूरे देश में मजदूरों के बीच विभिन्न चुनौतियां नजर आती है और ये लगातार हमारी बातचीत में उभरकर सामने आता है. सवाल यह आता है कि मजदूरों के प्रति सरकार की नीयत क्या है? आज मोदी सरकार जो चार लेबर कोड लेकर आई है उसके पीछे उसकी नीयत क्या है यह जानने के लिए हमारे देश में 60, 70 और 90 के दशक के बदलाव महत्वपूर्ण है, जब हमारे देश में उदारीकरण, निजीकरण जैसे नीतियां कांग्रेस सरकार ने लागू कीं.

उन्होंने आगे बताया की “मोदी सरकार जो श्रम कानून में बदलाव लेकर आई है और पुरानी कांग्रेस सरकार में मजदूरों के प्रति रवैए में कोई फर्क नहीं है. 2002 में वर्मा कमीशन का सुझाव ही लेबर कोड है. मजदूरों को आउटसोर्स कर उनके संख्या बल को कमजोर किया गया. मजदूरों का श्रेणी विभाजन और सामाजिक विभाजन तेज हुआ है. मजदूर इस वर्ग विभाजित समाज का नया दास है. इसलिए इस वर्ग विभाजन के खिलाफ मजदूरों को एक वर्ग के रूप में संगठित होकर, अपने इतिहास से सबक लेकर, अपनी व्यवस्था को लाने का प्रयास करना होगा.”

प्रोफेसर बीके सिंह ने मौजूदा दौर के एक महत्वपूर्ण सवाल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “पुलिस प्रशासन के बाद वर्तमान दौर में मीडिया पूंजीपतियों और सरकार के पास दमन का एक नया हथियार है, जो लोगों को भ्रमित कर रहे हैं, जो उनके नजरिये को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है और लोगों के बीच में विभाजन पैदा कर रहा है. अधिनायकवादी सत्ता में दमन के जरिए जनता को नियंत्रित किया जा सकता है, मगर यह सरकार के लिए भौतिक रूप से खर्चीला हो सकता है इसलिए मीडिया के जरिए जनता को नियंत्रित करना और भ्रमित करना भौतिक रूप से ज्यादा आसान है”.

आईएमके के सुरेंद्र ने कहा कि “सत्तर के दशक में बने श्रम कानूनों को मजदूर वर्ग के दबाव के कारण ही थो बनाया गया। 1990 के बाद मज़दूरों को मिला संरक्षण छीन लिया गया”.

ऐक्टू से केके बोरा ने मेहनतकश के आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि” 70 सालों में मजदूरों के संघर्ष से कई नए संगठन बने और चुनौतियों भी बढ़ी. मौजूदा दौर में सांप्रदायिक ताकतों ने जिस तरीके से समाज में फूट और विभाजन डाला है और समाज में इसे स्थापित करने का प्रयास किया है वो एक सवाल के रूप में हमारे सामने है.”

होमेन्द्र मिश्र AIWC( ऑल इण्डिया वर्कर्स काउंसिल) जो रोडवेज में ठेका मज़दूर थे, उन्होंने कहा कि “एक वर्ग के रूप में मजदूरों की कोई जाति या धर्म नहीं है. संगठन के आधार पर बदलाव लाना संभव है मगर सिर्फ़ सरकार और अदालत के भरोसे बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा.”

मज़दूर सहायता समिति के अजहर ने कहा कि “आज के दौर में मीडिया की जैसी नकारात्मक और जन विरोधी स्थिति है ऐसे में मेहनतकश पत्रिका का संचालन और प्रकाशन महत्वपूर्ण है. भगत सिंह के सपने को पूरा करने के लिए असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के बीच काम करना जरूरी है”.

दार्जलिंग से आए और चाय बगान संग्राम समिति के साथी चेवांग ने कहा कि” देश के विभिन्न हिस्सों के मज़दूरों की स्थिति समान है.कलिंग पो और तराई क्षेत्र को लेकर दार्जलिंग में 250 से ज्यादा चाय बगान है जिसमें सामान्यत 350 से ज्यादा मजदूर कार्यरत है. मगर अब यह संख्या केवल 20 प्रतिशत रह गई है क्योंकि ज्यादातर लोग कम मजदूरी की वजह से पलायन कर चुके हैं. इसका मुख्य कारण है चाय बगानों में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के प्रावधान लागू ना हो पाना”.

मजदूर सहयोग केंद्र से धीरज ने कहा कि “मजदूरों के लिए अपनी सामूहिक समस्याओं को चिन्हित करना और सही दिशा में आगे बढ़ना महत्वपूर्ण कार्यभार है. यह सम्मेलन इस दिशा में मददगार साबित होगा.

मेहनतकश पत्रिका के संपादक मुकुल ने सबका धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभिन्न चुनौतियों की चर्चा करते हुए बताया की “सिडकुल में संघर्षों का मूल बिंदु यह रहा कि श्रमिक संगठित हुए और यूनियन बनाया जो मालिकों को नागवार गुजरा, उसके बाद मजदूरों की छंटनी शुरू हुई. स्थिति यह है कि प्रशासन मालिक और मजदूरों के बीच खुद समझौते करवाता है और फिर उसे लागू करने से मना कर देता है. यहां तक कि हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने से प्रशासन मना कर देता है. हमें अपने सामने खड़ी समस्याओं को चिन्हित करते हुए उन्हें व्यापक और सही परिप्रेक्ष्य में देखना होगा क्योंकि बड़ी पूंजी यानी कॉर्पोरेट और फासीवादी गंठजोड़ का मजदूरों पर हमला बहुत व्यापक है.अतः विभिन्न मतभेदों के परे आंदोलन में एकता बनाने का प्रयास होना चाहिए”.

सम्मेलन में करोलिया लाइटिंग इम्पलाइज यूनियन, डेल्टा इम्पलाइज यूनियन, रॉकेट रिद्धि सिद्धि यूनियन कर्मचारी संघ, बडवे मज़दूर यूनियन, एल जी बी मजदूर संघ, भगवती इम्पलाइज यूनियन, महिंद्रा सीआईई श्रमिक संगठन, महिंद्रा कर्मकार यूनियन, बजाज मोटर्स श्रमिक संघ, पी डी पी एल मजदूर यूनियन, हेंकेल श्रमिक संघ, नेस्ले कर्मचारी संगठन, महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा यूनियन, वीर पाल सिंह, ए एल पी निशिकावा यूनियन, एडिएंट मजदूर यूनियन, इंटरार्क मज़दूर संगठन, पारले मज़दूर संघ, मंत्री मेटल्स यूनियन आदि संगठनों की उपस्थिति रही.

(मेहनतकश पत्रिका की ओर से जारी की गई विज्ञप्ति थोड़े बहुत संपादन के साथ)

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Abhinav Kumar

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