मोदी के संसदीय क्षेत्र से निजीकरण की शुरुआत, आज 15 लाख बिजली कर्मचारियों का देशव्यापी प्रदर्शन

मोदी के संसदीय क्षेत्र से निजीकरण की शुरुआत, आज 15 लाख बिजली कर्मचारियों का देशव्यापी प्रदर्शन

बिजली संशोधन बिल 2020 को वापस लेने और सरकारी बिजली वितरण कम्पनियों को टाटा-अंबानी के हवाले किए जाने के ख़िलाफ़ मंगलवार को बिजली विभाग के 15 लाख कर्मचारी देशव्यापी प्रदर्शन कर रहे हैं।

बिजली कर्मचारी वितरण को निजी हाथों में देने का विरोध कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार ने पीछे हटने की बजाय केंद्र शासित प्रदेशों, पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम (वाराणसी) और ओडिशा में तीन अन्य सरकारी बिजली वितरण कंपनियो को निजी हाथों में देने का फैसला किया है।

यूपी वर्कर्स फ्रंट के उपाध्यक्ष दुर्गा प्रसाद ने बिजली कर्मचारियों के इस विरोध का समर्थन किया है और कहा है कि “बिजली क्षेत्र का भी निजीकरण इस सरकार का महत्वपूर्ण एजेंडा बना हुआ है। कारपोरेट की चाकरी की हद यह हो गई कि कर्मचारियों और जनता के आक्रोश का सामना न करना पड़े इसलिए चोर दरवाजे से चुपचाप भारत सरकार के ऊर्जा मंत्री ने लखनऊ का जुलाई माह में दौरा किया और निजीकरण की दिशा में चीजों को बढ़ाने का काम किया। इसे ट्रेड यूनियन नजरिए से महज नौकरशाही की करतूत मानना भारी भ्रम होगा और कर्मचारियों को इससे सावधान रहना होगा।”

बिजली क्षेत्र में निजीकरण की आंधी

फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस से बातचीत में ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (एआईपीईएफ़) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि 18 अगस्त को पूरे देश के बिजली कर्मचारी विरोध स्वरूप प्रदर्शन कर रहे हैं।

ओडिशा में सीईएसयू को पहले ही टाटा पॉवर के हवाले किया जा चुका है, जिसे वापस किए जाने की मांग हो रही है।

शैलेंद्र दुबे ने कहा कि बीती तीन जुलाई को बिजली मंत्रियों की बैठक के दौरान 11 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया था। उस दौरान केंद्रीय बिजली मंत्री आरके सिंह ने वादा किया था कि वो बिजली संशोधन बिल 2020 का नया ड्राफ़्ट पेश करेंगे लेकिन 45 दिन होने को आए अभी तक मोदी सरकार की ओर से कोई पहलकदमी नहीं ली गई है, उल्टे निजीकरण करने के फैसले लिए गए।

उन्होंने दावा किया है कि मोदी सरकार ने पुडुचेरी, चंडीगढ़, जम्मू एंड कश्मीर और लद्दाख की सरकारी वितरण कंपनियों को निजी हाथों में दे दिया। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस निजीकरण को आगे बढ़ाते हुए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को निजी हाथों में देने का फैसला किया है जबकि ओडिशा सरकार ने सेंट्रल इलेक्ट्रीसिटी सप्लाई अंडरटेकिंग (सीईएसयू) को पहले टाटा पॉवर को दे दिया है और तीन और वितरण कंपनियों (डिसकॉम) नेस्को, वेस्को और साउथको को बेचने का फैसला किया है।

फेल हो गया प्राइवेट कंपनियों का मॉडल

दुबे ने कहा कि ओडिशा, नागपुर, औरंगाबाद, जलगांव, गया, भागलपुर, आगरा, ग्रेटर नोएडा, उज्जैन, ग्वालियर, सागर और अन्य जगहों पर बिजली वितरण को निजी कंपनियों के हवाले किए जाने का भयंकर परिणाम दिख चुका है और ये मॉडल फेल हो चुका है, लेकिन सरकार इन्हीं फ़ेल मॉडल को राज्यों को वित्तीय मदद के नाम पर थोप रही है।

उन्होंने कहा कि सरकार का ये सीधा सीधा ब्लैकमेल का तरीका है जिसे कर्मचारी बर्दार्श नहीं करेंगे।

ग़ौरतलब है कि कोरोना की महामारी के दौरान पूरे देश में बिजली के बिल अनाप शनाप आने से जनता में भी आक्रोश है और भले ही इस पर कोई बहस नहीं हो, सोशल मीडिया पर भारी संख्या में लोग अपनी शिकायतें दर्ज करा रहे हैं।

लोगों का कहना है कि बिजली वितरण का निजीकरण किए जाने से कंपनियां जनता को पर्ची काट कर लूट रही हैं और मोदी सरकार उन्हीं को बढ़ावा देने में लगी हुई है।


वर्कर्स फ़्रंट का बयान- सांकेतिक आंदोलन का दौर खत्म!

वर्कर्स फ्रंट का यह स्पष्ट मानना है कि वित्तीय पूंजी के सक्रिय सहयोग से आरएसएस और भाजपा की सरकार भारतीय अर्थ नीति का पुनर्संयोजन कर रही है और देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों के हितों को पूरा करने के लिए देश की राष्ट्रीय संपत्ति को बेचने में लगी हुई है।

इसी दिशा में बिजली, कोयला, रेल, बैंक, बीमा बीएसएनएल, भेल समेत तमाम सार्वजनिक उद्योग जो पिछले 70 सालों में विकसित हुए और जिनके जरिए आम जनमानस को बड़े पैमाने पर राहत पहुंचाई गई उसका निजीकरण किया जा रहा है।

यहां तक कि हमारे महत्वपूर्ण खनन स्रोत तेल आदि को भी बेचा जा रहा है। कौन नहीं जानता की पूर्ववर्ती सरकार की ऐसी ही निजीकरण की लूट भरी योजनाओं में हुए भारी भ्रष्टाचार के कारण पैदा जनाक्रोश का लाभ उठाते हुए आरएसएस और भाजपा की सरकार 2014 में सत्ता में आई थी और आज वह इसे और भी जोर शोर से अंजाम दे रही है।

बिजली के निजीकरण के सवाल को आरएसएस-भाजपा के कारपोरेट हितों को पूरा करने के संपूर्ण प्रोजेक्ट के बतौर देखना और इसके अनुरूप अपने आंदोलन की रणनीति तय करना वक्त की जरूरत है।

सिर्फ फैक्ट्रियों के गेट और कार्यालयों के बाहर सांकेतिक आंदोलन का दौर खत्म हो गया है। इसलिए हमें निजीकरण के परिणाम स्वरूप जनता को होने वाले अहित व नुकसान के बारे में बड़े पैमाने पर जन संवाद कायम करना होगा और निजीकरण के सवाल को एक बड़ा राजनीतिक प्रश्न बनाना होगा, इसके लिए राजनीतिक गोलबंदी करनी होगी।

हमें इन जनविरोधी व राष्ट्र विरोधी नीतियों को लागू करने वाली आरएसएस-भाजपा की सरकार को सत्ता से हटा देने के लिए खुद को और जनता को तैयार करना होगा ताकि निजीकरण के रोड रोलर की दिशा को बदला जा सकें।

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Workers Unity Team