कंपनी चालू हुई पर नहीं किया ट्रांसपोर्ट का इंतज़ाम, बाइक से हुई दुर्घटनाओं में छह मज़दूर घायल

कंपनी चालू हुई पर नहीं किया ट्रांसपोर्ट का इंतज़ाम, बाइक से हुई दुर्घटनाओं में छह मज़दूर घायल

By मोहिंदर कपूर

बीते 24 मार्च को अचानक लॉकडाउन लगाए जाने के बाद जहां एक ओर कई मज़दूर अपने घर को लौटने के दौरान रास्ते में अपनी जान गंवा बैठे वहीं लॉकडाउन के हटने के बाद अपने काम पर लौटते हुए कई मज़दूर रोड एक्सिडेंट का शिकार हो गए।

मारुति के कंपोनेंट बनाने वाली मानेसर स्थित बेलसोनिका कंपनी में काम करने वाले कम से कम छह वर्कर ड्यूटी ज्वाइन करने या काम पर आते जाते सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए, जिनमें एक वर्कर कोमा में है।

इनमें अधिकांश दुर्घटनाएं मोटरसाइकिल से काम पर जाते आते हुए हैं क्योंकि लॉकडाउन हटने के बावजूद सार्वजनिक परिवहन शुरू नहीं हुआ और इन्हें अपने वाहन से ही जाना पड़ा।

इन्हीं में से कुछ मज़दूरों के बारे में हमने जानकारी इकट्ठा की है।

  1. आगरा से मानेसर मोटरसाइकिल से

बीते 30 जून 2020 रविवार को बाइक पर अपने घर से कंपनी में ड्यूटी जाने के लिए आगरा के गांव रसूलपुर से मैदान सिंह चले थे। उन्हें अगले सोमवार तक ड्यूटी ज्वाइन करने का आदेश मिला था। मैदान सिंह को 250-300 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी। रास्ते में तावडू टोल के नजदीक के.एम.पी. हाईवे पर इनका रोड एक्सीडेंट हो गया और दोनों हाथों में गंभीर चोट लगी। इनके दाहिने हाथ में फ्रैक्चर हो गया। उनके परिजनों ने बताया कि अबतक उनके इलाज पर एक लाख 10 हज़ार रुपये खर्च हो चुके हैं। उन्हें कंपनी से 36 दिन की छुट्टी करनी पड़ी। इनके परिवार में मां फूलवती (55), पत्नी राजकुमारी (28), बेटी नेहा कुमारी (11), भूमिका कुमारी (9), बेटा लोकेश कुमार (5) और एक छोटी बेटी डोली कुमारी (2.5) है। इन सबको मिलाकर मैदान पर निर्भर परिवार के आठ सदस्य हैं।

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मैदान सिंह। फ़ोटोः एस.ए.
2- कंपनी जाते समय ट्रक से टक्कर

योगेश (19) को विभाग पीपीसी शॉप में संस्था में काम करते लगभग 7 वर्ष हो गए हैं। 29 अगस्त को अपने कमरे से बाइक पर कंपनी जा रहे थे। गांव रामपुरा, आईएमटी मानेसर, गुड़गांव के पास इनका ट्रक से सुबह के समय एक्सीडेंट हो गया और इनके हाथ में फ्रैक्चर आ गया और सिर में गंभीर चोट लगी। ड्यूटी करने के बाद इनको अपने गांव यूपी के मथुरा जाना था और सार्वजनिक साधन लॉकडाउन के कारण चल नहीं रहे थे। इनके परिजनों के अनुसार, इलाज पर लगभग 40 हज़ार रुपये खर्च हुआ। कंपनी से इन्हें एक महीने की छुट्टी करनी पड़ी। उनके परिवार में पिता श्रीराम (62), पत्नी मधु (31), लड़की पायल (13) और लड़का विवेक (11) हैं, जो योगेश पर आश्रित हैं।

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योगेश। फ़ोटोः एसए..
3- ड्यूटी से घर जाते हुए रोड एक्सिडेंट

संदीप कुमार (36) बीते 12 सालों से प्रैस शॉप में काम कर रहे हैं। 30 अगस्त को एक रोड एक्सीडेंट  में बुरी तरह घायल हो गए और अभी तक ठीक नहीं हुए हैं। यह दुर्घटना झज्जर के गांव लकड़िया से  रोहतक रोड पर हुई। यह भी अपने घर गांव- पहरावर, ज़िला- रोहतक हरियाणा बाइक पर जाने के लिए  मजबूर हुए। चोट इतनी गंभीर थी कि वो अभी भी छुट्टी पर चल रहे हैं। परिजनों के अनुसार, उनके इलाज में अबतक क़रीब 70 हज़ार रुपये खर्च हो चुके हैं। इनेक ऊपर आश्रित परिवार में पिता  सत्यनारायण (75), माता किताबो (65), पत्नी अनिता (31), लड़के राविश (4) व जिवांश (3) हैं।

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संदीप कुमार और उनका परिवार। फ़ोटोः एस.ए.
4- रोड एक्सिडेंट में गंभीर चोट, कोमा में

रोहताश को वैल्ड शॉप में काम करते 8 साल हो चुके हैं। 19 सितम्बर को कंपनी से घर बाईक पर जाते समय रास्ते में दुर्घटना में घायल हो गए। सिर में गम्भीर चोट आने से वो कोमा में चले गए हैं। इनके शरीर कई अंग काम नहीं कर रहे हैं। हाथ का हिलना और आंखों की पुतली का घूमना बंद है। अभी तक इनके शरीर की पूरी चोटों का भी पता नहीं लग पाया है। परिजनों के अनुसार, अब तक इनके इलाज पर 4 से 5 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। अभी वो घर पर ही बेड रेस्ट पर हैं।

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रोहताश। फ़ोटोः एस.ए.
5- रोड एक्सिडेंट के बाद बेड रेस्ट

ड्यूटी ज्वाइन करने के कंपनी के अड़ियल रवैये का खामियाजा सिर्फ वर्कर ही नहीं भुगत रहे, बल्कि अधिकारी रैंक के कर्मचारी भी इसके शिकार हुए हुए हैं। संस्था के ही एक अन्य अधिकारी अनिल कुमार वैल्ड शॉप विभाग में पिछले 9 वर्ष से काम कर रहे हैं। बीते चार अक्टूबर को इनका भी बाईक पर अपने घर जाते समय रोड एक्सीडेंट हो गया है। जो अभी भी बेड रेस्ट पर हैं।

6- ट्रैवल पूल में हुए घायल

अनिल के साथ एक और अधिकारी अशोक नैन भी उस समय बाइक पर सवार थे। अशोक भी पिछले 5-6 सालों से इस संस्था वैल्ड शॉप विभाग में काम कर रहे हैं। उनके भी शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर कई जगह पर हल्की-फुल्की चोटें लगी हैं।

ये दुर्घटनाएं संस्थाओं, फ़ैक्ट्रियों और ऑफ़िस में जाने की मज़बूरी के चलते हुईं। मज़दूरों के लिए वर्क फ़्राम होम नहीं हो सकता। मैन्युफ़ैक्चरिंग में लगे वर्करों को इस कोरोना काल में बुलाया गया और उनके आने जाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। सार्वजनिक साधन पर्याप्त मात्रा में ना चलने के कारण श्रमिकों को मजबूरी में लंबी-लंबी यात्रा करने के लिए अपने साधनों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

इन दुर्घटनाओं में घायल होने वाले व्यक्तियों को कंपनी की ओर से कराए गए मेडिकल इँश्योरेंस से इलाज पर खर्च का एक हिस्सा मिला है। पहले तीन मामलों में HDFC ERGO इंश्योरेंस क्लेम की तरफ से खर्च वहन किया गया।

चौथे क्लेम में HDFC ERGO की तरफ से तथा कंपनी की तरफ से एक्स्ट्रा बफ़र प्लान में से दिया गया। और पैंडिंग पड़े डिमांड नोटिस में भी कंपनी की ओर से कुछ पैसा हर महीने 1 साल तक देने पर बात चल रही है।

लेकिन घायल होने की स्थिति में कंपनी से जो छुट्टी लेनी पड़ी उससे मज़दूरों का ही नुकसान हुआ।

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एक सनक भरा फैसला- लॉकडाउन- अनलॉक

अगर सरकार ने उद्योगों को चलाने की अनुमति दी थी तो मजदूरों के लिए परिवहन का इंतजाम भी करना चाहिए था, जोकि सनक भरे लॉकडाउन में सोचा भी नहीं गया। गरीब, मजदूर व मेहनतकश जनता को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिए गए।

जब लॉकडाउन घोषित किया गया तब भी मज़दूरों को घर पहुंचने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं किए गए। इस दौरान दौरान अलग-अलग जगहों पर पूरे देश में मजदूरों की भयावह स्थिति देखने को मिली। सैकडों किलोमीटर तक प्रवासी मजदूर पैदल चलकर अपने घरों को पहुंचे। उनके साथ उनके दूध पीते बच्चे, बुढे माता-पिता तथा इनकी गर्भवती महिलाएं उनके साथ पैदल चलीं।

कईयों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया और कइयों ने परेशान होकर आत्महत्या कर ली। कई प्रवासी मज़दूर ट्रेन के नीचे कुचल कर मारे गए। गर्भवती महिलाओं ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया और बच्चे के जन्म के कुछ ही घंटे बाद वह फिर आगे का सफर तय करने के निकल पड़ी।

शासन-प्रशासन जिसको अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने इन प्रवासी मजदूरों को राम भरोसे छोड़ दिया और इसके साथ-साथ लॉकडाउन की उल्लंघन के नाम पर लाठियां अलग से भांजी गई।

जैसे-जैसे अनलॉक की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया और उद्योगों को खोला गया तो मजदूरों का शोषण बढ़ने लगा। फैक्ट्रियों मालिकों ने मजदूरों को निकालना शुरू कर दिया। सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं में छंटनी, तालाबंदी का दौर लगातार जारी रहा। इसके साथ वेतन भत्तों में कटौती और इसी तरह मजदूरों की अन्य सुविधाओं में भी कटौती की जाने लगी।

इस महामारी में अपना पेट भरने के लिए फैक्ट्रियों, उद्योग व ऑफिसों में काम करने के लिए जाना पड़ रहा है। लेकिन सार्वजनिक वाहन पर्याप्त मात्रा में ना होने के कारण अब मजदूरों के हालात ओर ज्यादा खराब होने लगे। मेहनतकश जनता को एक तरीके से मजबूर किया गया इस महामारी के माहौल में फैक्ट्रियों, कारखानों, उद्योगों व ऑफिस में जाने के लिए और दूसरी तरफ सार्वजनिक साधनों को बंद रखते हुए अब मजदूरों ने अपने वाहनों से ही कैसे ना कैसे करके अपनी अपनी ड्यूटी को ज्वाइन करना पड़ा। जिसका परिणाम यह हुआ कि इसी दौरान रोड एक्सीडेंट की संख्या भी बढ़ने लगी।

(लेखक बेल सोनिका कंपनी में काम करते हैं और उसकी यूनियन बॉडी के सदस्य हैं।)

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Workers Unity Team

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