लॉकडाउन के दौरान 89 प्रतिशत मजदूरों को नहीं मिली पगार
By आशीष सक्सेना
अचानक देश में लॉकडाउन को घोषित करने के साथ ही जहां मध्यवर्गीय परिवारों ने हर जरूरी सामान के लिए बाजारों का रुख किया, मजदूर वह भी नहीं कर सके। वजह? उनकी जेब खाली थी।
पहले प्रधानमंत्री ने अपील की, फिर गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि नियोक्ता श्रमिकों को पूरी मजदूरी का भुगतान करें और घर के मालिक फंसे श्रमिकों से किराया न लें। लेकिन हकीकत ने सबकुछ साफ कर दिया।
अपील और आदेशों की कोई कानूनी वैधता नहीं थी। यही वजह थी कि बाद में कंपनियों और उनके प्रतिनिधि संगठनों से साफतौर पर लॉकडाउन का पैसा देने से भी इनकार कर दिया।
स्वान की रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद 78 प्रतिशत लोगों के पास 300 रुपये से भी कम पैसे बचे थे। सरकारी राहतों का आलम ये रहा कि लगभग 98 प्रतिशत सरकार की ओर से कोई नकद राहत नहीं मिली। कई के साथ तो ऐसा भी हो गया कि उनके खाते में 1000-500 रुपये धनराशि आई तो मिनिमम बैलेंस न होने से उड़ गई।
ऐसा भी हुआ कि कुछ जगह नियोक्ताओं ने राशन मुहैया कराया, लेकिन ये कहकर कि राशन के पैसे पगार से काट लिए जाएंगे। शिकायत न करने को धमकाया भी गया। छोटे ठेकेदार और व्यवसायी तो राशन मुहैया कराने में भी नाकाम हो गए, क्योंकि काम बंद होने के बाद नकदी का टोटा हो गया।
पंजाब के लुधियाना में फंसे उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर कमलेश कुमार ने कहा, ‘भले ही राशन मिले, लेकिन हमें गैस के लिए कम से कम 500 रुपये चाहिए ही हैं।’
मंगलुरु में फंसे झारखंड के 14 प्रवासी श्रमिकों के एक समूह के लिए सूखे राशन की व्यवस्था की गई। तीन दिन बाद एसओएस कॉल से पैसे मांगे गए, क्योंकि खाना पकाने को गैस नहीं थी।
हैदराबाद में फंसे बिहार के मुजफ्फरपुर की अफसाना खातून ने कहा, ‘मेरी एक साल की बेटी और मानसिक रूप से उदास पति है। मुझे उनके लिए दवाएं खरीदने की जरूरत है, लेकिन मेरे पास कोई नकदी नहीं है।‘
हाथ में पैसा न होने से प्रवासी मजदूरों में आक्रोश भी दिखा। मुंबई में मौजूद झारखंड के एक प्रवासी मजदूर ने कहा, ‘हम जैसे मोदी की नजर में कीड़ों की तरह हैं इसलिए हमें उस तरह की मौत दी जा रही है।’
ओडिशा में वाहन चलाने वाले जितेंद्र साहू के पास न खाने का इंतजाम था और न ही पैसा। सिर्फ वाहन में सो सकते थे।
सिद्दीक, उनकी पत्नी और दो अन्य लोग पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के जऱी कारीगर कोयम्बटूर में फंस गए। कई बार आधा घंटे की दूरी पर बने सामुदायिक रसोई को चले, लेकिन रास्ते में पुलिस ने दौड़ा लिया। वे भी नकदी न होने से परेशान थे, पैसा होने पर राशन खरीदकर पका सकते थे।
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