मनरेगा मजदूरी में देरी से मजदूर परेशान,सड़े चावल और पानी खा कर करना पड़ गुजारा
केंद्र सरकार द्वारा आधार आधारित पेमेंट सिस्टम सहित कई और कारणों से मनरेगा के तहत काम कर रहे मज़दूरों को काम ख़त्म करने के बाद भी मज़दूरी नहीं मिलने से खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में लगभग 25,000 ऐसे मनरेगा मज़दूर हैं, जिन्हें सौंपे गए काम को पूरा करने के बावजूद उनकी मजदूरी लंबित है.
मुजफ्फरपुर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना की मजदूरी के वितरण में देरी के कारण मज़दूरों को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है.
कई मज़दूरों ने बताया की खर्च चलाने के लिए उन्हें उच्च ब्याज दरों पर निजी उधारदाताओं से पैसा उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. कुछ मज़दूरों का कहना है कि उन्हें पांच महीने से वेतन नहीं मिला है, जिससे रोजाना दो वक्त की रोटी जुटाना
भी उनके लिए मुश्किल हो गया है.
जिले के एक सरकारी अधिकारी ने स्वीकार किया कि पटना में ग्रामीण विकास विभाग को कुछ समय से केंद्र से धन नहीं मिला था. जिससे ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरी के वितरण में देरी हुई.
उन्होंने कहा कि ‘केंद्र सरकार द्वारा अब फंड जारी कर दिया गया है और जिले के 93% श्रमिकों की मजदूरी जारी कर दी गई है. कुछ परेशानियां है जिन्हें जल्द ही दूर कर लिया जायेगा और सभी मज़दूरों को उनकी मज़दूरी मिल जाएगी’.
हालांकि, मुजफ्फरपुर स्थित एक गैर सरकारी संगठन मनरेगा वॉच के अनुसार गायघाट, बोचहा और कुढ़नी सहित जिले के कई ब्लॉकों में लगभग 25,000 श्रमिकों को अभी तक उनकी मजदूरी नहीं मिली है.
पानी और नामक के साथ चावल खा रहे हैं बच्चे
मोहम्मदपुर सूरा पंचायत के धबौली गांव की रहने वाली विधवा सुदामा देवी (37) ने कहा कि उनके पास अपने पांच बच्चों का पेट भरने के लिए पर्याप्त अनाज तक नहीं है. एक पत्रकार जब उनके घर पहुंचा तो देखा उनका सबसे बड़ा बच्चा जिसकी उम्र 13 वर्ष है, पानी और नमक के साथ खराब गुणवत्ता वाले चावल खा रहा था.
सुदामा देवी रोते हुए बताती हैं “मैंने एक स्थानीय साहूकार से ऊंची ब्याज दर पर 5,000 रुपये उधार लिए हैं. पिछले चार महीनों से मुझे मेरी मजदूरी नहीं मिली है. अगर मुझे पैसे नहीं मिलेंगे, तो मैं कैसे जीवित रहूंगा?”
गायघाट प्रखंड के बेरुवा पंचायत के चोरनिया गांव की 40 वर्षीय सुनीता देवी का भी यही हाल है. उन्होंने बताया की “मार्च और जुलाई 2023 के बीच किए गए 45 दिनों के काम की मज़दूरी अब तक नहीं मिली है, जो लगभग 10,000 रुपये है. कोई देखने और सुनने वाला नहीं है हमारी हालत.जैसे-तैसे दिन गुजर-बसर हो रहा है.”
कई मज़दूरों ने अपने वेतन का भुगतान न होने के कारण बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है
मनरेगा मुजफ्फरपुर के जिला कार्यक्रम अधिकारी अमित कुमार उपाध्याय ने कहा कि इस मुद्दे को सुलझा लिया गया है. उन्होंने बताया की “हमारे जिले में, समय पर भुगतान की दर 93% है. इसका मतलब है कि प्रत्येक 100 श्रमिकों में से 93 को समय पर भुगतान किया जाता है. असल में हमें केन्द्र से फंड प्राप्त नहीं हो रही थीं, जो ग्रामीण विकास विभाग के खाते में जाती हैं. देरी के कारण मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा था, लेकिन अब इसे सुलझा लिया गया है.आधार आधारित वेतन भुगतान के साथ कुछ मुद्दे हैं जिन्हें ठीक किया जा रहा है “.
हालाँकि ग्राउंड पर सरकार और अधिकारियों के सारे दावे खोखले दिख रहे हैं. मज़दूरों के हाडतोड़ मेहनत का उनका वाजिब हक़ भी सरकार के शिथिल रवैये के कारण नहीं मिल पा रहा है. कई सामाजिक कार्यकर्त्ता भी लगातार ये आरोप लगाते रहे हैं की मनरेगा जैसी महत्वकांक्षी योजना को इस तरह की देरी,फंड रोक देना और अब आधार आधारित पेमेंट सिस्टम के जरिये जटिल बना कर ख़त्म कर देने की साजिश की जा रही है.
( द हिन्दू की खबर से साभार)
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