रेलवे निजीकरण के कारण कुलियों के जीवनयापन पर मंडरा रहा है संकट

रेलवे निजीकरण के कारण कुलियों के जीवनयापन पर मंडरा रहा है संकट

भारत गौरव योजना के तहत देश की पहली प्राइवेट ट्रेन 14 जून को कोयंबटूर नार्थ, तमिलनाडु से साईं नगर शिर्डी, महाराष्ट्र तक चली थी। भारतीय रेल ने ट्रेन को दो साल की लीज पर प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर को दिया है।

रेलवे के निजीकरण न कराने के तमाम दावों व बयानों के बावजूद मोदी सरकार लगातार रेलवे के निजीकरण की दिशा में तेजी से क़दम बढ़ रही है। रेलवे की तमाम सेवाएं निजी हाथों मे देने, ठेका कर्मियों को नियुक्त करने का काम गति पकड़ चुका है।

वही इन सभी निर्णेयों के बाद यात्रियों का सामान उठाकर गुजर-बसर करने वाले कुलियों का जीवन संकट में आ गया है।

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वर्कर्स यूनिटी से बातचीत के दौरान नई दिल्ली रेलवे कुली यूनियन के प्रधान के पी मीणा का कहना है कि “रेलवे का निजीकरण हम लोगों के लिए सब से बड़ा परेशानियों का विषय है। उनका कहना है कि यदि रेलवे सम्पूर्ण निजिकरण होगा तो सब से पहले सरकार को सभी कुली साथियों की नौकरी सुनिश्चित करनी चाहिए।

फ़िलहाल अभी तक हम लोगों को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिले है लेकिन रेलवे के अधिकारीयों ने यूनियन को आगाह कर दिया है आने वाले समय में कुलियों के लिए नौकरी का खतरा हो सकता है।”

महंगाई के इस दौर में कुली एक ओर कोरोना महामारी के कारण आर्थिक रूप से दयनीय स्थिति में हैं वहीं रेलवे के निजीकरण के कारण कुलियों के परिवार की माली हालत बहुत कमजोर होती जा रही है।

यात्रियों का सामान उठाने के लिए रेलवे प्राइवेट कंपनियों के साथ अनुबंध कर कुलियों के रोजगार को खत्म कर रही है।

इसे मुद्दे को ध्यान में रख कर आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह ने एक पत्र राज्य सभा को सौंपा है।

संजय सिंह ने पत्र में मुख्य रूप से कहा है कि पूर्व सरकार ने दुनिया का बोझ उठाने वाले कुलियों के लिए नौकरी का प्रावधान किया था किन्तु अभी तक इनकी सारी भर्तियाँ रुकी हुई है।

जिसके कारण इनका भविष्य अंधकार में है। कुली साथियों के जीवन में सुधार लाने की जरूरत है। आगे उन्होंने इस पत्र के मध्य से एक व्यापक चर्चा कि भी मांग की है।

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WU Team

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