बांग्लादेश के 40 लाख गारमेंट वर्करों की बड़ी हड़ताल, सरकार ने 8000 टका की घोषणा की, वर्कर 16000 टका पर अड़े
न्यूनतम मज़दूरी के मामले पर बांग्लादेश के एक्सपोर्ट गारमेंट वर्कर और सरकार में आरपार की लड़ाई छिड़ गई है।
बीते शुक्रवार को हज़ारों की तादाद में वर्करों ने ढाका में प्रदर्शन किया और सरकार की ओर से प्रस्तावित न्यूनतम मज़दूरी के खिलाफ़ बिगुल फूंक दिया।
गुरुवार, 13 सितम्बर को बांग्लादेश सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी 8,000 टका (क़रीब 7,000 भारतीय रुपये) घोषित की थी। वर्तमान में न्यूनतम मज़दूरी 5,250 टका है। नई घोषणा दिसम्बर से लागू होगा।
ढाका में नेशनल प्रेस क्लब पर सभी ट्रेड यूनियनों के वर्करों ने प्रदर्शन किया और सरकारी न्यूनतम मज़दूरी को ‘अमानवीय’ और ‘धोखाधड़ी’ करार दिया।
वर्करों की मांग है कि न्यूनतम मज़दूरी 16,000 टका प्रति माह घोषित किया जाए।
वर्करों के साथ धोखाधड़ी
बीडीन्यूज़24 ने गार्मेट वर्कर्स ट्रेड यूनियन सेंटर के जनरल सेक्रेटरी जोली तालुकेदार के हवाले से कहा, “दो साल पहले हमने 16,000 टका की न्यूनतम मज़दूरी की मांग रखी थी। इस बीच महंगाई और बढ़ गई है। 8000 टका न्यूनतम मज़दूरी की घोषणा अमानवीय है और वर्करों के साथ धोखाधड़ी है।”
वो कहती हैं, “ये सरकार पूंजीपति-परस्त है। नया न्यूनतम वेतन मालिकों के लिए सरकारी तोहफ़ा है। किसी भी हालत में हम इसे नहीं मान सकते।”
बांग्लादेश गारमेंट वर्कर्स यूनिटी के अध्यक्ष अनाजन दास सरकार को चेतावनी दी है कि अगर नई घोषणा के बाद स्थिति हाथ से निकल जाती है तो इसकी ज़िम्मेदारी सरकार की होगी।
‘हम भीख नहीं मांग रहे’
उन्होंने कहा, “8000 टका में जीना बेहद मुश्किल है। हम इसे ख़ारिज करते हैं।”
एक राजनीतिक दल ने प्रदर्शनकारी वर्करों का समर्थन किया है।
गारमेंट वर्कर्स ट्रेड यूनियन सेंटर की सभा में बोलते हुए बांग्लादेश कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष मुजाहिदुल इस्लाम सलीम ने कहा, “हम यहां भीख मांगने के लिए नहीं आए हैं। हम यहां अपनी कड़ी मेहनत का हिसाब मांगने आए हैं।”
जनवरी में सरकार ने गार्मेंट सेक्टर में न्यूनतम मज़दूरी तय करने के लिए एक रिटायर्ड जज के नृत्व में कमेटी बनाई थी।
पिछले नवंबर में न्यूनतम मज़दूरी 5,250 टका तय की गई थी।
उद्योगपतियों से भी आगे सरकार
बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफ़ैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने 6,250 टका किए जाने की वकालत की थी जबकि मज़दूर प्रतिनिधियों ने 12,000 टका की मांग रखी थी।
बेहद कम वेतन और ख़राब काम के हालात के कारण सालों से बांग्लादेश का गारमेंट सेक्टर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का सामना कर रहा है।
खासकर 2013 में राणा प्लाज़ा काम्प्लेक्स के ढह जाने के बाद से ये आलोचनाएं तीखी हो गई हैं।
इस हादसे में 1100 वर्करों की मौत हो गई थी जबकि 2500 वर्कर घायल हुए थे।
बांग्लादेश का ये प्रमुख उद्योग और सबसे बड़ा मैन्यूफ़ैक्चरिंग सेक्टर है। इसमें लाखों लोग लगे हुए हैं। अकेले ढाका में ही 40 लाख वर्कर हैं।
2017-18 में बांग्लादेश ने 30.6 अरब डॉलर का गारमेंट एक्सपोर्ट किया था, जोकि देश के कुल निर्यात का 83 प्रतिशत है।
इस बीच गारमेंट एक्सपोर्ट बढ़कर 36.6 अरब डॉलर हो गया है।
(आउटलुक से साभार)
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