क़तर: वर्ल्डकप ख़त्म हुआ, अब प्रवासी मजदूरों का क्या होगा?
अर्जेंटीना की जीत के साथ रविवार, 18 दिसंबर को क़तर में फीफा फुटबॉल विश्व कप 2022 का उत्सव भी अब समाप्त हो गया। लेकिन बाकी है अभी इस फुटबॉल खेल के आयोजन के लिए निर्माण में लगे प्रवासी मजदूरों की मौत और उत्पीड़न की कहानी। ख़ास बात यह है कि कल ही विश्व प्रवासी दिवस भी था।
क़तर जिस फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप के मैच भारतीय और दक्षिण एशियाई मजदूरों के कब्र पर बने स्टेडियमों में खेले गये यह कहना गलत नहीं होगा।
एमनेस्टी इंटरनेशलनल ने 2022 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि कतर में पिछले 10 साल में 15 हजार 21 प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है। इनमें सबसे ज्यादा 2 हजार 711 मजदूर भारत के थे। क़तर में न सिर्फ भारतीय मजदूरों की मौत हुई बल्कि नेपाली और पाकिस्तान के मजदूरों के मारे जाने की खबर है।
18 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सभी प्रवासियों के अधिकारों और उनके परिवारों को संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को अपनाया था। हर साल इसी दिन विश्व प्रवासी दिवस मनाया जाता है। लेकिन कल किसी को उन प्रवासी मजदूरों की याद नहीं आयी को क़तर में मारे गये और जिनका उत्पीड़न हुआ!
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World Cup boss Hassan Al-Thawadi tells Piers Morgan 400-500 migrant workers have died as a result of work done on projects connected to the tournament.
"Yes, improvements have to happen."@piersmorgan | @TalkTV | #PMUQatar pic.twitter.com/Cf9bgKCFZe
— Piers Morgan Uncensored (@PiersUncensored) November 28, 2022
क़तर में न सिर्फ भारतीय मजदूरों की मौत हुई और उनका शोषण हुआ बल्कि उन्हें समय पर वेतन भी नहीं दिया गया। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) ने भी इस बात को स्वीकार किया है।
बीते 1 नवंबर को आइएलओ ने अपनी एक रिपोर्ट में प्रवासी मज़दूरों को समय पर वेतन नहीं दिया जाने का दावा किया गया था। रिपोर्ट में यह कहा गया था कि कतर में प्रवासी मजदूरों की स्थिति दयनीय है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कतर में प्रवासी मजदूरों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि उन्हें बिना वेतन के काम करना पड़ रहा है।
बीते 15 दिसंबर को तीन दर्जन से अधिक नेपाली नागरिक समाज संगठनों ने FIFA के अध्यक्ष जियानी इन्फेंटिनो को एक पत्र लिखा था । जिसमें कहा गया है कि क़तर फ़ुटबॉल वर्ल्डकप स्टेडियम के निर्माण के दौरान मारे गए नेपाली प्रवासी मज़दूरों को मुआवजा देने से फीफ़ा आंखें चुरा रहा है। इन संगठनों की मांग है कि मारे गए सभी मज़दूरों के परिवारों को मुआवजा दिया जाना चाहिए।
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It is grim irony that today's #WorldCup final is being played today, Dec. 18, which in 2000 the UN General Assembly proclaimed International Migrants Day. At least 6,500 migrant workers died in #Qatar to make #Qatar2022 possible. https://t.co/E9zSxRRFso https://t.co/T1gyHvyxtM
— Mona Eltahawy (@monaeltahawy) December 18, 2022
साल 2016 में मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने क़तर पर मज़दूरों से जबरदस्ती काम कराने का आरोप लगाया था। आरोपों में कहा गया था कि बहुत से मज़दूरों को बहुत बुरी और अमानवीय माहौल में रखे गये थे, उनके घर रहने लायक नहीं थे, उनसे भारी भरकम रिक्रूटमेंट फीस ली जाती गयी थी और मज़दूरी को जबरन रोक रखा जाता था, पासपोर्ट ज़ब्त कर लिए गए थे।
क़तर में भारतीय मजदूरों के शोषण पर क्विंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसे पढ़ कर आपका रूह काँप जायेगा।
खुद क़तर सरकार के अनुसार , 2010 से 2019 के बीच देश में कुल 15,021 प्रवासियों की मौत हुई। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कतर को फीफा विश्व कप की मेजबानी मिलने से लेकर 2021 तक वहां 6500 से ज्यादा प्रवासियों की मौत हुई है। यह प्रवासी भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के थे।
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Express Investigation: Qatar World Cup kicks off in a month, spare a thought for these menhttps://t.co/9FQM1bPbza
— Harikishan Sharma (@harikishan1) October 20, 2022
18 दिसंबर 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सभी प्रवासियों के अधिकारों और उनके परिवारों को संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को अपनाया था। 4 दिसंबर 2000 को महासभा ने दुनिया में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 18 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था।
बीते 20 अक्टूबर को इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि, विदेश मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2020 से 2022 के बीच पिछले 3 साल में 72,114 मजदूर भारत से कतर पहुंचे। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 2011 से 2022 के बीच कतर में रहते हुए 3,313 भारतीय मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी।
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