”हड़ताल खत्म करने के लिए धमका रही है सरकार”, बर्खास्तगी के बावजूद हड़ताल पर डटे हैं एंबुलेंस कर्मचारी
उत्तर प्रदेश में क़रीब बीस हज़ार एंबुलेंस चालक और मेडिकल टेक्नीशियन पिछले छह दिन से हड़ताल पर हैं.
पांच हज़ार से ज़्यादा एंबुलेंस सभी ज़िलों में खड़ी हैं, मरीज़ इधर-उधर भटक रहे हैं और सरकार कर्मचारियों की मांगों पर विचार करने के बजाय एंबुलेंस संचालन के दूसरे विकल्पों पर विचार कर रही है.
राज्य में तीन तरह की एंबुलेंस सेवाएं 108 नंबर, 102 नंबर और एडवांस्ड लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम यानी एएलएस संचालित होती हैं और ये सभी सेवाएं निजी हाथों में हैं.
एएलएस एंबुलेंस सेवा देने वाली पुरानी कंपनी का टेंडर ख़त्म होने के बाद सरकार ने नई कंपनी को टेंडर दिया है और कर्मचारियों का आरोप है कि नई कंपनी उन्हें नौकरी से निकालकर नए सिरे से भर्ती कर रही है.
कर्मचारियों की इसके अलावा भी कई मांगें हैं जिनके लिए वो पिछले क़रीब एक हफ़्ते से लखनऊ के ईको गार्डन में प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ अपनाते हुए कंपनी से उनकी बर्ख़ास्तगी की प्रक्रिया शुरू करने को कहा है.
हड़ताल में शामिल 570 कर्मचारियों को दो दिन पहले ही बर्ख़ास्त कर दिया गया और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है. कंपनी ने यह क़दम सरकार के निर्देश के बाद उठाया है और सबसे पहले संघ के पदाधिकारियों पर बर्ख़ास्तगी की कार्रवाई की है.
क्या कहना है हड़ताली कर्मचारियों का
राज्य के लगभग सभी ज़िलों में एंबुलेंस संघ के पदाधिकारियों को नौकरी से हटा दिया गया है. वहीं कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, वो हड़ताल के अपने फ़ैसले पर डटे रहेंगे.
लखनऊ के ईको गार्डन में धरना दे रहे एंबुलेंस कर्मी आदित्य पाठक कहते हैं, “जनता की परेशानियों को देखकर कई जगह हम लोग एंबुलेंस चला रहे हैं. सारे ज़िलों में वहां की संख्या के हिसाब से कुछ स्टाफ़ मौजूद है ताकि इमर्जेंसी सेवाएं बाधित न होने पाएं. लेकिन सरकार और एंबुलेंस संचालन करने वाली कंपनी हम लोगों को लगातार धमका रही हैं और हड़ताल ख़त्म करने का दबाव बना रही हैं.”
“नई कंपनी ने हमारे साथ मौखिक रूप से समझौता किया था कि बीस हज़ार रुपये हम लोगों को नहीं देने होंगे और हमें वो नौकरी पर रखेंगे, लेकिन बाद में कंपनी इस समझौते से मुकर गई. हमारे नेताओं को जेल भेज दिया गया है. यूनियन के अध्यक्ष हनुमान पांडेय का पता ही नहीं चल रहा है कि वो उन्हें कहां रखा गया है.”
राज्य में एएलएस एंबुलेंस सेवाओं का संचालन अब तक जीवीके एमआरआई कंपनी कर रही थी लेकिन पिछले दिनों राज्य सरकार ने यह काम जिगित्ज़ा हेल्थ केयर नामक कंपनी को दे दिया. एंबुलेंस कर्मियों का आरोप है कि नई कंपनी ने क़रीब 1200 पुराने कर्मचारियों को नौकरी से हटाकर नई भर्ती शुरू कर दी है.
आदित्य पाठक कहते हैं कि नए कर्मचारियों के साथ ही पुराने कर्मचारियों से भी बीस-बीस हज़ार रुपये जमा करने को कहा जा रहा है. इसी के विरोध में कर्मचारियों ने 26 जुलाई से ही एंबुलेंस खड़ी करके हड़ताल शुरू कर दी.
क्या कहना है हड़ताली कर्मचारियों का
राज्य के लगभग सभी ज़िलों में एंबुलेंस संघ के पदाधिकारियों को नौकरी से हटा दिया गया है. वहीं कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, वो हड़ताल के अपने फ़ैसले पर डटे रहेंगे.
लखनऊ के ईको गार्डन में धरना दे रहे एंबुलेंस कर्मी आदित्य पाठक कहते हैं, “जनता की परेशानियों को देखकर कई जगह हम लोग एंबुलेंस चला रहे हैं. सारे ज़िलों में वहां की संख्या के हिसाब से कुछ स्टाफ़ मौजूद है ताकि इमर्जेंसी सेवाएं बाधित न होने पाएं. लेकिन सरकार और एंबुलेंस संचालन करने वाली कंपनी हम लोगों को लगातार धमका रही हैं और हड़ताल ख़त्म करने का दबाव बना रही हैं.”
“नई कंपनी ने हमारे साथ मौखिक रूप से समझौता किया था कि बीस हज़ार रुपये हम लोगों को नहीं देने होंगे और हमें वो नौकरी पर रखेंगे, लेकिन बाद में कंपनी इस समझौते से मुकर गई. हमारे नेताओं को जेल भेज दिया गया है. यूनियन के अध्यक्ष हनुमान पांडेय का पता ही नहीं चल रहा है कि वो उन्हें कहां रखा गया है.”
राज्य में एएलएस एंबुलेंस सेवाओं का संचालन अब तक जीवीके एमआरआई कंपनी कर रही थी लेकिन पिछले दिनों राज्य सरकार ने यह काम जिगित्ज़ा हेल्थ केयर नामक कंपनी को दे दिया. एंबुलेंस कर्मियों का आरोप है कि नई कंपनी ने क़रीब 1200 पुराने कर्मचारियों को नौकरी से हटाकर नई भर्ती शुरू कर दी है.
आदित्य पाठक कहते हैं कि नए कर्मचारियों के साथ ही पुराने कर्मचारियों से भी बीस-बीस हज़ार रुपये जमा करने को कहा जा रहा है. इसी के विरोध में कर्मचारियों ने 26 जुलाई से ही एंबुलेंस खड़ी करके हड़ताल शुरू कर दी.
क्या कहना है हड़ताली कर्मचारियों का
राज्य के लगभग सभी ज़िलों में एंबुलेंस संघ के पदाधिकारियों को नौकरी से हटा दिया गया है. वहीं कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, वो हड़ताल के अपने फ़ैसले पर डटे रहेंगे.
लखनऊ के ईको गार्डन में धरना दे रहे एंबुलेंस कर्मी आदित्य पाठक कहते हैं, “जनता की परेशानियों को देखकर कई जगह हम लोग एंबुलेंस चला रहे हैं. सारे ज़िलों में वहां की संख्या के हिसाब से कुछ स्टाफ़ मौजूद है ताकि इमर्जेंसी सेवाएं बाधित न होने पाएं. लेकिन सरकार और एंबुलेंस संचालन करने वाली कंपनी हम लोगों को लगातार धमका रही हैं और हड़ताल ख़त्म करने का दबाव बना रही हैं.”
“नई कंपनी ने हमारे साथ मौखिक रूप से समझौता किया था कि बीस हज़ार रुपये हम लोगों को नहीं देने होंगे और हमें वो नौकरी पर रखेंगे, लेकिन बाद में कंपनी इस समझौते से मुकर गई. हमारे नेताओं को जेल भेज दिया गया है. यूनियन के अध्यक्ष हनुमान पांडेय का पता ही नहीं चल रहा है कि वो उन्हें कहां रखा गया है.”
राज्य में एएलएस एंबुलेंस सेवाओं का संचालन अब तक जीवीके एमआरआई कंपनी कर रही थी लेकिन पिछले दिनों राज्य सरकार ने यह काम जिगित्ज़ा हेल्थ केयर नामक कंपनी को दे दिया. एंबुलेंस कर्मियों का आरोप है कि नई कंपनी ने क़रीब 1200 पुराने कर्मचारियों को नौकरी से हटाकर नई भर्ती शुरू कर दी है.
आदित्य पाठक कहते हैं कि नए कर्मचारियों के साथ ही पुराने कर्मचारियों से भी बीस-बीस हज़ार रुपये जमा करने को कहा जा रहा है. इसी के विरोध में कर्मचारियों ने 26 जुलाई से ही एंबुलेंस खड़ी करके हड़ताल शुरू कर दी.
क्या कहना है हड़ताली कर्मचारियों का
राज्य के लगभग सभी ज़िलों में एंबुलेंस संघ के पदाधिकारियों को नौकरी से हटा दिया गया है. वहीं कर्मचारियों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, वो हड़ताल के अपने फ़ैसले पर डटे रहेंगे.
लखनऊ के ईको गार्डन में धरना दे रहे एंबुलेंस कर्मी आदित्य पाठक कहते हैं, “जनता की परेशानियों को देखकर कई जगह हम लोग एंबुलेंस चला रहे हैं. सारे ज़िलों में वहां की संख्या के हिसाब से कुछ स्टाफ़ मौजूद है ताकि इमर्जेंसी सेवाएं बाधित न होने पाएं. लेकिन सरकार और एंबुलेंस संचालन करने वाली कंपनी हम लोगों को लगातार धमका रही हैं और हड़ताल ख़त्म करने का दबाव बना रही हैं.”
“नई कंपनी ने हमारे साथ मौखिक रूप से समझौता किया था कि बीस हज़ार रुपये हम लोगों को नहीं देने होंगे और हमें वो नौकरी पर रखेंगे, लेकिन बाद में कंपनी इस समझौते से मुकर गई. हमारे नेताओं को जेल भेज दिया गया है. यूनियन के अध्यक्ष हनुमान पांडेय का पता ही नहीं चल रहा है कि वो उन्हें कहां रखा गया है.”
राज्य में एएलएस एंबुलेंस सेवाओं का संचालन अब तक जीवीके एमआरआई कंपनी कर रही थी लेकिन पिछले दिनों राज्य सरकार ने यह काम जिगित्ज़ा हेल्थ केयर नामक कंपनी को दे दिया. एंबुलेंस कर्मियों का आरोप है कि नई कंपनी ने क़रीब 1200 पुराने कर्मचारियों को नौकरी से हटाकर नई भर्ती शुरू कर दी है.
आदित्य पाठक कहते हैं कि नए कर्मचारियों के साथ ही पुराने कर्मचारियों से भी बीस-बीस हज़ार रुपये जमा करने को कहा जा रहा है. इसी के विरोध में कर्मचारियों ने 26 जुलाई से ही एंबुलेंस खड़ी करके हड़ताल शुरू कर दी.
कोविड की तीसरी लहर
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि एंबुलेंस जैसी ज़रूरी सेवाओं का इतने दिनों तक बाधित रहना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
लखनऊ में निजी अस्पताल चलाने वाले डॉक्टर सुरेश किशोर कहते हैं, “कोविड की तीसरी लहर को देखते हुए जहां सरकार को अपनी तैयारी और सुव्यवस्थित करनी चाहिए थी, वहीं एंबुलेंस जैसी ज़रूरी सेवाएं ठप पड़ी हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इन्हीं एंबुलेंस चालकों और स्टाफ़ ने दिन-रात मेहनत की थी. उनकी ज़रूरी मांगें मान ली जानी चाहिए.”
डॉक्टर सुरेश किशोर कहते हैं कि सरकारी एंबुलेंस सेवाओं की ज़रूरत सबसे ज़्यादा ग़रीब तबके को पड़ती है और उसी तबके को ही इस हड़ताल से सबसे ज़्यादा नुक़सान भी हो रहा है.
उनके मुताबिक, “सक्षम लोग प्राइवेट अस्पतालों में जाते हैं और प्राइवेट अस्पतालों के पास अपनी एंबुलेंस होती हैं. ऐसे में इन सरकारी एंबुलेंस सेवाओं के ठप रहने का उन पर कोई असर नहीं होगा. मुझे लगता है कि यही वजह है कि हड़ताली कर्मचारियों को काम पर वापस लाने की कोई ख़ास कोशिश भी नहीं हो रही है.”
(साभार: बीबीसी)
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)