विज्ञान की बुनियाद पर समझें, कोरोना महामारी से मजदूरों को कितना डरना चाहिए- भाग 1
By आशीष सक्सेना
कोरोना वायरस की नई नस्ल की खोज से लेकर दुनिया में मौजूदा हालात से लगभग हर कोई वाकिफ है, भले ही सिर्फ खौफ और उससे उपजे सवाल ही क्यों न हों।
अलबत्ता, माइक्रोबायोलॉजी के स्तर पर खोजें और तजुर्बें व तथ्यों की बुनियाद पर तस्वीर कुछ ऐसी बनती है, जिसे मजदूर वर्ग को समझना ही चाहिए। इससे न सिर्फ उनका खौफ कम होगा, बल्कि भविष्य का रास्ता चुनने में आसानी हो सकती है।
दरअसल, अभी तक सिर्फ संक्रमण और मौत के आंकड़ों की प्रस्तुति और उसके आधार पर बौद्धिक तबका मानवता पर खतरे की तस्वीर खींचकर डरा रहा है, जबकि विज्ञान ऐसा नहीं कह रहा।
विज्ञान क्या कह रहा है और डर कितना है? क्या वास्तव में भारत की हालत अमेरिका और इटली जैसी हो सकती है? विज्ञान इसकी न तो गवाही दे रहा है और न ही सबूत। ये लिखा-पढ़ी की बात भी नहीं, बल्कि अपने अनुभव से हम खुद भी जान सकते हैं।
वर्कर्स यूनिटी ने एक बार फिर उन्हीं वरिष्ठ वैज्ञानिक माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ.बीआर सिंह से बातचीत की, जो विश्वविख्यात इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट में महामारी विभाग के अध्यक्ष भी हैं।
हाल ही में उन्होंने 81 देशों के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर एक रिसर्च पेपर भी लिखा है, जो रिसर्चगेट वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। बताया ये जा रहा है कि जल्द ये किसी नामचीन जर्नल में प्रकाशित होगा और संस्थान निदेशक ने ये पेपर भारत सरकार को भी भेजा है।
आखिर क्या खास है इस रिसर्च पेपर में, जिसका हिसाब-किताब मजदूर भी समझ लें। इस पर हम रिसर्च की मोटी बातें और उनसे किए गए सवालों के जवाब से जान सकते हैं।
क्रमश: जारी…..
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