जनरल मोर्टस के तालेगांव प्लांट से 1419 मज़दूरों की छंटनी, कंपनी के फैसले के खिलाफ श्रमिक जायेंगे कोर्ट
दुनिया की अग्रणी कार निर्माता अमेरिकी कंपनी जनरल मोर्टस ने महाराष्ट्र के तालेगांव स्थित अपने प्लांट से 1419 कर्मचारियों की छंटनी कर दी है।
कंपनी के 1419 कर्मचारियों को कंपनी के तरफ से एक ईमेल मिला जिसमें उनके छंटनी से संबंधित नोटिस भेजा गया था। कंपनी ने इसकी कॉपी शुक्रवार को जनरल मोटर्स एम्पलाइज यूनियन के सचिव और अध्यक्ष को भेज दी है।
वही कर्मचारी संघ का कहना है कि वो आपस में बैठक कर के कंपनी के इस फैसले के खिलाफ कानूनी संभावनाओं पर विचार करेंगे। और वो लोग कंपनी के इस कदम को कानूनी रुप से चुनौती देंगे।
इकॉनामिक टाइम्स की खबर के मुताबिक कर्मचारियों को भेजे गये ईमेल की ही कॉपी कंपनी के गेट पर भी चिपकाई गई। साथ ही नोटिस में इस बात का भी जिक्र है कि अगले आदेश तक कंपनी का यह फैसला प्रभावी रहेगा।
वही कर्मचारियों का कहना है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 के तहत वो मुआवजे के हकदार है। इस मुआवजे के तहत उन्हें उनकी बेसिक सैलरी और डीए का 50 फीसदी मिलना चाहिए।
वही कंपनी ने कर्मचारियों को भेजे गये अपने पत्र में बताया कि ” कोविड-19 के कारण मुख्यतः छंटनी की घोषणा की गई है। और एक प्राकृतिक आपदा होने के कारण उचित प्राधिकरण से कोई पूर्व अनुमति नहीं मांगी गई है और न ही औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25-एम के तहत इसकी कोई आवश्कता थी।
जनरल मोटर्स के इंटरनेशनल डायरेक्टर फॉर कम्युनिकेशन जॉर्ज स्विगोस ने इकॉनामिक टाइम्स को बताया कि “कंपनी ने पिछले चार महीनों में कोई निर्माण कार्य नहीं होने के बावजूद कर्मचारियों का भुगतान जारी रखा है। और हम फिलहाल यही सोच रहे है कि कर्मचारियों को कंपनी की तरफ से एक अच्छा सेपरेशन पैकेज दिया जा सके”।
स्वीगोस का कहना है कि “हम कर्मचारियों को एक जुदाई पैकेज अच्छी तरह से सांविधिक आवश्यकता से अधिक की पेशकश कर रहे है । लेकिन अफसोस की बात है कि यूनियन ने सेपरेशन पैकेज पर बातचीत करने से इनकार कर दिया है। इसलिए कंपनी को मजबूरन इस फैसले को लेना पड़ा।”
वही दूसरी तरफ जनरल मोटर्स कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष संदीप भेगाड़े ने नोटिस मिलने की पुष्टि करते हुए कहा कि यूनियन संबंधित अधिकारियों के साथ इसे चुनौती देगी।
भेगाडे ने कहा कि “कोरोना का सहारा लेकर कंपनी गैरकानूनी तरीके से मज़दूरों की छंटनी कर रही है। जी तोड़ मेहनत कर कंपनी को खड़ा करने वाले मज़दूरों की जिम्मेदारी से कंपनी ऐसे नहीं भाग सकती है। हमारा रुख यह है कि हम विभिन्न प्लेटफार्मों पर अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।”
मालूम हो कि पिछले एक साल के दौरान और खासकर लॉकडाउन के बाद कंपनियां लगातार कोरोना महामारी का सहारा लेकर मज़दूरों की छंटनी कर रही हैं। हांलाकि इसी बीच कंपनियों में कार्यरत मज़दूर भी आंदोलन कर रहे हैं। जिसकी वजह से कई कंपनियों को अपने फैसले वापस लेने पड़े हैं।
लेकिन नये श्रम कानूनों में इन कंपनियों को जिस तरह की छूट दी गई है, मज़दूरों के लिये आने वाले समय में स्थितियां और भयावह होंगी।
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