एक मज़दूर की चिट्ठीः 13 हज़ार में 13 घंटे खटना पड़ता है, निकाल देने की धमकी अलग
मैं गाजियाबाद में रहता हूं और नौकरी करने एक्सिस बैंक नोएडा 128 में जाता हूं मेरे यह कहना है कि जब हम बैंक का काम कर रहे हैं जो बहुत ही इंपॉर्टेंट माना जाता है।
हमारी सैलरी इन हैंड 13,000 रुपये क्यों है जबकि ग्रॉस सैलरी ₹17000 के करीब है इसमें कंपनी पीएफ़ अलग से काटती है और पैसा ईपीएफओ प्राइवेट फंड में जाता है।
मेरी प्रॉब्लम का कोई अंत नहीं है। हमारे यहां कभी भी किसी को सीधे निकाल दिया जाता है और लगातार इसकी धमकी भी जाती रहती है।
सैलरी बहुत कम है। हम लोग चूंकि ऑफ रोल एम्पलाईज़ हैं इसलिए टीमलीज वेंडर कंपनी के मार्फ़त एक्सिस बैंक में हमें रखा गया है।
हमारे अधिकारी कहते हैं कि 2 साल लगेंगे अगर आपकी परफॉर्मेंस अच्छी हुई तो आपको और रोल पर ले लिया जाएगा।
लेकिन इसकी क्या गारंटी है? मैं 2 साल बाद सिलेक्ट हो जाऊंगा कोई और बंदा जिसका सोर्स होगा या मैनेजर का चाटुकार होगा वह अपना ऑनरोल नहीं कराएगा?
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देर रात तक रोकते हैं
जो नया सीईओ आया है एक्सिस बैंक में वह एचडीएफसी में पहले था। अब ऐसा लग रहा है सारा एचडीएफसी से ही अपने जितने एम्पलाई हैं उनकी भर्ती करा रहा है।
इनके जितने भी मैनेजर असिस्टेंट मैनेजर आए हैं अपने सोर्स की वजह से सारे एचडीएफसी से आए हैं।
ये अधिकारी भी निचले स्तर के कर्मचारियों की अपनी जान पहचान के आधार पर भर्ती करते हैं इसलिए एचडीएफ़सी के बहुत से बंदे हमारे यहां भर्ती हुए हैं।
हमें मीटिंग में हमेशा कहा जाता है कि आपको रात को भी रुकना होगा क्योंकि हम मैनेजर भी रुकते हैं जबकि हमने जिस ऑफर लेटर पर साइन किया था उसमें दो टाइमिंग 9:30 बजे सुबह से 5:30 बजे तक थी।
फिर भी हम सब 6:30 शाम तक रुकते हैं और बस वालों की टाइमिंग भी कंपनी ने 6:30 बजे शाम की कर दी है।
यह समझ के बाहर है जबकि मैनेजर कहते हैं कि इसके बाद भी आपको उनके दूसरे प्रोसेस में दो या तीन घंटा और टाइम देना पड़ेगा मतलब 8:00 या 9:00 बजे रात तक काम करना पड़ेगा या उससे भी ज्यादा बिना ओवर टाइम के और बिना सहमति लिए।
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दो कर्मचारियों का काम अकेले
चूंकि कॉस्ट कटिंग के चक्कर में कर्मचारी कम हैं इसलिए वे दबाव डालते हैं और सिर्फ इनके दबाव और मजबूरी में काम करना पड़ता है।
मेरा प्रोसेस ऑटो लोन डिपार्टमेंट का है जिसमें डाटा एंट्री करनी पड़ती है। लेकिन मुझे इसके अलावा भी और काम देखने पड़ते हैं।
यह बहुत ही इंपॉर्टेंट डिपार्टमेंट है जिससे इस बैंक का एनपीए बकाया है और इनको कस्टमर से निपटना पड़ता है इतना अपना प्रोसेस करने के बाद यह मुझे दो और प्रोसेस करवाते हैं।
क्योंकि उनके लिए बंदे चाहिए, पैसा खर्च होगा इसलिए उससे अच्छा वह किसी मेरे जैसे बंदे से दो और प्रोसेस कराते हैं बिना अलग से पैसे दिए।
वे कहते हैं कि इससे तुम्हें तुम्हारी नॉलेज बढ़ेगी अगर मना करते हैं तो मैनेजर के गुस्से और पॉलिटिक्स का सामना करना पड़ता है।
अगर हम दूसरा भी कोशिश करते हैं हमारी प्रोडक्टिविटी अच्छी है तो हमें दूसरे पास इसका पैसा क्यों नहीं मिलता।
अगर मैं रात को 8:00 बजे जाता हूं तो मुझे वो टाइम एक या 2 घंटे का क्यों नहीं मिलता यह इलीगल नहीं है क्या?
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ऑनरोल का लालच
बहुत से बंदे इसलिए रुक जा रहे हैं रात भर क्योंकि उनके पास एक ही जॉब है बीवी बच्चे वाले हैं या उनकी कोई मजबूरी है जो उन्हें कहने से रोकती है।
अगर बंदा टैलेंटेड है तो 3 या 4 महीने में उसका ऑनरोल क्यों नहीं होना चाहिए?
ऑनरोल होने में इतने साल क्यों लगते हैं और उससे और बैंक क्यों नहीं अपने ऑफिशियल वेबसाइट में बताता कि कितने एम्पलाई ऑन रोल हुए हैं?
हमारी बहुत सी छुट्टियां बाकी है जो कि हम ले नहीं पाते अपने काम की वजह से उसका हमें पैसा भी नहीं दिया जाता वह सारी बेकार हो जाएंगी।
अगले साल तो उन छुट्टियों का क्या होगा? उसका पैसा तो हमें मिलना चाहिए।
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कुछ पॉलिसीज और रिफॉर्म के बारे में मेरे कुछ सुझाव हैं-
- सरकार को कुछ ऐसी नियम कायदे श्रम कानून बनाने चाहिए जिससे किसी भी कंपनी में कर्मचारी जाए तो उसका इस तरह से शोषण ना हो।
- एक टोल फ्री नंबर हो जिसमें कोई भी एम्पलाई किसी भी कंपनी की शिकायत या कोई मदद निकली चाहता हो तो उसको मिले।
- लिविंग वेज यानी जीने लायक मजदूरी मिले हर कंपनी के कर्मचारी को आज के टाइम के हिसाब से एक एम्पलाई को ₹25000 चाहे वह सरकारी हो चाहे प्राइवेट कंपनी मिलना चाहिए क्योंकि आज के टाइम में उसे अपने अपना भी घर चलाना है। हर जगह का बिल भरना है चाहे वह हाउस टैक्स हो मोबाइल बिल हो इंटरनेट का हो और बहुत सारे उसके काम की चीजों के लिए।
- एक लेबर मिनिस्ट्री का अधिकारी या आईएस ऑफिसर तैनात किया जाए जो हर कंपनी का ऑडिट करें और वहां जाकर रह कर देखें कि कोई इंप्लॉय या कंपनी अपने कर्मचारी या लेबर के साथ कोई नाइंसाफी तो नहीं कर रहा है या उन कर्मचारियों को जबरदस्ती ज्यादा देर तक तो नहीं रुकाया जा रहा है अगर रुकाया जा रहा है तो क्या उस से सहमति ली गई है क्या उसको और टाइम दिया जाता है क्या उनकी मर्जी जानी जाती है।
- यह अधिकारी उन कर्मचारियों से फीडबैक ले कोई दिक्कत हो तो उसका समाधान करें और ऑडिट में कोई उसे गड़बड़ी मिलती है तो उस कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर दे या उस पर जुर्माना लगाया जाए।
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