कृषि कानून इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला,मोदी के झूठ को अखबारों ने कैसे पकड़ा
By गिरीश मालवीय
प्रधानमंत्री ने मंगलवार को लोकसभा में भाषण देते हुए सदा की भांति जानबूझकर गलत जानकारी दी।
ये दावा करते हुए गिरीश मालवीय ने कहा है कि मीडिया ने इस झूठ का पर्दाफाश भी तुरंत ही कर दिया।
मोदी ने अपने भाषण में कहा था, ‘मैं हैरान हूं पहली बार एक नया तर्क आया है कि हमने मांगा नहीं तो आपने दिया क्यों। दहेज हो या तीन तलाक, किसी ने इसके लिए कानून बनाने की मांग नहीं की थी, लेकिन प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक होने के कारण कानून बनाया गया। शादी की उम्र, शिक्षा के अधिकार की मांग किसी ने नहीं की थी, लेकिन कानून बने। क्योंकि समाज को इसकी जरूरत थी।’
मोदी के इस भाषण पर लोग हैरानी जाता रहे थे। कुछ लोगों का कहना था कि सरकार ने जनता के हित वाले वे कौन से कानून बनाए, जिसके लिए कोई आंदोलन न चला हो।
यहां तक कि जो जनहित के कानून बने उसे लागू करवाने के लिए सालों साल आंदोलन चलता रहा है।
पीएम मोदी के इस झूठ पर भास्कर ने एक लेख लिखा है।
अखबार लिखता है, ‘प्रधानमंत्री ने जिन कानूनों का उदाहरण दिया उनमें दहेज प्रथा के खिलाफ कानून और बाल विवाह के खिलाफ कानून का भी जिक्र था, लेकिन इसका सच कुछ और है। दोनों कानून लंबे आंदोलनों के बदौलत ही बने हैं।’
दहेज के खिलाफ कानून के लिए 10 साल आंदोलन चला था।
दहेज प्रथा के खिलाफ पहला कानून (डावरी प्रोहिबिशन एक्ट) 1961 में बना था, पर यह बहुत लचीला था।
1972 में दहेज के खिलाफ कड़े कानून के लिए शहादा आंदोलन शुरू हुआ।
3 साल बाद 1975 में प्रोग्रेसिव ऑर्गनाइजेशन ऑफ वुमन ने हैदराबाद में भी आंदोलन शुरू किया। इसमें 2 हजार महिलाएं शामिल थीं।
1977 में इस आंदोलन को दिल्ली की महिलाओं का साथ मिला।
1979 में दिल्ली की सत्यरानी चंदा की बेटी की दहेज के लिए जलाकर हत्या कर दी गई, जिसके बाद उन्होंने कड़े कानूनों के लिए मोर्चा खोल दिया।
1983 में डाऊरी एक्ट को संशोधित किया गया। इसके तहत दहेज की मांग और दहेज के लिए होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिए कानून सख्त किया गया।
बाल विवाह कानून के लिए आंदोलन
राजा राममोहन राय ने बाल विवाह रोकने के लिए लंबा संघर्ष किया। उनकी मांग थी कि कम उम्र की लड़कियों के विवाह पर रोक लगाई जाए।
उनकी मांग पर ब्रिटिश सरकार ने बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम-1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पास किया था। तारीख 28 सितंबर 1929 थी।
लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई। बाद में इसमें संशोधन कर लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 और लड़कों के लिए 21 साल की गई।
इसकी पहल करने वाले हरविलास शारदा थे। इसलिए इसे ‘शारदा अधिनियम’ के नाम से भी जाना जाता है।’
असल में मोदी के इन झूठे दावों की सोशल मीडिया पर खिल्ली उड़ाई जा रही है और कहा जा रहा है की मोदी की झूठ फैलाने की आदत है।
गौरतलब है कि मोदी ने इसी भाषण में आंदोलनजीवी कहकर किसानों के समर्थक बुद्धिजीवियों पर निशाना साधा था।
उसे पहले वे राज्यसभा में श्रमजीवी, बुद्धिजीवी और आंदोलनजीवी को परजीवी कह चुके हैं, जिसपर काफी हंगामा मचा और मोदी की लानत मलानत की गई।
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