‘लॉकडाउन का लुत्फ’ ले रहे फेसबुकिया मध्यवर्ग की रूह कांप उठेगी ये पढ़कर – भाग दो

‘लॉकडाउन का लुत्फ’ ले रहे फेसबुकिया मध्यवर्ग की रूह कांप उठेगी ये पढ़कर – भाग दो

By आशीष सक्सेना

स्वान के वालंटियर्स ने लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों के 640 समूहों के 11,159 लोगों से बात करके विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। एक तरह का नमूना सर्वे है, जो एक आम तस्वीर खींचता है मजदूरों की तकलीफ के बारे में।

रिपोर्ट के मुताबिक, मोटे तौर पर लॉकडाउन से बुरे हालात को झेलने वालों में 79 प्रतिशत कारखानों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर या निर्माण श्रमिक हैं। आठ प्रतिशत ड्राइवर, घरेलू कामगार और इतने ही वेंडर, जरी कारीगर भी हैं।

आजीविका संकट सीधे तौर पर 12 करोड़ लोगों के सामने खड़ा हो चुका है। जबकि केंद्र और राज्य सरकारों ने राहत दिलाने या देने के मामले में इस दौरान 350 से ज्यादा आदेश जारी किए।

हकीकत ये रही कि लॉकडाउन के समय 50 प्रतिशत श्रमिकों के पास 1 दिन से भी कम समय के लिए राशन था। वालंटियर्स से 72 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनका राशन 2 दिनों में खत्म हो जाएगा।

महाराष्ट्र में 71 प्रतिशत लोगों (291 समूहों से पूछा गया) ने कहा कि उनके पास केवल 1 दिन के लिए राशन है। महाराष्ट्र में 89 प्रतिशत लोगों ने कहा कि 2 दिनों के भीतर उनके सभी राशन खत्म हो जाएगा। कर्नाटक में 36 प्रतिशत (जिनसे सवाल पूछा गया था) ने बताया कि उनके पास केवल 1 दिन के लिए राशन है।stranded workers walk through roads

हाथ में नकदी की कमी और खाना मिलेगा या नहीं सोचकर तमाम लोगों ने कंजूसी से काम चलाने की कोशिश की।

ऐसे कई मामले थे जहां लोग भुखमरी की कगार पर सप्ताहभर में ही पहुंच गए, 96 प्रतिशत को सरकार से राशन नहीं मिला था और 70 प्रतिशत को कोई पका हुआ भोजन नहीं मिला था ।

उत्तर प्रदेश में सबसे बुरा हाल दिखाई दिया, जहां किसी भी मजदूर को सरकार से कोई राशन नहीं मिला ।

कर्नाटक में 80 प्रतिशत प्रवासी पके हुए भोजन का उपयोग नहीं कर पाए, क्योंकि अधिकांश उत्तर भारतीय थे और उन्हें स्थानीय खाना खाने में समस्या थी, वे कच्चा राशन चाहते थे, जिससे खुद बनाकर खा सकें।

दिल्ली और हरियाणा में पके हुए भोजन के वितरण का बंदोबस्त ही तय निर्देशों का उल्लंघन करने का जरिया बन गया। लंबी कतारों में घंटों खाना लेने के लिए, मजदूरों की मुसीबत हो गई। community kitchen in imt manesar

धर्मार्थ और परमार्थ सेवा से मिलने वाले भोजन की सीमा है। जिम्मेदारी तो सरकार की है और सरकार का बंदोबस्त मजदूरों के लिए जानलेवा हो गया।

क्रमश: जारी……

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ashish saxena