नए कृषि क़ानून से 62 लाख करोड़ का कारोबार अडानी अंबानी की जेब में जाएगा- किसान बचेंगे या मोदी-1
By एसवी सिंह
भारत के किसान की ‘मुक्ति’ का नम्बर भी आखिरकार लग ही गया!! मोदी सरकार समाज के एक के बाद दूसरे हिस्से की ‘मुक्ति’ की हड़बड़ी में है, रुकने-सुनने को बिलकुल तैयार नहीं। ‘मुक्ति’ से बचने की कोई गुंजाईश ही नहीं!
इस बार, लेकिन, लगता है कुछ ज्यादा ही हो गया। सशक्त किसान समुदाय जो 2014 से ही इस फासीवादी सरकार का सबसे बड़ा समर्थक रहा है, गुस्से में तिलमिलाकर आग उगल रहा है।
देशभर में किसान सड़कों और रेल की पटरियों पर जमे हुए हैं और आगामी 25-26 नवम्बर को भारत बन्द और दिल्ली घेराव का ऐलान हो चुका है।
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- कुरुक्षेत्र में प्रदर्शन करने जा रहे किसानों को पुलिस ने घेर कर बरसाई लाठी
मोदी सरकार को अपने 6 साल के कार्यकाल में पहली बार किसानों के रोष विद्रूप संगीत का सामना करना पड़ रहा है। कृषि ‘सुधार’ के नाम पर 3 कानून; ‘कृषि उपज, वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) कानून 2020’; ‘मूल्य आश्वासन कृषक (सशक्तिकरण और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा कानून 2020; तथा ‘आवश्यक वस्तु संशोधन कानून 2020’लाकर मोदी सरकार ने कृषि व्यापार, संग्रहण एवं बिक्री के अति महत्वपूर्ण क्षेत्र में पूंजीवादी बाजारी शक्तियों के गले का जैसे पट्टा ही खोल दिया है।
कृषि वाणिज्य व्यापार में लाए गए ये बदलाव सीधे तौर पर भी 80 करोड़ लोगों को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले हैं लेकिन परोक्ष रूप से देश के हर जीवित को प्रभावित करने वाले हैं क्योंकि कोई भी इन्सान, गरीब हो या अमीर, खाना खाए बगैर जिंदा नहीं रह सकता।
इतने महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाले अध्यादेश लाने के लिए सरकार ने 5 जून का दिन चुना, जब कोरोना महामारी की भयावहता; जिसमें एक लाख से ज्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं और 68 लाख संक्रमित हो चुके हैं, देश कोरोना कुप्रबंधन में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है; की वजह से अपने घरों में दुबके ‘आत्मनिर्भर’ बैठे हैं!!
‘आपदा में अवसर’ के नाम पर कोरोना महामारी को मोदी सरकार ने अपने आका कॉर्पोरेट के हित में इस कदर इस्तेमाल किया है जितना कोई दूसरा देश सोच भी नहीं सकता!! सरकारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए; इन कृषि संशोधनों को ‘कोरोना महामारी के राहत पैकेज’ के रूप में प्रस्तुत किया गया था!!
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असलियत ये है कि कोरोना वायरस ने मोदी सरकार का असली घिनौना चेहरा देश के सामने नंगा कर दिया है, पर्दा फट चुका है।
राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कृषि विभाग और मंडी समितियों के मामले में आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए भी, किसी भी राज्य से कोई सलाह मशविरा ना करना, संसद में खासतौर से राज्यसभा में, जहाँ सरकार अल्पमत में है, इन्हें पास करवाने में हर धोखाधड़ी, जैसे जबरदस्ती समय बढ़ाना, विपक्ष की विरोध में की गई चिल्लाहट को ‘ध्वनी मत’ बताना; ये सब हथकंडे सिर्फ संसदीय मान्यताओं और संघीय ढांचे की मर्यादाओं को पैरों तले कुचलना ही नहीं है बल्कि मोदी सरकार का फासीवादी चरित्र रेखांकित करता है।
देश, लेकिन, पतन के उस स्तर को छू चुका है, जब ना तो सरकार को ही इस बात की परवाह है कि उसका असली चरित्र नंगा हो रहा है और ना लोग अब इन कारनामों से हैरान होते हैं!!
अँधेरा सर्वग्राही और सर्वव्यापी हो चुका है। कृषि बाज़ार में पूंजी के इस निर्बाध और बेरोकटोक हमले के बहुत भयानक परिणाम होने वाले हैं। लघु एवं सीमांत किसानों, जिनकी तादाद कुल किसानों की 86% है, की तबाही निश्चित है।
वे अपनी छोटी छोटी जोतों से बेदखल होकर बे-रोजगारों की विशालकाय सेना का हिस्सा बन जिंदा रहने की जद्दोजहद में शहरों का रुख करेंगे जहाँ पहले से ही रोजगार के स्रोत सूख चुके हैं।
पहले से ही संकट में घिसट रही अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से चौपट हो चुकी है, उत्पादन हर क्षेत्र में 50% से भी नीचे स्तर पर है, ‘विकास की हरी कोपलें’ अब मोटी सरकारी पगार पर पल रहे दरबारी अर्थशास्त्रियों को भी नजर आनी बंद हो चुकी हैं।
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‘उत्पादन कोरोना पूर्व का स्तर कभी नहीं छू पाएगा’ ये सच्चाई अब औपचारिक रूप से भी स्वीकार की जाने लगी है। दूसरी तरफ़ चंद एकाधिकारी पूंजीपतियों के पूंजी के पहाड़ विशालकाय होते जा रहे हैं। कोरोना लॉकडाउन काल में भी मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति हर घंटे 90 करोड़ रुपये से बढ़ रही है।
ऐसी स्थिति में सरकार, मतलब पूंजीपतियों की मैनेजमेंट समिति, बड़े पूंजीपतियों को पूंजी निवेश और बेरोकटोक लाभ कमाने के अवसर प्रदान करने के लिए कृषि क्षेत्र का लगभग 62 लाख करोड़ का व्यापार तश्तरी में रखकर अर्पित कर रही है।
ये बात दीगर है कि पूंजीवाद नाम का मरीज जो पहले ही आई सी यू में है और इतनी सारी जान लेवाबिमारियों से ग्रस्त है कि उस पर किसी भी इंजेक्शन का कोई असर नहीं हो रहा।
एक बीमारी का ईलाज किया जाता है तो उससे दूसरी उससे भी घातक बीमारी के लक्षण नजर आने लगते हैं इसलिए ये ‘ईलाज’ उसके लिए प्राणघातक भी सिद्ध हो सकता है। (क्रमशः)
(यथार्थ पत्रिका से साभार)
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