कोरोना के बहाने ‘तीसरा महायुद्ध’ – भाग दो

कोरोना के बहाने ‘तीसरा महायुद्ध’ – भाग दो

By आशीष सक्सेना

पहले भाग में हमने बताने की कोशिश की कि किस तरह साधारण लोगों की मौत का सच एक नए वायरस के खौफ में गुम है, जबकि उससे कहीं ज्यादा मानवीय क्षति हो रही है।

सभी आंकड़े प्रसिद्ध सूक्ष्म जीव विज्ञानी डॉ.बीआर सिंह के ब्लॉग ‘आजाद इंडियाÓ से लिए गए हैं और उन्होंने वे आंकड़े डब्ल्यूएचओ व सीडीसी की अधिकृत वेबसाइट से लिए हैं, जिनकी हमने उन्हीं वेबसाइट से पुष्टि भी की।

बीआर सिंह का कहना है कि कोविड-19 की कोई दवा या टीका नहीं है, लेकिन ये भी तथ्य है कि अगर कोई फ्लू जैसी बीमारी से पीडि़त है तो कोविड-19 के पॉजिटिव आने की केवल 65 प्रतिशत संभावना है।

क्वारंटीन सेंटरों पर हुई जांच के विश£ेषण से पता चलता है कि 80 फीसद मामलों में पॉजिटिव होने का नतीजा गलत रहा है। फिर भी उन मरीजों को पॉजिटिव ही घोषित किया जा सकता है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक कहते हैं कि हम क्यों कोविड-19 से चिंतित हैं, जो कि शायद एक प्रतिशत लोगों को ही संक्रमित कर सकता है। भारत की आबादी के लिहाज से ऐसी संख्या 13 लाख बनती है, जबकि इस संख्या में 0.1 प्रतिशत से कम यानी 1 लाख 30 हजार को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत होगी और उनमें से 10 प्रतिशत यानी 13 हजार की मौत होने की संभावना होगी।

उन मरने वालों में भी 90 फीसद यानी 11 हजार 700 लोग 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग हो सकते हैं। मुख्य क्षति 1300 लोग होंगे, क्योंकि वे देश व समाज के लिए उत्पादक श्रेणी में होंगे उम्र के लिहाज से। बाकी 11 हजार 700 आमतौर पर वे लोग हो सकते हैं, जिनको पहले ही उम्र और बीमारियों के साथ ही सामाजिक तौर पर अनुत्पादक मानकर संवेदनहीनता का परिचय दिया जाता है।

ऐसे रोगग्रस्त बुजुर्गों को बेहतर स्वास्थ व सामाजिक सेवा देने की जगह पूरी अर्थव्यवस्था और उत्पादक आबादी को मार देना बुद्धिमत्ता नहीं है। अर्थव्यवस्था तबाह होने से लाखों लाोग आत्महत्या कर सकते हैं, लाखों भूखे मर सकते हैं।

क्या ये बेतुकी बात नहीं कि हम बेवजह सवा लाख लोगों को पॉजिटिव लाने में दिलचस्पी ले रहे हैं। जबकि वास्तविक खतरा वैसा नहीं है, जिसका सामूहिक खौफ है।

सिर्फ 20 प्रतिशत मामलों में सही डायग्नोसिस होने की संभावना पर अर्थव्यवस्था को अनिश्चय की हालत में पहुंचाने से निष्क्रिय और अनुत्पादक आबादी का पैदा करना है, जिससे वे सब भिखारी की तरह कतार में खड़े हो जाएं।

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ashish saxena