विदेशी अख़बार ने मोदी को आत्ममुग्धता की बीमारी से ग्रस्त पीएम बताया, विदेशों में छवि मटियामेट
भारत में कोरोना महामारी से निपटने में पूरी तरह विफल रहने पर विदेशी मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीखी आलोचना हो रही है और ऐसा लगता है कि मोदी ने पिछले छह सालों में विदेशों में जो अपनी छवि बनाने की कोशिश की थी, वो चंद दिनों में ही मटियामेट हो गई है।
ताज़ा आलोचना ब्रिटेन के अख़बार ने डेली मेल ने किया है और पीएम मोदी को ‘नार्सिसिस्ट पीएम (आत्ममुग्धता की मानसिक बीमारी वाला पीएम)’ बताया है जो करोड़ों देशवासियों के कष्ट में होने के बावजूद अपने लिए महल बनवा रहा है जिसकी लागत में 40 बडे़ अस्पताल बनाए जा सकते थे।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया का कहना है कि मोदी की गलती से करोना कहर बन गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा है कि नासिक में ऑक्सीजन लीक से मौतों की घटना के बाद भी मोदी की तारीफ के पुल बांधे गए। कुंभ जैसे बड़े मिले किए जाते रहे। पश्चिम बंगाल में ताबड़तोड़ रैलियां की जाती रहीं।
मोदी ने 2020 की गलतियों से सबक नहीं लिया और नई गलतियों का पुलिंदा खोल दिया। बंगाल चुनाव की रैलियों में भारी भीड़ नजर आई। अब हालात यह है कि श्मशान घाट और कब्रिस्तान में लाशों के ढेर लग गए हैं। कोरोना की दूसरी सुनामी मोदी की छवि को तार-तार कर दिया है।
दुनिया भर में लोगों को भरोसा दिया गया था कि मोदी कोरोना को हरा चुके हैं, लेकिन यह बात ग़लत साबित हुई। ठीक है कि कोरोनावायरस मोदी ने बड़ी हद तक रोक लगा दी थी लेकिन दूसरी लहर ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। मुर्दा घरों में लाशों के ढेर लगे हैं।
‘द गार्जियन’ ने मुख्य समाचार में श्मशान घाट में जल रही चिताओं की ऊंची लपटों को दिखाया है। ‘द लंदन टाइम्स’ ने लिखा है कि दूसरी सुनामी में हर दिन तीन लाख से अधिक मामले आ रहे हैं। सरकार ने हालात की गंभीरता को नहीं समझा और कोरोना की सुनामी खड़ी कर दी।
ग्लोबल प्रेस ने भी मोदी के ऊपर तल्ख टिप्पणी की है। द टाइम्स ने लिखा है कि कोरोना की दूसरी लहर ने सरकार को भोंथरा साबित कर दिया है। देश औंधे मुंह गिर गया है।
फाइनेंशियल टाइम्स और द वॉशिंगटन ने यूपी के कब्रिस्तान की तस्वीरें दिखाई हैं जहां सातों दिन 24 घंटे लाशों को दफन किया जा रहा है।
विदेशी अख़बारों ने मोदी को सीधे तौर पर कोरोना तबाही के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। विदेशी मीडिया में प्रतिष्ठित न्यूज़ आर्गेनाइजेशन अलजज़ीरा ने आईएमए के हवाले से मोदी को सुपर स्प्रेडर यानी महामारी को तूफानी गति से बढ़ाने वाला बताया है।
अलजज़ीरा की नई दिल्ली संवाददाता एलिजाबेथ पुरानम लिखती हैं कि मोदी पर आरोप लग रहे हैं कि महामारी के दौरान लोगों की जान बचाने की बजाय उन्होंने अपना ध्यान राजनीति पर दिया।
ऐसे समय में जब अस्पताल कोरोना के मरीजों से अटे पड़े थे, मरीजों के परिवारवाले ऑक्सीजन सप्लाई के लिए भागदौड़ कर रहे थे और श्मशानों में मरने वालों के लिए जगह कम पड़ रही थी । देश में स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह चरमराने के संकेत मिल रहे थे, तब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैलियों में लोगों की भीड़ देखकर खुश हो रहे थे।
अलजज़ीरा के मुताबिक, 17 अप्रैल को बंगाल में रैली के दौरान उन्होंने कहा, ‘ मैंने लोगों की इतनी भीड़ कभी नहीं देखी। मैं जहां तक देख सकता हूं, केवल लोग ही दिख रहे हैं, मैं और कुछ नहीं देख पा रहा।’
जब देश में कोरोना की दूसरी लहर पैर पसार रही थी, मोदी सरकार ने एक ऐसे हिंदू पर्व को मनाने की इजाजत दे दी जिसमें करोड़ों लोगों को हिस्सा लेना था, ऐसे क्रिकेट मैचों को इजाजत दी, जिसमें हजारों लोग जुटने थे।
उनके ऐसे कामों की देश के अंदर भी आलोचना हो रही है। देश के कोर्ट बार- बार मोदी सरकार को फटकार लगा रहे हैं।
वह कहती हैं, ‘दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से कहा कि लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं और आप किसी दूसरी दुनिया में मस्त हैं।’
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के वाइस प्रेसीडेंट डाॅ नवजोत दहिया ने मोदी को कोरोना वायरस का सुपर स्प्रेडर बताया है।
70 साल के मोदी की छवि एक टेक्नोक्रेट नेता की थी, तो करप्शन से दूर और ब्यूरोक्रेटस से काम कैसे निकलवाया जाता है, ये जानने वाली छवि थी, लेकिन अब उन्हें ऐसे नेता के तौर पर देखा जा रहा है जो लोगों के स्वास्थ्य से भी आगे अपनी पार्टी की राजनीति को रखता है।
यही नहीं, जब देश में मौतों की संख्या बढ़ने लगी और वैक्सीन की तादाद कम पड़ने लगी तो मोदी ने वायरस से निपटने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी, जो पहले से संसाधनों की कमी झेल रहे हैं।
जानीमानी लेखिका अरुंधति राॅय ने कोरोना से मोदी के निपटने के तरीके को ‘ मानवता के विरुद्ध अपराध’ बताया है।
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