मोदी शासन में सच की पैरवी करना जुर्म: Alt News के ज़ुबैर “हिंदुओं की आस्था को ठेस” पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार
अक्टूबर 2021 को ट्विटर पर एक बेनामी अकाउंट बनता है। ना उस अकाउंट से कोई ट्वीट होता है और ना ही किसी को फॉलो किया जाता है।
जून 2022 में उस अकाउंट से सिर्फ एक ट्वीट किया जाता है जिसमें पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को ट्वीट में हिन्दू भगवान का मज़ाक उड़ाने और हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में उसे गिरफ्तार करने की मांग की जाती है।
ट्वीट में दिल्ली पुलिस को टैग किया जाता है। तुरंत कंप्लेन दर्ज हो जाती है और पुलिस ज़ुबैर को गिरफ्तार करने पहुँच जाती है।
पिछली रात तक ज़ीरो फॉलोवर्स वाले इस अकाउंट में अचानक गतिविधि बढ़ती है और रातों रात कई लोगों को फॉलो और कई सारे ट्वीट किये जाते हैं।
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ज़ुबैर Alt News के सह-संस्थापक हैं जो पिछले कई सालों से सोशल मीडिया पर आईटी सेल या व्यक्तिगत हैन्डलों द्वारा फैलाई गई फेक न्यूज, भ्रामक जानकारी और झूठी और एडिटेड सांप्रदायिक और भड़काऊ विडिओ या फोटो के खिलाफ फैक्ट चेक की मुहिम के सबसे अग्रणी चेहरे हैं।
ज़ुबैर को आईपीसी की धारा 153A और 295 के तहत गिरफ्तार किया गया है, जो की आसान भाषा में भारत के ईशनिंदा के कानून हैं।
बहुत से पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने ज़ुबैर के समर्थन में हैशटैग चलाए और उसे रिहा करने की मांग की।
उन्होंने कहा कि मोदी शासन में झूठ के खिलाफ लड़ना और सच उजागर करना जुर्म हो गया है।
पुरानी हिन्दी फिल्म से हिंदुओं की आस्था आहत?
ज़ुबैर को जिस ट्वीट के आधार पर गिरफ्तार किया गया है वह मार्च 2018 का है जिसमें 1983 की फिल्म ‘किसी से ना कहना’ का एक स्क्रीनशॉट है।
फिल्म में दिखाया गया है कि एक हनीमून होटल का नाम बदल कर हनुमान होटल कर दिया जाता है।
इसका संदर्भ यह था कि किस तरह मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद देश भर में शहरों, रेलवे स्टेशनों,आदि के नाम बदले जा रहे हैं।
बेनामी यूजर जिसने आरोप लगाया है, उसका दावा है कि इस ट्वीट में हिंदुओं के भगवान हनुमान का अपमान किया गया है क्यूंकि हनुमान ब्रह्मचारी हैं और इस कारण हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने ज़ुबैर को साल 2020 के एक केस के सिलसिले में हाजिर होने को कहा था, जिस केस में उन्हें पहले से ही हाई कोर्ट से संरक्षण मिला हुआ है।
ज़ुबैर थे आईटी सेल के निशाने पर
Alt News के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने बताया कि पुलिस ने बाद में कहा कि उन्हें दूसरे केस में गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस वैन ज़ुबैर को कहां ले जा रही थी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही थी और किसी भी पुलिसवाले की वर्दी पर नेम टैग नहीं लगा हुआ था।
पुलिस ने FIR की कॉपी ज़ुबैर के वकीलों को भी नहीं दी लेकिन हैरानी की बात है कि Republic News के दावे के मुताबिक उनके पास वह कॉपी मौजूद थी।
ज़ुबैर काफी साल से आईटी सेल और ट्रोलों के निशाने पर रहे हैं। कुछ ट्विटर यूजर ज़ुबैर की गिरफ़्तारी करने वाले सरकारी नुमाइंदों को इनाम देने की घोषणा कर चुके थे।
It's also pertinent to note that the supposed complaint based on which Zubair was arrested came in the backdrop of a concerted campaign to harass him through law enforcement agencies.https://t.co/rtvjPG9fHV pic.twitter.com/rbMv6WbWKH
— Azhar (@lonelyredcurl) June 28, 2022
ये गौर करने वाली बात है कि जहां लाखों ट्विटर यूजर अपनी शिकायत लिए पुलिस या बाकी आधिकारिक संस्थाओं को टैग करते हुए ट्वीट करते थक जाते हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है।
वहीं एक बेनामी अकाउंट, जिसके ना कोई फॉलोवर्स हैं और ना ही किसी दूसरे अकाउंट से कोई बातचीत थी। उसके बावजूद पुलिस को करोड़ों ट्वीट में से इस ट्वीट दिखता है और तुरंत उसपर एक्शन भी हो जाता है।
ज़ुबैर आईटी सेल द्वारा फैलाई गई भ्रामक और झूठी खबरों का पर्दाफाश करते रहे हैं लेकिन उनके ट्वीटों पर सरकार के आदेश पर पाबंदी लगाई जाती रही है।
सच बोलने से नए भारत में बिगड़ता सौहार्द
ऐसा दर्जनों बार हो चुका कि ट्विटर ज़ुबैर को आधिकारिक ईमेल कर के ये सूचना देती है कि भ्रामक खबरों के फैक्टचेक कर सही जानकारी देने वाले ट्वीट को “अशान्ति फैलाने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने” के डर से सरकार के आदेश पर हटा दिया गया है।
लेकिन ठीक उसी समय, उन भ्रामक ट्वीटों पर मास रेपोर्टिंग करने पर भी एक्शन नहीं लिया जाता है।
इसके उलट हजारों लाखों की संख्या में आईटी सेल के अकाउंट देश के बाकी अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलते हैं और दंगे भड़काते हैं।
इन पर कार्यवाही तो दूर, इन ट्वीटों पर ना पाबंदी लगती है और ना ही इसे फ्लैग किया जाता है।
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