जब भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो साइकिल से ही चले पड़े मज़दूर, आधे रास्ते में गई एक की जान

जब भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो साइकिल से ही चले पड़े मज़दूर, आधे रास्ते में गई एक की जान
By रूपेश कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकार

दिल्ली की केजरीवाल सरकार के सारे दावों का पोल उस समय खुल गया जब बिहार के सात दिहाड़ी मज़दूर भूख न बर्दाश्त कर पाने की वजह से साइकिल से ही अपने घर को चल दिए।

साइकिल से दिल्ली से खगड़िया (बिहार) स्थित अपने घर पहुंचने की जद्दोजहद में एक मजदूर धर्मवीर ने बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

लॉकडाउन से रोजी रोटी छिन जाने के बाद भी 34 दिन जैसे तैसे गुजारा करने वाले इन मज़दूरों को जब लगा कि ये संकट काल एक अंधेरी सुरंग सरीखा है तो दिल्ली से बिहार तक 1300 किमी लंबे सफर पर सात मजदूर टोली बनाकर निकल पड़े।

बिहार के खगड़िया ज़िले के थाना चौथम क्षेत्र के गांव खैरता निवासी धर्मवीर छह अन्य साथी मज़दूरों सुशील, सहरसा के सुलेंद्र शर्मा, रंजीत शर्मा, भैसर शर्मा, खगड़िया रामनिवास शर्मा, मधेपुरा के करन कुमार साइकिल से निकल पड़े।

ये सभी पुरानी दिल्ली के शकूरबस्ती में रहकर अलग-अलग फैक्ट्रियों में मजदूरी करते थे। लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्रियां बंद हो गईं।

workers from bihar cycled from Delhi

27 अप्रैल को ये लोग साइकिल से ही घर जाने के लिए निकल पड़े थे। 30 अप्रैल की देर रात करीब दो बजे सभी लोग शाहजहांपुर के बरेली मोड़ स्थित पुराने टोल प्लाजा के पास पहुंचे तो बारिश होने लगी।

सभी लोग वहीं रुक गए। एक मई को सुबह करीब आठ बजे धर्मवीर की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। साथियों ने अजीजगंज चौकी पहुंचकर जानकारी दी।

पुलिस 108 एंबुलेंस से सभी को मेडिकल कॉलेज लेकर पहुंची, जहाँ धर्मवीर को मृत घोषित कर दिया गया।

घर के लिए प्रारंभ हुआ उनका सफर अभी तो एक तिहाई ही पूरा हो पाया था, लेकिन वे ऐसे सफर पर चले गये, जहाँ से वे कभी वापस नहीं आ सकते।

उनके साथियों का कहना है कि मृतक अभी तो 28 साल का था। उसे कोई बीमारी भी नहीं थी। फिलहाल, प्रशासन ने मृतक का सैंपल जांच के लिए भेज दिया है। वहीं, उसके साथियों को क्वारंटाइन कर दिया गया है।

दिहाड़ी मज़दूर

धर्मवीर शर्मा अपने जिले के रहने वाले अन्य मजदूरों के साथ ही दिल्ली में रहकर दिहाड़ी मजदूरी करते थे। कभी रिक्शा चलाने का तो कभी राजगीर का काम करते थे।

लेकिन लॉकडाउन के बाद इनका रोज़गार छिन गया। कुछ पैसे जोड़े थे तो उससे राशन खरीद लिया। यह राशन करीब 10 दिन चला। इसके बाद आसपड़ोस से मांगकर काम चलाया।

कई दिनों तक रहे भूखे

मृतक के साथी मजदूर रामनिवास उर्फ छोटू ने बताया कि दिल्ली सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली।

कई दिनों तक बिस्कुट खाकर पेट भरा। लेकिन जब लगा कि ये दिन कैसे गुजरेंगे? इससे बेहतर है कि अपनों के बीच चला जाए।

यहां रहे तो बीमारी से मरे या न मरे भूख से जरूर मर जाएंगे। मजबूरन 27 अप्रैल को धर्मवीर के साथ हम छह लोग साइकिल से अपने घर के लिए निकल पड़े। भूखे प्यासे चार दिन साइकिल चलाकर 30 अप्रैल की रात शाहजहांपुर पहुंचे थे।

 

हालांकि, धर्मवीर की मौत का कारण क्या है, ये स्पष्ट नहीं है। उसके साथियों ने बताया कि उसे कोई बीमारी नहीं थी।

मृतक के बारे में साथियों से जानकारी ली। उसका शव पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया। मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल अभय कुमार ने बताया कि शव से सैंपल लेकर जांच के लिए भेज दिया गया है। साथी मजदूरों को क्वारैंटाइन किया गया है।

धर्मवीर शर्मा मर गया, लेकिन अपने पीछे वे कई सवाल छोड़ गये। उनकी मौत की जिम्मेदारी से ना तो केन्द्र सरकार बच सकती है, और ना ही दिल्ली, यूपी व बिहार सरकार।

धर्मवीर की मौत के लिए ये तमाम सरकारें जिम्मेदार है, जिन्होंने वक्त रहते करोड़ों प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी के लिए कुछ नहीं किया है।

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Workers Unity Team