दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों की 22 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन
देश में तालाबंदी के दौरान कई राज्यों में श्रम कानूनों को ‘खत्म करने’ के विरोध में दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है।
इस संबंध में शुक्रवार को फैसला लिया है। साथ ही इस मामले को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के पास ले जाने का भी निर्णय लिया गया।
दसों ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय स्तर के नेता 22 मई को गांधी समाधि, राजघाट, नई दिल्ली में एक दिन की भूख हड़ताल करेंगे। सभी राज्यों में संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
उनकी मांगों में फंसे हुए श्रमिकों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए तत्काल राहत, सभी को भोजन उपलब्ध कराया जाना, राशन वितरण का सार्वभौमिक कवरेज, सभी असंगठित श्रम बल को नकद हस्तांतरण (पंजीकृत या अपंजीकृत या स्वरोजगार) आदि हैं।
संयुक्त बयान जारी करने वाली दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों में इंटक, एटक, एचएमएस,सीटू, एक्टू, सेवा, टीयूसीसी, एआईयूटीयूसी, एलपीएफ और यूटीयूसी हैं।
सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 14 मई हुई बैठक में देश के कामकाजी लोगों के लिए लॉकडाउन अवधि के दौरान परेशानियों पर बातचीत की और एकजुट होकर प्रतिरोध करने पर जोर दिया। इसके बाद संयुक्त बयान जारी किया गया।
संयुक्त बयान में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रमुख श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है, मध्यप्रदेश सरकार ने भी कुछ नियमों को बदल दिया है। गुजरात, त्रिपुरा और कई अन्य राज्य भी इसी राह पर हैं। राज्य सरकारों का श्रम कानूनों को निलंबित करना श्रम मानकों के साथ ही मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता का भी उल्लंघन है।
आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने की आड़ में उत्तरप्रदेश सरकार ने 1000 दिनों के लिए भुगतान अधिनियम 1934, निर्माण श्रमिक अधिनियम 1996, मुआवजा अधिनियम1993 और बंधुआ मजदूर अधिनियम 1976 की धारा 5 पर कुठाराघात किया है।
यही नहीं, ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम, अंतरराज्यीय प्रवासी श्रम अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, मातृत्व लाभ अधिनियम आदि भी निष्क्रिय करने की कोशिश है।
लॉकडाउन का फायदा उठाकर गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और पंजाब सरकार ने फैक्ट्री एक्ट की आत्मा पर चोट की है और काम के घंटों को बढ़ाकर 8 से 12 कर दिया, जो कि मजदूर वर्ग को गुलामी के हालात में फेंकने जैसा है।
यहां बता दें, आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ ने भी 20 मई को श्रम कानूनों के निलंबन के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।
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