विकास की तीन कहानियां
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By राजेंद्र चतुर्वेदी
1-विशाखापट्टनम स्टील प्लांट में 35 हजार कर्मचारी हैं, और उसकी परिसंपत्ति लगभग 3 लाख करोड़ रुपए की है। यह कंपनी लगभग तीन हजार करोड़ सालाना का मुनाफा कमाती है। इसे मोदी सरकार केवल 1300 करोड़ में बेच रही है।
2-भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी में करीब डेढ़ लाख कर्मचारी हैं। एलआईसी के पास लगभग सात लाख करोड़ की प्रॉपर्टीज हैं। एलआईसी लगभग 50 हजार करोड़ रुपए का सालाना मुनाफा कमाती है। मोदी सरकार इसकी 25 फीसदी हिस्सेदारी 74 हजार करोड़ में बेचेगी, अगले साल मार्च तक आईपीओ आ जाएगा।
3-भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी बीपीसीएल के पास 10 लाख करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टीज हैं। लगभग 5 हजार लोग इसमें प्रत्यक्ष नौकरी करते हैं, जबकि अपने 7986 (सात हजार नौ सौ छियासी) पेट्रोल पंप और लगभग 10 हजार एलपीजी एजेंसियों के जरिए ये कंपनी कितने लोगों को रोजगार देती होगी, इसका गणित लगाते रहिए। ये कंपनी बिकने के लिए तैयार है। ये कंपनी ज्यादा से ज्यादा चार लाख करोड़ में बिकेगी।
विकास की ये तीनों कहानियां मार्च-2022 तक पूरी हो जाएंगी।
नोट-इरडा की वेबसाइट पर जाकर सर्च कर लीजिएगा। निजी बीमा कम्पनियों का क्लेम सैटिलमेंट का रेशियो अधिकतम 62 परसेंट है।
यानी, अगर 100 पॉलिसीहोल्डर क्लेम करते हैं तो निजी बीमा कम्पनियां केवल 62 लोगों का क्लेम स्वीकार करती हैं, 38 लोगों को टरका देती हैं।
जबकि एलआईसी का क्लेम सैटिलमेंट रेशियो 99.97 फीसदी है। यानी एक हजार में से तीन लोग ऐसे होते हैं, जिनका क्लेम एलआईसी सैटिल नहीं करती।
क्लेम और पॉलिसी के मैच्योर होने का फर्क तो आप जानते ही हैं। यहां मैच्योरटी की नहीं, क्लेम की बात की जा रही है।
ये बात इसलिए की गई है, ताकि निजीकरण का सपोर्ट करने अगर कोई पॉलिसीहोल्डर सज्जन इस पोस्ट पर पधारें तो उन्हें एक बार यह सोचने का मौका मिले कि कहीं ऐसा न हो कि वे भी असमय अनंत की यात्रा निकल जाएं और इधर मृत्यु लोक में उनके बीवी बच्चों को क्लेम के सैटिलमेंट के लिए धक्के खाने पड़ें और फिर भी हाथ में कुछ न आए।
भाई, जीवन का क्या ठिकाना। ऐसा भी नहीं है कि आप सपोर्टर हैं, तो निजी बीमा कंपनियां आपके बीवी बच्चों का क्लेम सैटिल कर देंगी। न, उनके लिए सब धान 22 पसेरी है।
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