अमेरिका के धोखा देने के बाद पुराने दोस्तों रूस-चीन से मदद क्यों नहीं ले रहे मोदी?

अमेरिका के धोखा देने के बाद पुराने दोस्तों रूस-चीन से मदद क्यों नहीं ले रहे मोदी?

दुनिया के दरोगा अमेरिका के इशारे पर बनी चौकड़ी में मोदी का भारत भी शामिल था। बाकी देश थे ऑस्ट्रेलिया और जापान। अब जब मोदी का भारत भारी विपदा में है चौकड़ी के बाकी तीनों देशों ने न सिर्फ अपनी आंखें मूंद ली हैं बल्कि मदद की गुहार पर गुर्राहट भी दिखाने लगे हैं।

इस चौकड़ी में मोदी सरकार बराबरी की हिस्सेदार की बजाय एक एक दोयम दर्जे का सदस्य बन कर रह गया है। यहां तक कि सरप्लस वैक्सीन और वैक्सीन के रॉ मैटीरियल तक ये देश भारत को देने में अनाकानी कर रहे हैं। बल्कि अमेरिका ने तो प्रतिबंध ही लगा दिया है।

अगर इस विपदा में किसी ने मदद का हाथ बढ़ाया है तो वो है रूस जिसने अपने यहां विकसित और 90 प्रतिशत तक सफल वैक्सीन स्पुत्निक को भारत भेजने का प्रस्ताव दिया है। चीन ने भारत की मदद करने का प्रस्ताव दिया है। क्यूबा में विकसित हुई वैक्सीन का आज पश्चिम के सारे पूंजीवादी देश लोहा मान रहे हैं और वहां से वैक्सीन मंगाने की कोशिश कर रहे हैं।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे का कहना है कि वैक्सीन के मामले में अमेरिका का रवैया तो निंदनीय है ही, जर्मन चांसलर भी भारत से वैक्सीन की सप्लाई नहीं मिलने से ग़ुस्से में हैं। उन्होंने बयान दिया है कि यूरोप ने भारत को दवा उद्योग का इतना बड़ा केंद्र बनाया और अब अगर ऐसा रहा तो वे इस क्षेत्र में सहयोग व मदद रोक सकता है। पढ़िए उनकी पूरी टिप्पणी-

क्वाड (चौकड़ी) को मैं केवल एक प्रेस विज्ञप्ति ऐसे ही नहीं कहता। आज भारत विपदा में है, तो क्वाड के अन्य तीन देश- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान- अपना सरप्लस वैक्सीन भेजकर मदद कर सकते हैं।

लेकिन अमेरिका ने ज़रूरत से तीन गुना वैक्सीन होने के बाद भी मना कर दिया है। सामान भेजने पर भी पाबंदी है। जापान में लाखों वैक्सीन इसलिए फेंक दिए गए क्योंकि सीरिंज नहीं थी।

ऑस्ट्रेलिया में सरप्लस के बाद भी उत्पादन हो रहा है। भारत समेत इन देशों के नेताओं के साथ कुछ दिन पहले एक साझा लेख लिखकर कोरोना से लड़ने का दावा किया था।

हालाँकि वह लेख स्कूली निबंध से भी बेकार था और मेरा अनुमान है कि किसी पीआर इंटर्न से उसे लिखवाया गया था।

बाइडेन से 175 पूर्व राष्ट्राध्यक्षों और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लोगों ने पत्र लिख कर पेटेंट में छूट का अनुरोध किया है। लेकिन बाइडेन प्रशासन अपने पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन की तरह अमेरिका फ़र्स्ट की नीति पर चल रहा है। दोस्ती और इंसानियत की पहचान तो मुसीबत में ही होती है।

यह पश्चिम का बुनियादी चरित्र है। लगता है कि ऐसी विपदा में भारत को चीन के सहयोग के प्रस्ताव पर तुरंत निर्णय लेना चाहिए ताकि स्थिति में कुछ सुधार हो।

वैक्सीन व दवा के मामले में क्यूबा से सहयोग लेने की दिशा में सोचा जाना चाहिए। क्यूबा के वर्तमान राष्ट्रपति मिगेल दियाज़-कनेल 2015 में भारत आए थे और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने निवास के बाहर आकर स्वागत किया था।

उस समय मिगेल राष्ट्रपति नहीं थे और मोदी को प्रधानमंत्री बने एक साल भी नहीं हुआ था। तब उन्होंने कहा था कि जब भी क्यूबा का नाम आता है, तो उनके ध्यान में क्यूबा के डॉक्टर आते हैं, जो दुनियाभर में अपनी सेवाएं देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने चिकित्सा क्षेत्र में दोनों देशों के सहयोग की उम्मीद भी जतायी थी।

साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद क्यूबा की यात्रा पर गये थे। दोनों देशों के बीच दशकों के घनिष्ठ संबंध के बावजूद यह किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली क्यूबा यात्रा थी। महामारी में दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्यकर्मी और दवा भेजने के साथ क्यूबा पाँच वैक्सीन बनाने के काम में लगा हुआ है।

कई देश ये वैक्सीन लेने जा रहे हैं। भारत को भी अपना प्रस्ताव भेज देना चाहिए। भारत और क्यूबा की लंबी मित्रता का एक आयाम विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग का भी रहा है। इस संबंध को आधार बनाया जाना चाहिए और इसे और बेहतर किया जाना चाहिए। संभव हो, तो तात्कालिक स्तर पर कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी मांगे जा सकते हैं।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।) 

Workers Unity Team

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.